ईवीएम, मतपत्र और घमासान

पहले जब चुनाव परिणाम एकतरफा आते थे तो बूथ कैप्चरिंग से लेकर तमाम फंडे गिनाए जाते थे। चूंकि ईवीएम नहीं थी और छापा लगता था, तो बूथ कैप्चरिंग की समस्या विकराल नजर आती थी। इसके निदान के लिए ईवीएम की खोज हुई, पर वो भी अटकलों में फंसी हुई है। इसलिए फिरसे मतपत्र की मांग होने लगी है । देखा जाए तो चुनाव परिणाम के पश्चात इस तरह की अटकलें कोई नई बात नहीं है। सभी दलों को अपने-अपने काडर को मैनेज करने के लिए कुछ तर्क रखने होते हैं। पार्टियां जीतने-हारने के पश्चात पूरी ऊर्जा अपने कार्यकर्ता और परंपरागत वोटरों को ध्यान में रखकर ही खर्च करती है। इस बात की पुष्टि समस्त पार्टियों के पुराने कोर काडर से की जा-सकती है कि बुरे-अच्छे वक्त पर कैसे उन्हें  इन्ही परम्परागत बातों से मैनेज किया गया।

मुख्यतः एकतरफा चुनाव परिणाम के सर्वमान्य कुछ कारण होते हैं, इनमें सहानुभूति लहर, एंटी इंकम्बेंसी और बहुकोणीय चुनाव इत्यादि।  आम मतदाता चुनाव में इन्ही बातों से प्रभावित होकर मतदान करता है। क्लीन स्वीप या एकतरफा जीत के समय एंटी इंकम्बेंसी का फायदा वहां के प्रमुख विपक्षी दल को मिलता है और यदि ऐसे में मुकाबला बहुकोणीय हो तो आम मतदाता के भर्मित होने से मतों का विभाजन हो जाता है। इस मत विभाजन की स्थिति में उसी पार्टी को लाभ मिलता है जो वहां सबल विपक्ष हो तथा उसका सुदृढ़ नेटवर्क हो। हालिया चुनाव में यही कुछ यूपी-पंजाब में हुआ जहां एंटी इंकम्बेंसी के साथ त्रिकोणीय मुकाबले हुए। उधर क्लीन स्वीप हुई जिसको समझने में एक्जिट पोल पुनः औंधे मुंह जा-गिरा और बचाव की लीपा-पोती में त्रिकालदर्शी मीडिया जाति-धर्म के आंकड़ों के साथ वोटों के विवेचन में लग गया जोकि सरासर प्रजातंत्र में पलीता लगाने का कार्य है। चुनाव आयोग को स्वतः संज्ञान लेकर सख्ती के साथ इस तरह के जाति-धर्म आधारित काल्पनिक मतगणना के भोंडे प्रदर्शन पर रोक लगाना चाहिए। नहीं तो, इससे समाज में दीवारें खड़ी हो जाएंगी जो हमारे लोकतंत्र की राह को ही बंद करने का काम करेंगी ।
 
चुनाव आयोग 2004 से समस्त लोकसभा-विधानसभा चुनाव में ईवीएम का प्रयोग करता आ-रहा है। इस समय अवधि में प्रतिवर्ष उप-चुनावों में भी निरंतर ईवीएम उपयोग होती रही है। सार्वजनिक क्षेत्र के दो प्रतिष्ठान, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड बेंगलुरु और इलेक्ट्रॉनिक्स कॉपरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड हैदराबाद के सहयोग से चुनाव आयोग को ईवीएम उपलब्ध की जाती है। ईवीएम एक एकल मशीन प्रणाली पर कार्यरत यूनिट होने से इसके टेंपरिंग या रिमोटली कंट्रोल होने के नगण्य चांस माने जाते हैं, इस हिसाब से इसे फुल प्रूफ वोटिंग यूटिलिटी भी माना जाता है। 
 
ईवीएम मेनुपुलेट हो जाने की चर्चा इस वक्त आम है पर ईवीएम की कंट्रोल यूनिट के एल्गोरिदम को ब्रेक कर परिणाम बदलने के लिए प्रत्येक ईवीएम के साथ कोई तकनीकी युक्ति संलग्न करना होगी जो कहने-बोलने में चाहे आसान लगे पर व्यवहारिक रूप में संभव नहीं है। कारण की इसके लिए कम्पनी या प्रशासन में व्यापक घुसपैठ चाहिए होगी जो की एक असंभव कार्य है। ईवीएम के एकल मशीन यानी स्टैंड एलोन मशीन होने की वजह से इसे रिमोटली कंट्रोल होने के अवसर भी शून्य माने जाते हैं।
 
चुनाव आयोग की निष्पक्षता जग जाहिर है और चुनाव काल में प्रशासन की मुस्तैदी, चौकसी जिस ऊंचाई पर रहती है उसे देखते हुए ईवीएम टेंपरिंग करना यानी दिन को रात बनाने के समान असंभव कार्य लगता है। खासकर चुनाव के दौरान लगे हुए कर्मचारी-अधिकारी उस समय इतने सतर्क रहते हैं कि अंजाने में भी किसी गलती को नहीं होने देंगे। फिर नौकरी दांव पर लगाकर कोई भी इतना जोखिम नहीं उठाएगा। दूसरा यह भी कि ईवीएम टेम्परिंग के लिए चुनाव प्रक्रिया में लगा पूरा अमला सेट करना होगा जोकि नामुम्किन है। क्योंकि वोटिंग के लिए बूथ पर लगने के पहले ईवीएम कई चरणों से गुजरती है, जिसमें टेस्टिंग, रेंडम नंबरिंग, मॉक वोटिंग इत्यादि प्रक्रिया है जिनमें प्रत्येक चरण पर विभिन्न कर्मचारी-अधिकारी होते है तथा राजनेतिक दलों के प्रतिनिधि भी इस प्रक्रिया की जांच में शामिल रहते हैं । ऐसे में इतने बड़े समूह को तोड़ना-मिलाना किसी भी तरह से गले नहीं उतर सकता।
 
देखा जाए तो 2004 से अबतक कोई ऐसा साक्ष्य सामने नहीं आया है कि चुनाव आयोग को देश के किसी एक बूथ की ईवीएम को भी जांच के घेरे में लेना पड़ा हो । यदि ईवीएम के रिजल्ट को बदला जा-सकता तो देश में आईटी के एक से बढ़कर एक धुरंधर हैं, जो विदेशों में भी परचम लहरा रहे हैं, उनके द्वारा तो इस पर जरूर प्रकाश डल गया होता ।

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