दरअसल, सत्ता एवं सत्ता-पोषित बुद्धिजीवियों, इतिहासकारों, संचारकों इत्यादि के प्रोपेगंडा से लड़ने के लिए संघ के साथ समाज का वह अटूट भरोसा था, जो उसके हजारों कार्यकर्ताओं ने अपने जीवन की आहुति देकर कमाया था। समाज को समरस, स्वावलंबी, समर्थ, संगठित बनाने के लिए संघ समाज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उतर गया।