अभूतपूर्व Global सहायता भारत के वैश्विक साख और सम्मान का प्रमाण

जिस तरह विश्व समुदाय ने भारत के लिए खुले दिल से सहयोग और सहायता का हाथ बढ़ाया है वह अभूतपूर्व है। आपदाओं में वैश्विक सहायता पर काम करने वालों का मानना है कि इस तरह का सहयोग पहले किसी एक देश को नहीं मिला था। भारत तक जल्दी आवश्यक सहायता सामग्रियां पहुंचे इसके लिए सैन्य संसाधनों तक का इस्तेमाल किया जा रहा है। अभी तक 40 से ज्यादा देशों से सहायता सामग्रियां भारत पहुंच चुकीं हैं। 
 
हम अपने देश की सरकार और उसकी नीतियों की जितनी आलोचना करें इस प्रश्न का उत्तर देना ही होगा कि इतने सारे देश इस तरह अभूतपूर्व तरीके से भारत के साथ क्यों खड़े हुए हैं? ध्यान रखिए, भारत ने किसी देश से सहायता मांगी नहीं है। सभी देश और संस्थाएं अपनी ओर से ऐसा कर रहीं हैं। इसका अर्थ निष्पक्षता से ढूंढिए तो यही कहा जाएगा कि भारत की वैश्विक छवि और इसका प्रभाव विश्व समुदाय पर कायम है।
 
जो सामग्रियां आ रहीं हैं उनमें स्वाभाविक ही ऑक्सीजन उत्पादक संयंत्र, ऑक्सीजन सांद्रक, छोटे और बड़े ऑक्सीजन सिलेंडर, टेस्ट किटों के अलावा कोरोना मरीजों के लिए आवश्यक औषधियों में रेमडेसिविर, टोसिलिज़ुमैब, फेवीपिरवीर, कोरोनावीर आदि हैं। अमेरिका से सबसे ज्यादा सामग्रियां आईं हैं। व्हाइट हाउस प्रवक्ता का बयान है कि हम दिन रात काम कर रहे हैं जिससे भारत को आवश्यक सामग्रियां मिलती रहे। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने कहा है कि हम एक मित्र और भागीदार के रूप में भारत के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने भारत के लिए एक फेसबुक पोस्ट लिखा। इसमें उन्होंने भारत भेजे जाने वाली सामग्रियों का जिक्र करते हुए भारत के साथ खड़े होने की प्रतिबद्धता जताई।

हम जानते हैं कि भारत एक मुश्किल दौर से गुज़र रहा है। फ्रांस और भारत हमेशा एकजुट रहे हैं। ऐसे ही बयान कई देशों की ओर से आए हैं। भारत में रूस के राजदूत निकोले कुदाशेव के अनुसार रूस से दो तत्काल उड़ानें भारत में 20 टन के भार का मेडिकल कार्गो लेकर आ चुकी हैं। स्वयं महामारी से जूझने वाले स्पेन ने भी सामग्रियां भेजीं हैं। 
 
सच कहें तो भारत को मदद देने की वैश्विक मुहिम व्यापक हो चुकी है। किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि भारत के लिए विश्व समुदाय इस तरह दिल खोलकर साथ देने आएगा। इसके उदाहरण कम ही होंगे जब सहायता के लिए एक देश दूसरे देश को आवश्यक सहयोग कर रहे हैं जिससे आसानी से सामग्रियां पहुंच सके। उदाहरण के लिए फ्रांस ने खाड़ी स्थित अपने देश की एक गैस निर्माता कंपनी से दो क्रायोजेनिक टैंकर भारत को पहुंचाने की इच्छा जताई तो कतर ने उसे तत्काल स्वीकृति दी।

इज़राइल के नई दिल्ली स्थित राजदूत रॉन मलका ने कहा कि भारत के साथ अपने संबंधों को देखते हुए उनकी सरकार ने एक टास्क फोर्स गठित किया है ताकि भारत को तेजी से मदद पहुंचाई जा सके। इजरायल की कई निजी कंपनियां, एनजीओ और वहां की आम जनता भारत को मदद देने लिए आगे आई हैं। इसे लिखे जाने तक इजरायल की मदद का चौथा जहाज भारत पहुंच चुका था।  केवल देश और संस्थाएं ही भारत की सहायता नहीं कर रहीं, अनेक देशों के नागरिक तथा विश्व भर के भारतवंशी भी इस समय हरसंभव योगदान करने के लिए आगे आ रहे हैं। 
 
जापान, इज़राइलल के स्थानीय नागरिक सामग्रियां भेज रहे हैं। कई यूरोपीय देशों में स्थानीय एनजीओ की कोशिशों से काफी बड़े पैमाने पर चिकित्सा सामग्रियां जुटाई जा रही है, जो भारत पहुंचने लगी हैं। विदेशी नागरिक अपने पैसे से आक्सीजन कंसंट्रेटर्स खरीद कर भारतीय मिशनों को भेज रहे हैं। सउदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कतर जैसे खाड़ी के क्षेत्र में रहने वाले प्रवासी भारतीयों द्वारा भेजी गई सामग्रियां पहुंच रहीं हैं। कई देशों में भारतीय मूल के डॉक्टरों ने भी ऑनलाइन मेडिकल परामर्श मुफ्त में देने का अभियान चलाया हुआ है। सिंगापुर में रहने वाले भारतीयों ने वहां की सरकार के माध्यम से बड़ी खेप भारत भेजी है। 
 
लेकिन इसके समानांतर देशी-विदेशी मीडिया का एक धड़ा, एनजीओ आदि अपने व्यापक संपर्कों का प्रयोग कर कई प्रकार का दुष्प्रचार कर रहे हैं। मसलन, विदेशी सहायता सामग्रियां तो वहां जरूरतमंदों तक पहुंच ही नहीं रही.... सामग्रियां कहां जा रहीं हैं किसी को नहीं पता......आने वाली सामग्रियां तो सप्ताह-सप्ताह भर हवाई अड्डों पर ही पड़ी रहती हैं आदि आदि। आपको सैंकड़ों बयान मिल जाएंगे जिससे आपके अंदर यह तस्वीर बनेगी कि कोहराम से परेशान होते हुए भी भारत सरकार इतनी गैर जिम्मेवार है कि वह इनका वितरण तक नहीं कर रही या गोपनीय तरीके से इनका दुरुपयोग कर रही है।  
 
अमेरिकी विदेश मंत्रालय की एक ब्रीफ़िंग में भी यह मुद्दा उठाया गया। एक पत्रकार ने पूछा कि भारत को भेजे जा रहे अमेरिकी करदाताओं के पैसे की जवाबदेही कौन लेगा? क्या अमेरिकी सरकार यह पता कर रही है कि भारत को भेजी जा रही मेडिकल मदद कहां जा रही है? यह बात अलग है कि उन्हें टका सा उत्तर मिला। अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि हम आपको यक़ीन दिलाना चाहते हैं कि अमेरिका इस संकट के दौरान अपने साझेदार भारत का ख्याल रहने के लिए प्रतिबद्ध है।

भारत को भेजे जा रहे मेडिकल उपकरणों को यथासंभव कारगर तरीक़े से पहुंचाने के लिए ब्रिटेन इंडियन रेड क्रॉस और भारत सरकार के साथ काम करता आ रहा है। यह भारत सरकार तय करेगी कि ब्रिटेन की ओर से दी जा रही मेडिकल मदद कहाँ भेजी जाएगी और इसे बांटे जाने की प्रक्रिया क्या होगी। ये दो उदाहरण यह समझने के लिए पर्याप्त हैं कि एक ओर महाअपादा से जूझते देश में जिससे जितना बन पड़ रहा है कर रहा है और दूसरी ओर किस तरह का माहौल भारत के खिलाफ बनाने के कुत्सित प्रयास हो रहे हैं। केंद्र सरकार को इस कारण सफाई देनी पड़ी। जो जानकारी है उसके अनुसार सरकार ने सामग्रियों के आने के पूर्व से ही इसकी तैयारी कर दी थी। 
 
सीमाशुल्क विभाग को त्वरित गति से क्लियरेंस देने, कार्गों से सामग्रियों को तेजी से बाहर निकालने आदि के लिए एक टीम बन गई। स्वास्थ्य मंत्रालय ने 26 अप्रैल से वितरण की तैयारी शुरू कर दी थी। मदद कैसे बांटी जाए इसके लिए स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर यानी एसओपी 2 मई को जारी की गई। राहत सामग्री वाल विमान भारत पहुंचते ही इंडियन रेड क्रॉस सोसाइटी के हाथ आ जाता है। सीमाशुल्क विभाग से क्लियरेंस मिलन के बाद मदद की यह खेप एक दूसरी एजेंसी एचएलएल लाइफ़केयर के हवाले की जाती है।

यह एजेंसी सामानों को देश भर में भेजती है। कहां कितना किस रुप में आपूर्ति करनी है इसलिए सारी सामग्रियों को खोलकर उनकी नए सिरे से गंतव्य स्थानों के लिए पैकिंग करना होता है। सामान कई देशों से आ रहे हैं और उनकी मात्रा भी अलग-अलग हैं। वो अलग-अलग समय में अलग-अलग संख्या में आती है। कई बार तो सामग्रियां उनके साथ आई सूची से भी मेल नहीं खातीं। इन सबके होते हुए भी सामग्रियां सब जगह व्यवस्थित तरीके से पहुंच रहीं है।
 
हमें दुष्प्रचारकों के आरोपों पर ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है। वास्तव में भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों और द्विपक्षीय संबंधों में जिस तरह की भूमिका निभाई है उसका विश्व समुदाय पर सकारात्मक असर है। भारत के प्रति सद्भावना और सम्मान है। आखिर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन ने कहा भी कि कठिन समय में भारत ने हमारी सहायता की और अब हमारी बारी है।

इज़राइल के राजदूत का यही बयान है कि महामारी के आरंभ में जब हमें जरूरत थी भारत आगे आया, तो इस समय हम अपने दोस्त के लिए केवल अपनी जिम्मेवारी पूरी कर रहे हैं। यह स्वीकार करने में समस्या नहीं है कि कठिन समय में हमारी अपनी हैसियत, साख, सम्मान और हमारे प्रति अंतरराष्ट्रीय सद्भावना आसानी से दिखाई दे रही है। बिना मांगे इतने सारे देशों द्वारा व्यापक पैमाने पर सहयोग तथा इसके संबंध में दिए गए बयान इस बात के प्रमाण हैं कि भारत का सम्मान और साख विश्व स्तर पर कायम है।

(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)

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