द्वापर युग में जन्मे श्रीकृष्ण के नाम का ध्यान मात्र ही उनकी विविध कलाओं और लीलाओं का बोध व सुखद अनुभूति कराता है। कृष्ण केवल अवतार मात्र न थे, अपितु एक युगनिर्माता, पथप्रदर्शक, मार्गदर्शक एवं प्रबंधक गुरू भी थे। सांस्कृतिक मूल्यों का विलुप्त होना या प्रासंगिकता खो देना युग विशेष की मांग होता है। झूठ, मक्कारी, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, धंधाखोरी, रेप, वर्तमान अराजकता की स्थिति में कृष्ण का दर्शन अथवा कृष्ण द्वारा कही बातें आज भी कितनी उपादेय हो सकती हैं, यह महत्त्वपूर्ण बात है।