काबिल-ए-तारीफ, मप्र की सजा-ए-मौत

* बच्ची का दुष्कर्मी चढ़ेगा फांसी के फंदे! 
 
 
'जब बचपन तुम्हारी गोद में आने से कतराने लगे, जब मां की कोख से झांकती जिंदगी बाहर आने से घबराने लगे तो समझो कुछ गलत है।' सेंसर बोर्ड अध्यक्ष प्रसून जोशी की यह कविता दुष्कर्म शिकार बच्चों की व्यथा कहने को लिए काफी है।
 
निश्चित रूप से मप्र सरकार का फैसला 12 साल या उससे कम उम्र की बच्चियों से दुष्कर्म या सामूहिक दुष्कर्म की सजा फांसी एक मील का पत्थर साबित होगी। इसके लिए विधानसभा में दंड विधि में संशोधन विधेयक लाया जाएगा तथा जमानत की धाराओं को और कड़ा किया जाएगा। 
 
मप्र का गृह विभाग धारा 376 में 2 नए प्रावधान 376 ए-ए तथा 376 बी-ए जोड़ेगा जिससे 12 वर्ष तक की बच्ची के साथ अकेले या सामूहिक दुष्कर्म पर मृत्युदंड जैसी कठोर सजा और जुर्माना भी हो सके, साथ ही लोक अभियोजक को सुने बिना आरोपी की जमानत नहीं हो पाए।
 
सुप्रीम कोर्ट भी कई मौकों पर छोटी बच्चियों से दुष्कर्म के बढ़ते मामलों पर चिंता जता चुका है। साथ ही सुझाव भी दे चुका है कि संसद छोटी बच्चियों से दुष्कर्म के दोषियों को कड़ी सजा देने के कानून बनाए और दुष्कर्म पीड़ित बच्चों को अलग से परिभाषित किया जाए।
 
बीते वर्ष 11 जनवरी को छोटी बच्चियों संग ऐसी घटनाओं पर चिंता जताते हुए ये सुझाव न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, जो अब सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश हैं, की अध्यक्षता वाली पीठ ने 'सुप्रीम कोर्ट वूमेन लॉयर्स एसोसिएशन' की याचिका पर दिए थे। 
 
हालांकि महिला वकीलों की मांग थी कि दुष्कर्मी का बंध्याकरण किया जाए जिस पर पीठ ने कहा था कि वह ऐसी अतिरिक्त सजा का आदेश नहीं दे सकती, क्योंकि ये काम संसद का है। लेकिन सरकार का रुख जानने के लिए अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी को बुलाया गया जिन्होंने कहा कि दुष्कर्म के ऐसे मामले किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं होंगे। संसद पहले ही चिंता जता चुकी है।
 
ऐसा लगता है कि मप्र में पहली बार बनने जा रहे इस कानून के बाद पूरे देश में ऐसी कोशिशें होंगी और बच्चियों से दुष्कर्म के मामलों में तेजी और सख्ती से निपटने के लिए मप्र का अनुकरण किया जाएगा। दक्षिण कोरिया तथा अमेरिका के 9 राज्यों सहित रूस और पोलैंड में बच्चों से दुष्कर्म करने वाले को बंध्याकरण की सजा दी जाती है। 
 
अब अमेरिका में बाल यौन दुष्कर्मियों के लिए हाल ही में अलग ही व्यवस्था बनाई गई है जिसमें पासपोर्ट पर अपराध का भी जिक्र होगा ताकि ऐसे अपराधियों को अंतरराराष्ट्रीय स्तर पर खुलेआम पहचाना जा सके। यह बदलाव 'इंटरनेशनल मेगान्स लॉ' की वजह से हुआ जिसे पिछले साल ही बच्चों का यौन शोषण रोकने और बच्चों के सेक्स टूरिज्म पर पाबंदी के मकसद से लागू किया गया। 
 
न्यू जर्सी की 7 साल की एक बच्ची मेगांस कांका की 1994 में एक यौन अपराधी ने हत्या कर दी थी जिस पर बहुत हो-हल्ला हुआ और एक कानून बना। अमेरिकी विदेश विभाग ऐसे बाल यौन दुष्कर्मियों के पासपोर्ट वापस लेकर नए मजमून के साथ छाप रहा है जिसके पिछले कवर के भीतरी हिस्से पर लिखा होगा- 'धारक को नाबालिग के खिलाफ यौन अपराध का दोषी माना गया है और वह अमेरिका के कानून में यौन अपराधी है।'
 
इधर राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी के आंकड़े कहते हैं कि वर्ष 2012 में 38,172 नाबालिग दुष्कर्म की शिकार हुई थीं और 2014 में ये आंकड़ा बढ़कर 89,423 तक पहुंच गया तथा वर्ष 2015 में भी बढ़कर 91,172 पर जा पहुंचा जिसमें से 42,520 यानी लगभग 4,550 प्रतिशत उनके यौन शोषण से जुड़े हुए थे। उसमें भी चौंकाने वाला तथ्य यह रहा कि 94 प्रतिशत घटनाओं में ऐसे अपराधी बच्चों के जानने-पहचानने वाले थे। उनमें भी 35 प्रतिशत पड़ोसी तो 10 प्रतिशत परिवार के सदस्य या रिश्तेदार थे। इन हालातों में बच्चियों से दुष्कर्म रोकना बहुत मुश्किल है।
 
निश्चित रूप से बिना कठोर कानून के ऐसे बैखौफ अपराधियों पर लगाम बेमानी होगी। अमेरिका और ब्रिटेन की तरह अब भारत सरकार दोषसिद्ध यौन अपराधियों की जानकारी ऑनलाइन करने की योजना बना रही है।
 
गृह राज्यमंत्री किरण रिजिजू ने गत वर्ष राज्यसभा में इस बाबत जानकारी में बताया था कि यौन अपराधियों के भारत में पंजीकर मसौदे की प्रमुख बातें अभी तय की जा रही हैं जिसमें सजायाफ्ता ऐसे अपराधियों का रिकॉर्ड होगा।
 
निश्चित रूप से भारत में बच्चियों से दुष्कर्म के मामले में सख्त सजा समय की दरकार है और इसमें मप्र के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की सरकार ने आगे बढ़कर सराहनीय पहल की है तथा यह तय है कि जल्द ही देशव्यापी ऐसा कानून बनेगा, जो नि:संदेह बाल यौन अपराधों पर प्रभावी लगाम भी होगा।
 

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