अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस : क्या देश में साक्षर हो रहे लोग अपना जीवन बदल पा रहे हैं

सुरभि भटेवरा

बुधवार, 8 सितम्बर 2021 (13:43 IST)
जीवन में साक्षर होना यानी पढ़ और लिख लेना मतलब पहला पड़ाव पार कर लेना। और हां.. डिग्रियां भी जरूरी हैं लेकिन कई तरह के कोर्स ईजाद हो चुके हैं जिसके लिए आपको डिग्री की नहीं, टेक्‍नोलॉजी से अपडेट होने की जरूरत है। सोशल मीडिया आपके बिजनेस का सबसे सस्‍ता और विशाल प्‍लेटफॉर्म है जिसका उपयोग होममेकर बहुत अच्‍छे से कर रही है। महिलाओं के लिए डिजिटल मीडिया सबसे बड़ा प्लेटफॉर्म बनकर उभरा है। आज वे ऑनलाइन पढ़ाई भी कर रही हैं और हर तरह की जानकारी आसानी से उन्हें उपलब्‍ध हो रही है, साथ ही अपने बिजनेस को वे नए आयाम पर ले जा रही हैं। बदलती लाइफस्‍टाइल के साथ में महिलाओं ने तेजी से अपने आपको बदला है। वे यूट्यूब से ऑनलाइन सीखकर कई तरह के बड़े-बड़े बिजनेस में अपना वर्चस्‍व जमा रही हैं।
 
 
जहां एक तरफ महिलाएं डिजिटल तकनीक के माध्‍यम से आगे बढ़ रही हैं वहीं सरकार महिलाओं को साक्षर करने में ही विफल होती नजर आ रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्‍वांक्षी योजना 'बेटी बचाओं और बेटी पढ़ाओं' के तहत 2019 तक चार साल में 56 फीसदी बजट प्रचार प्रसार में ही खर्च कर दिया था। इस बात की जानकारी लोकसभा में पूर्व केंद्रीय महिला एवं बाल विकास राज्‍य मंत्री डॉ.वीरेंद्र कुमार ने सदन में जवाब देते हुए कहा था। इस लिहाज से महिलाएं आज खुद से साक्षर हो कर पढ़ भी रही है और भिन्‍न - भिन्‍न दिशाओं में आगे बढ़ रही है। साथ ही अपने बच्‍चों को भी पढ़ा रही है।  
 
हालांकि बदलते दौर में हर वर्ग के फिर चाहे लड़का हो या लड़की सिर्फ सक्षम होने मात्र से भी आगे बढ़ रहे हैं। लेकिन कस्‍बों, गांवों में आज भी शिक्षित करने की जरूरत है। UN INDIA Business Forum के मुताबिक अर्थव्‍यवस्‍था में समान रूप से पुरूष के साथ महिलाएं अर्थव्‍यवस्‍था की भागीदारी में सहयोग करें तो साल 2025 तक भारत की सालाना जीडीपी 2.9 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच सकती है। बिजनेस फोरम के अनुसार भारत में महिलाओं द्वारा 51 फीसदी कार्य अवैतनिक रूप से किए जाते हैं।
 
''निरक्षरता एक अभिशाप है और साक्षरता वरदान है।''
 
 

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