22 मई को अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस है। सन् 1993 जब से जैव विविधता पर अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाया जाना तय हुआ तब से अब तक हर वर्ष यह दिवस विशेष थीम के साथ केवल वैज्ञानिकों और सीमित सजग नागरिकों द्वारा मनाया जाता रहा है। लेकिन सन् 2020 का जैव विविधता दिवस विगत सभी जैव विविधता दिवसों से बहुत अलग और अनोखा है।
अलग और अनोखा इसलिए क्योंकि यह कोरोना महामारी के चलते विश्वव्यापी लॉकडाउन जैसी असामान्य स्थिति में जो आया है। इस बार चाहते न चाहते हुए भी मन से सभी इस दिवस को मना रहे हैं। यह एक शुभ संकेत है।
हमारे आस-पास बिखरे जीवन की सुंदर विभिन्नता ही जैव विविधता है। इस छतरी के नीचे सभी आ जाते हैं। दुनिया के समस्त पेड़-पौधे, घांस-पात, झाड़-झंखाड़, लता-बेलें, जीव-जंतु, कीड़े-मकौड़े, मछली-झींगे, गाय-ढोर, बंदर और हम सभी! मतलब वाकई सभी! है ना रुचिकर यह जैव विविधता की छतरी!
लॉकडाउन से पूर्व के सामान्य दिनों में हमारा ध्यान इस खूबसूरत जैव विविधता की छतरी पर नहीं जाता था, क्योंकि हम हमारे जीवन की आपा-धापी, दौड़-भाग और उठा-पटक में अति व्यस्त थे। प्रकृति को, आस पास बिखरे जीवन को देखने, सुनने, छूने, महसूस करने और समझने की न तो हमें फुर्सत थी। न ही कोई अवकाश। जीवन था। विविधता थी। पर हमारे ध्यान के घेरे में नहीं थी। हम उसे पकड़ नहीं पाते थे।
लॉकडाउन ने हमें एकांत दिया। शांति दी। समय दिया और तब प्रकृति हमें हमारे आस पास स्वत: ही मुखरता से नर्तन करती दिखाई देने लगी। हमारी नजर जैव विविधता के नयनाभिराम रूपों पर ठिठकने लगी। उसके करतबों पर चकित होने लगी।
हम उन रूपों के फोटोज और क्रियाकलापों के विडियो शेयर करने लगे। चाहे फिर वे किसी के भी हों, जैसे बहुत सारे मोरों का सड़कों पर आना, चिड़ियों का चहचहाना, घोसले बनाना, सांपों का निकलकर सरसराना, कलियों का खिलना, फलों का पकना, फटना, बीजों का बिखरना आदि आदि।
जब सारे होटल्स, सिनेमा हॉल और थिएटर बंद हुए तब भी प्रकृति का निशुल्क थिएटर खुला रहा और हम सब दर्शक बन महामारी के डर से कुछ पल दूर रह कर, आनंदित होते रहे।
क्या यह काफी नहीं है कि अब इस 22 मई के जैव विविधता दिवस के बाद हम प्रकृति और जैव विविधता से प्यार करना सीख लें। उन्हें आदर देना शुरू कर दें।
यह बहुत महत्वपूर्ण है कि धरती पर मौजूद समस्त प्रजातियों के आवासों को हमने पिछली शताब्दियों में, अपने विकास के नाम पर जो नुकसान पहुंचाया है, अब हम उसकी भरपाई करने का प्रण ले लें। हम हमारा प्रकृति धर्म निभाना शुरू कर दें।