‘इंटरनेट’ युग में सबसे ज्‍यादा जरूरी है दुनिया में फैलाए जा रहे ‘झूठ’ से खुद को बचाए रखना

सच क्‍या होता है..., यह कोई नहीं जानता। हर आदमी या यूं कहें कि हर यूजर के पास सच का अपना वर्जन होता है। अपने सच के इसी झूठे वर्जन को सच मानकर वह जिंदगीभर इसे ढोता रहता है।

फि‍र एक दिन दिन हम ठगे से रह जाते हैं, जब हमें पता चलता है कि जिसे हम सच मान रहे थे, वो एक ऐसा नैरेटि‍व था जो सबसे विश्‍ससनीय माध्‍यम की मदद से हम तक पहुंचाया गया था।

यहां ‘यूजर’ शब्‍द का इस्‍तेमाल इसलिए किया जा रहा है, क्‍योंकि सच और झूठ का सबसे ज्‍यादा सरोकार इसी शब्‍द से है। यूजर यानि वो स्‍मार्ट आदमी जो इंटरनेट या सोशल मीडि‍या का इस्‍तेमाल करता है, जबकि हकीकत में वो खुद इसका इस्‍तेमाल होता रहता है। जाने-अनजाने में।

कहते हैं तस्‍वीरें कभी झूठ नहीं बोलती-- ‘अ फोटो इज इक्‍वल टू थाउजेंड वर्ड्स’, लेकिन यह मिथक अब पूरी तरह से बदल चुका है। सोशल मीडिया पर नजर आने वाली तस्‍वीरों की मदद से ही यह झूठ आदमी के जेहन तक पहुंचता है। यह झूठ अक्‍सर वीडि‍यो के तौर पर और कई मर्तबा खबरों के रूप में भी हम तक आता है। चाहकर और संभवत: न चाहते हुए भी हम सोशल मीडिया पर सक्रि‍य झूठ की इस फैक्‍टरी का शि‍कार हो जाते हैं।

हम समझते हैं कि हम सोशल मीडि‍या का इस्‍तेमाल कर रहे हैं, हकीकत यह है कि हम इसका इस्‍तेमाल हो रहे होते हैं।

क्‍योंकि वो इंटरनेट या सोशल मीडि‍या, जिसे हम टूल समझ रहे हैं, वही एक टूल के रूप में हमारा इस्‍तेमाल कर रहा है, उसके लिए हम सिर्फ एक यूजरभर हैं और हमें उसकी लत लगी हुई है।

कुछ समय पहले नेटफ्ल‍िक्‍स पर एक डॉक्यूमेंट्री आई थी नाम था ‘सोशल डि‍लेमा’ --- इस फिल्‍म में कहा गया था—‘यूजर’ शब्‍द का इस्‍तेमाल सिर्फ दो धंधों में होता है, एक इंटरनेट में और दूसरा ड्रग में’

हम शायद इसी नशे में सोशल मीडि‍या का इस्‍तेमाल करते हैं, इसलिए जब हम इंटरनेट पर सोशल मीडि‍या का इस्‍तेमाल करते हैं तो वो हमें देख रहा होता है, हमारी जासूसी करता है, हमारे दिमाग को रीड करता है और ट्रैप भी। धीरे-धीरे हम उसके गुलाम हो जाते हैं और हमें पता भी नहीं चलता कि हम उसके गुलाम हो चुके हैं। ठीक इसी जगह से हमारे सच और झूठ में कोई फर्क नहीं रह जाता। वो हमें जो परोसता है हम उसे ग्रहण कर लेते हैं। चाहे वो झूठ हो या सच।

या सच और झूठ का एक सैंडविच। जिसे देख-सुनकर हम पता नहीं लगा सकते कि किस हिस्‍से को सैंडविच कहें।  

हम उसकी झूठी तस्‍वीरों पर यकीन करते हैं, उसके फेक वीडि‍यो पर यकीन करते हैं और इसका हिस्‍सा बनकर अनजाने में उस झूठ को आगे बढ़ाने का काम करते रहते हैं।

अंतत: हम सब मिलकर झूठ की, फेक फोटो की, फेक वीडि‍यो और फेक न्‍यूज की एक पूरी दुनिया रच देते हैं

दुनिया की 7.8 बि‍लियन पॉपुलेशन में से 3.6 बि‍लियन पॉपुलेशन सोशल मीडि‍या प्‍लेटफॉर्म पर सक्रि‍य हैं और उसका इस्‍तेमाल करती है। अंदाजा लगाइए कि इसमें से आधे लोग भी अगर किसी फेक फोटो या वीडि‍यो को वायरल करेंगे तो वह झूठ शेष दुनिया के कितने लोगों के लिए सच बन जाएगा। यह सचमुच बेहद चिंताजनक है। अगर यही होता रहा तो दुनिया का ज्‍यादातर हिस्‍सा कम से कम सोशल मीडि‍या पर तो झूठ का एक पुलिंदा बनकर रह जाएगी।

मसलन, गांधी को एक फोटो में एक विदेशी लड़की  के साथ नाक से नाक मिलाते हुए दिखाया गया था। गांधी की छवि खराब करने वाले कैप्‍शन के साथ इस तस्‍वीर को सोशल मीडि‍या में कई लाख बार शेयर और वायरल किया गया। अंतत: वह एक झूठी यानि फेक फोटो थी। जिस तरफ लड़की बैठी थी, हकीकत में वहां जवाहर लाल नेहरु थे।

ठीक इसी तरह रक्षामंत्री राजनाथ सिंह को फ्रांस से आने वाले राफेल पर नींबू लटकाते हुए दिखाया गया था। कुछ न्‍यूज वेबसाइट्स ने तो इसकी खबरें भी बना दी और जि‍न्‍हें बेहद गंभीर नागरिक माना जाता था, उन्‍होंने भी सही मानते हुए सोशल मीडि‍या पर इस तस्‍वीर को शेयर किया था। यह भी फेक फोटो निकली।

यह महज कुछ उदाहरण हैं। ऐसे हजारों,लाखों तस्‍वीरें, वीडि‍यो और खबरों से सोशल मीडि‍या भरा पड़ा है।

दरअसल, आजकल इंटरनेट के नए युग में तस्‍वीरों और वीडि‍यो के जरिए झूठ फैलाया जाता है। यह किसी पार्टी का नैरेटि‍व इस्‍टेब्‍लि‍श्‍ड करने के लिए भी किया जा सकता है या किसी कंपनी के उत्‍पाद को ठेस पहुंचाने के लिए भी किया जा सकता है। या यूं ही मनोरंजन के लिए भी किया जाता है!

सच को झूठ और झूठ को सच दिखाने के लिए भी किया जा सकता है। या कोई तीसरा सच या झूठ सैट करने के लिए भी किया जा सकता है और अंतत: यह महज किसी मनचले की मसखरी दिमाग की उपज भी हो सकता है। किसी भी मकसद से किया गया हो, वह वो नहीं होता जो उसे होना चाहिए था... यानि सत्‍य।

अब तक हम भी सत्‍य को झूठ और झूठ को सच मानते हुए सोशल मीडि‍या का इस्‍तेमाल करते आ रहे थे। हालांकि जर्नलिस्‍ट होने के नाते हर बार ऐसे फेक फोटो और फेक वीडि‍या पर डाउट किया, लेकिन शायद वो पर्याप्‍त नहीं था।

पर्याप्‍त सच पता लगाने के लिए हाल ही में इसकी बकायदा ट्रैनिंग ली गई। जो बेहद काम आई।

दो दिन के इस प्रशि‍क्षण में इंटरनेट और खासतौर से सोशल मीडि‍या के विशेषज्ञों के साथ फेक कंटेंट को पकड़ने के लिए जाल फैकना सीखा। फेक कंटेंट को पहचानने और उसे इग्‍नौर करने के बेहद बारिक तरीकों के बारे में जानना दिलचस्‍प था।

इसके साथ ही सोशल मीडि‍या के इस्‍तेमाल को हम बेहद ही हल्‍के में लेते हैं, लेकिन ट्रेनिंग के दौरान हमें इसकी गहराई का अंदाजा हुआ। चाहे वो फेसबुक हो, ट्व‍िटर हो या यूट्यूब या कोई और प्‍लेटफॉर्म। इन्‍हें ऑपरेट करने के बेसिक तरीके के अलावा और भी बहुत फंक्‍शनों के बारे में जाना जिनका इस्‍तेमाल किया जाना आपको टेकसैवी और स्‍मार्ट इंटरनेट यूजर बनाता है और सुरक्षि‍त भी रखता है।

चाहे वो ट्विटर के लिस्‍ट और ट्वीडेक फीचर की बात हो या फेसबुक के इस्‍तेमाल की। चाहे वो यूट्यूब पर वीडि‍यो की वैरिफि‍केशन करना हो या गूगल पर फेक फोटो की पड़ताल हो।

इस ट्रेनिंग सक यह स्‍पष्‍ट हुआ कि न सिर्फ एक जर्नलिस्‍ट के तौर पर बल्‍कि बतौर आम यूजर हमें सोशल मीडिया और इंटरनेट का इस्‍तेमाल कितनी सतर्कता और स्‍मार्ट तरीके से करना है, जिससे हम दुनिया में फैलाए जा रहे झूठ का हिस्‍सा बनने से बच सकें।

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