खुफिया एजेंसियों के काम का है सोशल मीडिया का डाटा

ब्रिटेन की एक कोर्ट में अनूठा मामला आया है जिसमें आरोप लगाया गया है कि वहां की खुफिया एजेंसियां सोशल मीडिया के डाटा का उपयोग कर रही हैं। प्राइवेसी इंटरनेशनल नामक संस्था यह मामला कोर्ट ले गई है और उसका कहना है कि लोगों की निजी जानकारियों को इकट्ठा करके उसका उपयोग करना उचित नहीं है। लोगों ने अपनी निजी जानकारी किसी खास उद्देश्य से शेयर की है और वह व्यक्तिगत जानकारी है। इस संस्था की मुख्य आपत्ति यह है कि खुफिया एजेंसियां इस संपूर्ण जानकारी को किसी विदेशी एजेंसी को दे सकती हैं। इससे वहां के लोगों की सुरक्षा पर भी खतरा हो सकता है। 
 
प्राइवेसी इंटरनेशनल नामक यह संस्था 2 साल से यह मामला उठा रही है कि खुफिया एजेंसियां कुछ लोगों की निजी जानकारियां सोशल मीडिया पर खोज-खोजकर इकट्ठा कर रही हैं। यह भी हो सकता है कि वे सरकार के खिलाफ रखे जाने वाले विचार वाले लोगों को लक्ष्य बनाकर उनकी तमाम जानकारियां इकट्ठी कर रही हों। खुफिया एजेंसियों के पास लाखों लोगों का डाटा इकट्ठा हुआ है। संस्था का कहना है कि पहली बार यह बात उजागर हुई है कि खुफिया एजेंसियां ऐसा कोई डाटा इकट्ठा कर रही हैं और उसका कुछ हिस्सा वे सार्वजनिक भी करने को तैयार हैं। कोर्ट में खुफिया एजेंसी ने यह नहीं बताया कि वे कौन-सा गोपनीय डाटा इकट्ठा कर रही हैं। 
 
संस्था का कहना है कि खुफिया एजेंसियां सोशल मीडिया पर लोगों के एक-एक अकाउंट की पड़ताल कर रही है और फिर उस खाताधारक की निजी जानकारियां इस तरह से इकट्ठी की जा रही है जिसका कि उपयोग सरकार और निजी क्षेत्र की कंपनियों के लिए सुविधाजनक हो सकता है। इस डाटा को कंपनी किस रूप में परिवर्तित करके उपयोग में लाएगी, यह भी कहा नहीं जा सकता। 
 
कोर्ट में जो सबसे गंभीर बात सामने आई, वह यह है कि खुफिया एजेंसियों ने जो जानकारी इकट्ठी की है, उसे कुछ निजी ठेकेदारों को उपलब्ध कराया जा रहा है। ये ठेकेदार वहां एडमिनिस्ट्रेटर बनकर संपूर्ण जानकारियां विश्लेषित कर रहे हैं। ऐसे निजी ठेकेदारों के संबंध में भी जांच जारी है। प्राइवेसी इंटरनेशनल का कहना है कि सरकार के पास ऐसा कोई सुरक्षा तंत्र नहीं है जिससे ऐसी जानकारियों को बाहर जाने से रोका जा सके। खुफिया एजेंसियों ने कोर्ट में कहा कि हम ऐसा कोई काम नहीं करने वाले हैं जिससे कि यह जानकारी विदेशी कंपनियों के पास जाए। 
 
प्राइवेसी इंटरनेशनल का कहना है कि सोशल मीडिया पर लोग अपनी निजी जानकारियां शेयर करते हैं, लेकिन उनका उपयोग सबूत के तौर पर करना ठीक नहीं हो सकता। सोशल मीडिया पर लोग अपनी सेहत के बारे में भी जानकारियां बताते रहते हैं। उस आधार पर बीमारियों के बारे में कोई विश्लेषण करना उचित नहीं हो सकता। 
 
डाटा को लेकर यूरोपीय देशों में अनेक नए तरह के व्यापार शुरू हो गए हैं। बिग डाटा, डाटा विजुअलाइजेशन, ओपन सोर्स डाटा और डाटा साइंस जैसे नए विषय विश्वविद्यालयों में खुल रहे हैं। यहां वैज्ञानिक पद्धति से सांख्यिकीय आधार पर डाटा का विश्लेषण किया जाता है। बिग डाटा एनालिसिस एक बड़ी व्यावसायिक गतिविधि बन गई है। अगर सोशल मीडिया के डाटा का विश्लेषण करते वक्त सही लक्ष्य नहीं रखा गया, तो उसके निष्कर्ष भी गलत आ सकते हैं। 
 
आरोप है कि यह खुफिया विभाग सोशल मीडिया पर किए जाने वाले पोस्ट, ट्वीट, कमेंट्स, लाइक्स, शेयर्स आदि का विश्लेषण करते हैं, साथ ही ब्लॉग और माइक्रोब्लॉगिंग तथा फोटो शेयरिंग साइट्स का भी विश्लेषण करते हैं। अभी ये एजेंसियां केवल इस तरह के विश्लेषण कार्य करके अपने पास रख लेती हैं या सरकार के मांगने पर उसे मुहैया करा देती हैं।
 
विश्लेषकों का मानना है कि सोशल मीडिया पर उपलब्ध होने वाला संपूर्ण डाटा एक तरह का कच्चा माल है जिससे पूरे समाज की दिशा जानी जा सकती है, लोगों की रुचियां, शौक, व्यापार-व्यवसाय की रुचियां, फैशन और मनोरंजन के ट्रेंड्स और इस सबसे बढ़कर सरकार के प्रति उनका नजरियां सोशल मीडिया पर देखने को मिल सकता है। अनेक लोग यह मानते हैं कि सोशल मीडिया का यह उपयोग कानूनी रूप से मान्य होना चाहिए, क्योंकि जब व्यक्ति खुद अपनी निजी जानकारियां सार्वजनिक मंच पर शेयर कर रहा है, तब उसमें प्राइवेसी जैसी बात करना ठीक नहीं है।

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