मोदी विपक्ष के लिए अपराजेय और पार्टी के लिए अपरिहार्य हो गए हैं

राकांपा प्रमुख शरद पवार का यह बयान वैसे तो सामान्य है कि वे मोदी या भाजपा विरोधी किसी गठबंधन का नेतृत्व नहीं करेंगे लेकिन गठबंधन बनता है तो मदद करेंगे।

अनेक विरोधी नेता सत्ता से भाजपा को हटाना चाहते हैं लेकिन नेतृत्व की दावेदारी से बचते हैं। क्यों? उन्हें उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम नरेंद्र मोदी को लेकर जनता की सोच का धीरे-धीरे एहसास हो गया है। चुनाव चाहे केंद्र का हो, राज्य का या स्थानीय निकाय का, मोदी सबसे बड़े मुद्दे के रूप में सर्वत्र उपस्थित हैं।

यह असाधारण स्थिति है जो देश में पिछले छह दशकों से ज्यादा समय से नहीं देखा गया। आखिर मोदी में ऐसा क्या है, जिससे ऐसी स्थिति पैदा हुई? थोड़ी गहराई से देखें तो नजर आएगा की नरेंद्र मोदी जब केंद्रीय सत्ता की दावेदारी में सामने आए थे तब उनके पक्ष और विपक्ष दोनों में लहर की स्थिति थी। पिछले आठ वर्षों में विरोध की लहर कमजोर हुई और पक्ष की मजबूत। इसका मतलब विपक्ष कमजोर हुआ तथा विरोधियों के एक बड़े समूह की धारणा मोदी को लेकर बदल गई। कुछ वर्ष पहले आप जहां जाते मोदी समर्थकों के साथ विरोधी भी उसी आक्रामकता से सामने आ जाते थे।

आज मोदी का विरोध होता है लेकिन उसमें आक्रामकता ही नहीं संख्या बल भी वैसी नजर नहीं आती। ज्यादातर विरोध औपचारिक होकर रह गए हैं। यह स्थिति केवल देश में नहीं विदेशों में भी है।

एक नेता ,जिसे देश और विदेश के विरोधियों ने महाखलनायक बना कर पेश किया वह धीरे-धीरे अपने कार्यों और भाषणों से इतनी बड़ी संख्या में लोगों का हृदय बदलने में कामयाब हुआ है तो इसे असाधारण परिवर्तन कहना ही मुनासिब होगा। भाजपा के लिए इसके पहले कोई नेता इस तरह अपरिहार्य नहीं माना गया।

पिछले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में आप जहां भी जाते मोदी का नाम सबसे ज्यादा सुनने को मिलता। ऐसे मतदाताओं की संख्या भी काफी थी जो कह रहे थे कि इस चुनाव में हम भाजपा को वोट नहीं देंगे लेकिन 2024 में मोदी हैं इसलिए उनके समर्थन में वोट जाएगा ही । इसका अर्थ यही है कि विधानसभा चुनाव में अगर भाजपा का ग्राफ किसी राज्य में पहले से कमजोर हुआ है तो उससे 2024 के अंकगणित का आकलन करना नासमझी होगी।

घोर विरोधी भी यह मानने को विवश है कि मोदी को हटा पाना टेढ़ी खीर है। विरोधियों की समस्या है कि वे हमेशा नरेंद्र मोदी का आकलन अपनी एकपक्षीय विचारधारा के चश्मे से करते हैं और यही विफल हो जाते हैं।

आप देश के किसी भी आदिवासी मोहल्ले में चले जाइए और पूछिए कि किसे वोट दोगे तो बिना सोचे स्त्री-पुरुष सब बोलेंगे कि मोदी को। उन सबकी आवाज ऐसी मुखर होती है कि जिन्हें मोदी के आविर्भाव के बाद समाज के मनोविज्ञान में आए परिवर्तनों का आभास नहीं हो वे दंग रह जाएंगे। दूसरी ओर आप बुद्धिजीवियों, पेशेवरों, वैज्ञानिकों, सैनिकों, किसानों, मजदूरों, कारीगरों, टैक्सी चालकों,  रिक्शा चालकों आदि के बीच जाएं तो उनके मुंह से भी मोदी समर्थन की आवाज निकलती है। महाविद्यालय -विश्वविद्यालय ही नहीं, स्कूली छात्रों के बीच जाइए तो वहां भी मोदी को लेकर रोमांच भाव दिखाई देता है।

उत्तर प्रदेश चुनाव के दौरान यादव समूह मुख्यतः सपा के पक्ष में था। लेकिन उनमें भी ऐसे लोग मिलते थे जो कहते थे कि मैं तो मोदी का समर्थन करना चाहता हूं, लेकिन प्रदेश का माहौल ऐसा है कि मेरा वोट माना ही नहीं जाएगा।

एक सेना का नौजवान मुझे मिला जिसने कहा कि मैं तो मोदीवादी हूं, क्योंकि मुझे मालूम है कि सेना और रक्षा के लिए उन्होंने क्या किया है लेकिन हमको सपा समर्थक बना दिया गया है। यह उदाहरण बताने के लिए पर्याप्त है कि मोदी किस तरह उन लोगों के दिलों दिमाग पर राज कर रहे हैं जिनकी अपनी कोई निश्चित दलीय निष्ठा या विचारधारा नहीं है।

वास्तव में नरेंद्र मोदी ने अपना बहुआयामी प्रतिभाशाली व्यक्तित्व प्रमाणित किया है। ऐसा नहीं है कि उन्होंने हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की विचारधारा से समझौता किया जिससे विरोधी भी समर्थक बने। इसके उलट हिंदुत्व और राष्ट्रवाद पर पहले की भाजपा सरकारों की नीतियों से ज्यादा स्पष्ट और मुखर होते हुए आम आदमी के कल्याण, विकास की सोच तथा विदेश व रक्षा नीति के बीच मोदी ने अपने कार्यों से संतुलन बनाया है।

मोदी को हिंदुत्व का हीरो मानने वाले प्रसन्न और संतुष्ट हैं तो दूसरी ओर उन्हें देश की रक्षा व विकास से लेकर विदेशों में भारत की धाक जमाने की उम्मीद करने वाले भी। कृषि कानून विरोधी आंदोलन के दौरान भले सतह पर दिखाई नहीं दिया लेकिन देश में कहीं चले जाइए आंदोलनकारियों के विरोध में आम किसान भी गुस्से में बोलते मिलते थे और उनके मन में मोदी के प्रति अपार सहानुभूति का भाव झलकता था।

जिन्हें विरोध करना है वो भले स्वीकार न करें, देश और विदेश का बहुमत इसे स्वीकार करता है। जरा सोचिए,  विपक्ष यदि महंगाई का मुद्दा उठाता है तो भारी संख्या में लोग कहते हैं कि हम महंगे तेल लेंगे लेकिन वोट मोदी को ही देंगे। ये सारे लोग न तो विक्षिप्त हैं न अज्ञानी और न ही उनकी जेबों पर महंगाई का दबाव नहीं पड़ता। उनका विश्वास है कि देश और हम मोदी के हाथों ज्यादा सुरक्षित हैं।

आलोचक कहते हैं कि मोदी भाषण अच्छा देते हैं और लोगों को सम्मोहित कर लेते हैं। थोथे शब्दों से कोई इतने लंबे समय तक जनता का ऐसा विश्वास हासिल नहीं कर सकता। जो देश गुजरात के मुख्यमंत्री रहते मोदी का बहिष्कार कर रहे थे वहां के नेता वैसी प्रशंसा कर रहे हैं जो हमारे यहां उनके समर्थक भी नहीं करते।

दुनियाभर में फैले भारतवंशियों के अंदर मोदी का क्रेज अभूतपूर्व है। केवल भाषणों से ऐसा नहीं हो सकता। हालांकि सच यह है कि विरोधियों की तरह मोदी के समर्थकों में भी बहुतायत ऐसे ही लोग हैं जो संपूर्णता में उनका मूल्यांकन नहीं करते।

आखिर एक साथ समाज के निचले तबके से लेकर ऊपर तक ,अनपढ़ से बुद्धिजीवी, सामान्य कारीगर, रिक्शा चालक से लेकर वैज्ञानिक और नौकरशाह तथा विदेशों के भारतवंशी एवं दूसरे देशों के नागरिक, नेता सब मोदी के बारे में इतनी सकारात्मक धारणा क्यों रखते हैं इसका अगर गहराई से अध्ययन किया जाए तो उत्तर मिल जाएंगे।

सोचिए इसके पहले किस प्रधानमंत्री ने मन की बात में ऐसे छोटे-छोटे मुद्दों और विषयों को उठाया जो हमारी आपकी जिंदगी से सीधे जुड़ीं हैं? परीक्षा पर चर्चा करते और छात्रों के प्रश्नों का विस्तार से उत्तर देते हुए कौन नेता देखा गया? उपग्रह प्रक्षेपण के समय अंतरिक्ष केंद्र में उपस्थित रहने का रिकॉर्ड पहले भी है लेकिन विफल हो जाने के बाद वहां जाकर वैज्ञानिकों को साहस व संबल देने का ऐसा कार्यक्रम पहले नहीं देखा गया।

80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन देने की योजना से देश में विवेकशील वर्ग सहमत नहीं, पर अनाज होते हुए भी गरीबों को मुफ्त पहुंचा देने का कार्य पहले तो नहीं हुआ। किसने किसानों के खाते में राशि पहुंचाई? धारा 370 हटाने के कट्टर समर्थक भी कल्पना नहीं करते थे कि उनकी जिंदगी में वे इसे साकार होते देखेंगे।

अयोध्या में मंदिर निर्माण हो ही जाएगा इसकी भी कल्पना नहीं थी। मोदी ने यह नहीं सोचा कि अयोध्या मंदिर निर्माण के फैसले के बाद तुरंत ट्रस्ट बनाकर निर्माण प्रक्रिया शुरू कराने, स्वयं भूमि पूजन में जाने तथा इसी तरह काशी विश्वनाथ का पुनर्निर्माण करने और वहां उद्घाटन में जाने का मुस्लिम देशों की सोच पर क्या प्रभाव होगा।
वे यह सब करते हुए भी निकट के मुस्लिम देशों से अच्छा संबंध बनाए हुए हैं। आप काशी विश्वनाथ धाम में चले जाइए आपको अंदर अनेक लोग कहते हुए मिल जाएंगे जियो मोदी.. मोदी जिंदाबाद।

अयोध्या श्रीराम के दर्शन कर लौटते समय लोगों के ऐसे ही शब्द आपको सुनने को मिल जाएगा। उनको वोट न देने वाले अनेक मुस्लिम मिल जाएंगे जो कहेंगे कि मोदी के कारण उनका जीवन चल रहा है। ऐसा नहीं है कि मोदी को एक सुगठित और सशक्त भाजपा विरासत में मिला था।

अंतर्कलह का शिकार एवं तेजी से लोकप्रियता खोती भाजपा विरासत में मिला था। इसमें दो राय नहीं कि संघ परिवार एक व्यापक संगठन है और चुनावी सफलता में उन सबकी शक्ति का योगदान है। यही ताकत पहले भी थी और भाजपा की लोकप्रियता लगभग खत्म हो रही थी।

एक साथ पार्टी को संभालना, यानी संगठन कौशल, नेतृत्व के स्तर पर प्रदेश से देश सही लोगों की तलाश, विचारधारा की पटरी पर पार्टी को लौटाना, उसे क्षमायाचना मुद्रा से बाहर ले जाना और सबके साथ सरकार में देश के अंदर और बाहर संतुलन बनाते हुए नेतृत्व करना असाधारण प्रतिभा का प्रमाण है। विपक्ष में इस तरह प्रतिभा का धनी कोई नेतृत्व सामने आए तभी लगेगा कि मोदी को वास्तविक चुनौती मिली है।

(आलेख में व्‍यक्‍त विचार लेखक के निजी अनुभव हैं, वेबदुनिया से इसका कोई संबंध नहीं है।)

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