श्रेय लेने की राजनीति से बचना होगा

बोओगे बबूल और आम का पेड़ पाने की इच्छा रखोगे तो कितना संभव है। यह उक्ति सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर केंद्र की सत्तारुढ़ मोदी सरकार पर फिट बैठती है। सर्जिकल स्ट्राइक की थोथी वाहवाही लुटने और उसका राजनीतिक लाभ लेने का प्रयास नहीं किया होता तो शायद इतना बवाल ही नहीं मचता। 
अब जब सैनिकों की शहादत को भी राजनीति का घिनौना खेल बनाकर खेलने का माध्यम बना दिया गया है तो हर कोई इस खेल में बढ़-चढ़कर भाग लेगा और अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने का काम तो करेगा ही। यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि उड़ी हमले के बाद 29 सितंबर को भारतीय सेना द्वारा की गई सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर मौजूदा सरकार सुनियोजित ढंग से युद्धोन्माद पैदा करने की कोशिशों में जुट गई। 
 
होना तो यह चाहिए था कि सरकार अपनी गरिमा और जिम्मेदारी का निर्वाह करते हुए मीडिया और उन्मादी तत्वों को युद्धोन्माद फैलाने से बाज आने को कहती, लेकिन वह खुद मीडिया और उन्मादी तत्वों के साथ मिलकर युद्धोन्माद पैदा करने में जुट गई, जो बेहद चिंतनीय है। वोट की राजनीति के लिए किसी सरकार द्वारा सेना और शहीदों के इस्तेमाल की यह पहली नजीर कही जा सकती है।
 
मोदी सरकार को सेना द्वारा की गई इस सर्जिकल स्ट्राइक का राजनीतिक इस्तेमाल नहीं करना चाहिए था। शहीदों की शहादत का इस तरह से राजनीतिकरण होने लगेगा तो हर कोई अपने स्तर पर इसका लाभ लेने का प्रयास करेगा।
 
बता दें कि यूपीए सरकार के कार्यकाल में भी तीन बार सर्जिकल स्ट्राइक की गई थी लेकिन इस तरह का बवाल नहीं मचा था। इस मामलें में हर किसी का यही मानना है कि नियंत्रण रेखा के पार हुए सर्जिकल स्ट्राइक के मुद्दे का राजनीतिकरण करने से बचना चाहिए। 
 
इतना ही नहीं, कांग्रेस ने यूपीए के समय सीमापार किए गए सर्जिकल स्ट्राइक की तारीखों का भी खुलासा किया है। मुख्य विपक्षी दल कि मानें तो सुरक्षा बलों ने 1 सितंबर 2011, 28 जुलाई 2013 और 14 जनवरी 2014 को इस तरह की सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया था। इन तारीखों का खुलासा करते हुए साफ कहा कि 1 अगस्त 2011 को सीमापार से आए आतंकियों ने हवलदार जयपाल सिंह अधिकारी और लांस नायक देवेंद्र सिंह के सिर कलम कर दिए थे। इसके जवाब में 1 सितंबर 2011 को सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक किया था। 
 
इसी तरह 8 जनवरी 2013 को पाकिस्तानी सैनिकों ने लांसनायक हेमराज सिंह का सिर कलम कर दिया था और इसके जवाब में भी भारतीय सेना ने 28 जुलाई 2013 को सर्जिकल स्ट्राइक कर बदला लिया था, फिर 6 अगस्त 2013 को पुंछ में पाकिस्तानी जवानों ने 5 भारतीय सैनिकों की हत्या कर दी थी उसके एवज में 14 जनवरी 2014 को जवाबी कार्रवाई करके सर्जिकल स्ट्राइक कर बदला लिया गया था।
 
अबकि बार तो सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर ऐसा माहौल बना दिया गया है कि मानो पाक व आतंकवादियों को इस तरह से जवाब पहली बार दिया गया है। सत्तारूढ़ सरकार की ये जिम्मेदारी है कि वे अपने अवाम की रक्षा-सुरक्षा बेहतर तरीके से करे लेकिन उनकी सुरक्षा के लिए किए गए प्रयासों का राजनीतिक लाभ लेने की कुत्सित मानसिकता का परिचय नहीं दे। यह सरासर गलत है। यह बेहद घिनौना कृत्य है। इस कृत्य को जितना जल्दी हो सके बंद कर देना चाहिए। 
 
यह एक कटु सच है कि सरकार अपनी नाकामियों से जनता का ध्यान हटाने और उत्तरप्रदेश सहित चार राज्यों में होने वाले चुनावों में जीत दर्ज करने की नीयत से यह कृत्य कर रही है। एक सच्चाई यह भी है कि आजादी के आंदोलन में उपनिवेशवादी अंग्रेजों का साथ देने वाले आरएसएस-भाजपा अब सेना और शहीदों की कीमत पर अपने को देशभक्त दिखाना चाहती हैं लेकिन ये पब्लिक है ये सब जानती है। 
 
हालांकि जिस तरह से इस समय सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर तनाव का माहौल बन गया है या बना दिया गया है उसका जिम्मेदार भी केंद्र सरकार को ही ठहराया जा सकता है। आप को बता दें कि जिस तरह की बयानबाजी अभी की जा रही है कभी इसी तरह की बयानबाजी प्रधानमंत्री बनने के पूर्व नरेन्द्र मोदी भी भारतीय सेना के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणियां करके कर चुके हैं। अगर हम ये कहें कि इस पूरे प्रकरण में सरकार और मीडिया ने मिलकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की साख को बढ़ाने के बजाय कमजोर किया है और हमारे देश की स्थिति को पाकिस्तान के मुकाबले कमजोर बना दिया है तो गलत नहीं होगा। 
 
इस पूरे प्रकरण में सेना की सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल उठाने वाले कुछ विपक्षी नेताओं और सिविल सोसायटी एक्टिविस्टों के गैर-जिम्मेदाराना बर्ताव ने भी भारत की स्थिति को कमजोर बनाने और युद्धोन्माद भड़काने में अहम भूमिका निभाई है। हालात ऐसे बना दिए गए हैं कि इस पूरे मामले में राजनीति से हटकर वाजिब सवाल पूछना भी देशद्रोह करार दिया जा रहा है। यह स्थिति लोकतंत्र के लिए खतरनाक है। 
 
सेना के काम करने का अपना तरीका होता है। सेना को उसका काम करने देना चाहिए। सरकार, नेता व सिविल सोसायटी एक्टिविस्ट को अपना काम करना चाहिए। इन सबका काम स्वतंत्र, स्वावलंबी आर्थिक नीतियों के आधार पर गरीबी, बीमारी, कुपोषण, अशिक्षा, बेरोजगारी जैसी जड़ जमाकर बैठी समस्याओं को मिटाना है। सेना का राजनीतिकरण करना नहीं है। 
 
रहा सवाल जो लोग सर्जिकल स्टाइक का सबूत मांग रहे हैं असल में वे भी सेना की इस कार्रवाई पर कोई सवाल खड़ा नहीं कर रहे हैं बल्कि जिन लोगों ने सेना का राजनीतिकरण करने का प्रयास किया है उनसे उसी भाषा में बात करने का प्रयास भर कर रहे हैं। 
 
राहुल गांधी ने नरेन्द्र भाई मोदी पर सैनिकों के खून की दलाली का जो आरोप लगाया है, वास्तव में उसे भी सैनिकों का अपमान करार नहीं दिया जा सकता है बल्कि उसे सकारात्मक रूप में देखें तो यह उस नीति का ही कड़ा विरोध है, जो सेना का राजनीतिकरण करने की रही है। केजरीवाल भी इस बहती गंगा में हाथ धोने से महरूम क्यों रहते? वे भी तो एक राजनेता हैं। जब सेना द्वारा की गई कार्रवाई का राजनीतिक लाभ लेने की पहल की गई तो विपक्षी नेता भी क्यों चुप बैठने लगे? 
 
यहां सवाल तो यह भी उठता है कि सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर जो विवाद खड़ा हुआ है क्या उसने हमारी सरकार की साख को कम करने व पाकिस्तानी सरकार की बातों पर अधिक भरोसा व विश्वास जताने का काम किया है तो यह कहना भी सच नहीं है। जब इस मामले को लेकर राजनीति ही होने लग गई है तो फिर कौन क्या बोल रहा है, सरकार ने क्या ईमानदार पहल की है उसका निर्धारण स्वयं जनता कर लेगी। 
 
किसी के कुछ भी बोलने से कोई फर्क नहीं पड़ता है बल्कि जो उत्साहीलाल प्रवृत्ति के नेता हैं उनके ऊल-जुलूल बयान देने पर भी वक्त आने पर जनता उनको ठिकाने लगा देगी। जो लोग ये सवाल खड़ा कर रहे कि सीमापार किसी तरह की कोई कार्रवाई हुई ही नहीं है तो उनके मुंह पर भी एक टीवी चैनल का स्टिंग ऑपरेशन करारा तमाचा है।
 
काबिलेगौर हो कि पीओके में भारतीय सेना की सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर उठ रहे सवालों के चलते एक बड़ा खुलासा टीवी रिपोर्ट के स्टिंग ऑपरेशन में हो चुका है। इस खुलासे में एक वरिष्ठ पाकिस्तानी पुलिस अधिकारी ने भारतीय सर्जिकल स्ट्राइक की बात को सही मानते हुए बताया कि इसमें आतंकवादियों के साथ 5 पाकिस्तानी सैनिकों की भी मौत हुई। 
 
समाचार चैनल ने पाकिस्तान के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के खुलासे के हवाले से कहा कि न्यूज रिपोर्ट के मुताबिक गुलाम अकबर नाम के इस पाकिस्तानी पुलिस अधिकारी से चैनल के इन्वेस्टिगेशन एडिटर मनोज गुप्ता ने उच्चाधिकारी बनने का नाटक कर उससे सारी जानकारी उगलवाई। 
 
मीरपुर रेंज के पुलिस अधीक्षक स्पेशल ब्रांच गुलाम अकबर को रिकॉर्डिंग में यह कहते हुए साफ सुना जा सकता है कि 29 सितंबर की रात कई सेक्टरों में सर्जिकल स्ट्राइक हुई थी। स्टिंग ऑपरेशन में गुलाम अकबर ने कहा, सर वह रात का समय था। रात 2 से सुबह 4 या 5 बजे तक तकरीबन 3-4 घंटे तक हमला होता रहा। इसमें अकबर ने साफतौर पर कहा कि पाकिस्तानी सेना को इस हमले की भनक तक नहीं थी और इसी वजह से पाकिस्तानी सेना के भी 5 जवान हताहत हो गए या खो दिए। इतना ही नही,इन 5 सैनिकों के नाम तक बताए। हालांकि चैनल ने इन नामों को टेलीकास्ट नहीं किया।  इसके अलावा यह भी बताया कि स्ट्राइक में मारे गए आतंकवादियों के शवों को पाकिस्तानी सेना ने तुरंत हटा दिया था।
 
सनद रहे कि अकबर ने इन जगहों के नाम तक भी बताए, जहां सर्जिकल स्ट्राइक हुई थी। अकबर के अनुसार उस रात भीमबेर के समाना, पुंछ के हाजिरा, नीलम के दूधनियाल तथा हथियान बाला के कायानी में हमले हुए थे। सर्जिकल स्ट्राइक के बाद पाकिस्तानी सेना ने इन इलाकों की घेराबंदी भी की और पाकिस्तानी आर्मी शवों को एम्बुलेंस में भरकर ले गई जिन्हें आसपास के गांवों में ही दफना दिया गया। बता दें कि इसके पूर्व द इंडियन एक्सप्रेस अखबार ने भी सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर खुलासा किया था। 
 
बता दें कि सर्जिकल स्ट्राइक पर अमेरिका की चुप्पी ने भारत सरकार को करारा झटका दिया है। सर्जिकल स्ट्राइक के संबंध में अमेरिकी विदेश विभाग के प्रेस कार्यालय की निदेशक एलिजाबेथ ट्रूडी ने कहा कि हम सीमा से सटी घटनाओं पर कुछ बोलना नहीं चाहते। हम दोनों पक्षों से शांति बनाए रखने का आग्रह करते हैं। हमारा विश्वास है कि लगातार संपर्क साधने से तनाव कम हो सकता है। 
 
अमेरिका के इस रवैये के चलते ही हमारे नेताओं को भी इस मुद्दे पर राजनीति करने का मौका मिल गया और हौसला अफजाई हो गई। देश-विदेश से आने वाली विविध तरह की आवाजों ने भी हमारे प्रतिपक्ष के नेताओं को मोदी सरकार से इस कार्रवाई के प्रमाण मांगने पर मजबूर कर दिया है। विपक्षी नेताओं ने सर्जिकल स्ट्राइक के पुख्ता सबूत पेश करने का न केवल दबाव बनाया बल्कि इसके लिए मोदी सरकार को बाध्य भी कर दिया। 
 
हालांकि सच और झूठ का प्रमाण जनता को तो चाहिए नहीं लेकिन जो नेता इस पर अपनी रोटी सेंकने का काम कर रहे हैं, चाहे फिर वे सत्तारूढ़ पार्टी हों या विपक्षी दल सबके लिए यह घातक राजनीति साबित होगी। जो नेता पुख्ता सबूत पेश करने को लेकर सेना द्वारा की गई जवाबी कार्रवाई का वीडियो पेश करने की मांग कर रहे हैं, वे भी कुंठित मानसिकता का ही परिचय दे रहे हैं। 
 
इतना सब होने के बावजूद जो नेता सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर सबूत मांग रहे हैं, वे मेरी नजर में न केवल गलत कर रहे हैं बल्कि घिनौनी राजनीति करने का काम कर रहे हैं। हमारी सेना शानदार है, इसमें कोई दो राय नहीं है। बड़बोली मोदी सरकार को माफ कीजिए। 
 
सर्जिकल स्ट्राइक का वीडियो मत मांगिए। मैं तो कतई इस पक्ष में नहीं हूं कि सर्जिकल स्ट्राइक या सेना की किसी भी खुफिया कार्रवाई का वीडियो जारी किया जाए। ऐसा दुनिया में कहीं नहीं होता। मेरी जानकारी में तो होते नहीं देखा है। जो लोग वीडियो जारी करने मांग कर रहे हैं उनको फिर से यह सोचना चाहिए कि वे जो मांग कर रहे हैं, वह कितनी उचित है। इसके लिए उन्हें पुनर्विचार करना चाहिए। 
 
सरकार को किसी भी दल के दबाव-प्रभाव में न आकर सेना द्वारा की गई जवाबी पहल का वीडियो जारी नहीं करना चाहिए। गर राजनेताओं की राजनीति के चलते अगर वीडियो जारी कर भी दिया तो इसका लाभ कम, हानि अधिक होगी। इसके जारी होने से अनेक खतरे हैं। वीडियो सार्वजनिक करने से दुश्मन न सिर्फ आपकी कार्रवाई करने के तरीके, आपकी सामरिक तैयारी, आपके कमांडो की क्षमता-कमजोरी को समझ लेंगे बल्कि कश्मीर जैसे मामले में यह फुटेज भविष्य में बदली भू-राजनीतिक परिस्थितियों में अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत के खिलाफ एक हथियार के रूप में भी इस्तेमाल हो सकता है। 
 
यही वजह है कि एबटाबाद ऑपरेशन का वीडियो अमेरिकी सेना ने आज तक जारी नहीं किया है। ओसामा को अमेरिका के विशेष कमांडो दस्ते ने कैसे मार गिराया था इसकी भी वीडियो शूट की गई थी। इसके संबंध में अमेरिकी सरकार से कोई जानकारी मांगता है तो नहीं दी जाती है बल्कि सुरक्षा निरोधक कार्रवाई के दायरे में आने का खतरा बन जाता है। 
 
अमेरिकी कमांडो ने न सिर्फ इस पूरे ऑपरेशन को रिकॉर्ड किया था बल्कि इसकी लाइव स्ट्रीमिंग भी की थी जिसे व्हाइट हाउस में राष्ट्रपति ओबामा और उनके सुरक्षा सहयोगियों ने देखा था। अमेरिका ने हर एक जानकारी को परदे में रखा। मोदी सरकार को भी हर एक जानकारी परदे के अंदर रखने के साथ-साथ वीडियो फुटेज का सार्वजनिक करने की मांग सिरे से ठुकरा देना चाहिए।
 
इस पर श्रेय की राजनीति लेने का काम भी बंद कर देना चाहिए। मैं तो सरकार से यह भी अपेक्षा करता हूं कि अब वह भी सर्जिकल स्ट्राइक का ढोल बजाना बंद करे। मीडियाबाजी करके यह न बताए कि देखो हमने खुफिया ऑपरेशन कर दिया। पाकिस्तान के आतंकी अड्डों पर हमला कर उसके सैनिक भी मार गिराए हैं। मोदी सरकार की इसी नीति ने सब मटियामेट किया है। हमें यह बताने की क्या जरूरत है कि हमने इतना सब कर दिया है, पाक खुद चिल्लाएगा हमें बताने की जरूरत क्या है। 
 
केंद्र सरकार ने भी संकुचित दायरे से ऊपर उठकर काम नहीं किया तो यह कह सकते हैं कि सर्जिकल स्ट्राइक पर राजनीति हो रही है और होती रहेगी। मोदी सरकार को राजनीतिक परिपक्वता का परिचय देते हुए सूझबूझ से काम लेना चाहिए और राष्ट्रीय सुरक्षा व जनता के हित के चलते इस तरह के दावों का जोर-शोर से प्रचार करने से भी बचना चाहिए। 
 
अगर ऐसा नहीं कर पाए तो राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल, संजय निरुपम जैसे नेताओं को दोषी करार देने व उन पर सेना का अपमान करने जैसे आरोप लगाने का भी कोई अधिकार नहीं रह जाता है। इस मायने में देखा जाए तो सबसे पहले तो श्रेय लेने वाला ही गलत होगा विपक्षी तो बाद में गुनहगार करार दिए जा सकेंगे।

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