सिर्फ़ विशेष सत्र समाप्त हुआ है, विशेष एजेंडा क़ायम है?

इस रहस्य से कभी पर्दा नहीं उठ पाएगा कि देश और दुनियाभर में सनसनी फैलाते हुए पांच दिन के लिए संसद का विशेष सत्र क्यों तो बुलाया गया और फिर उसे चार दिन में ही क्यों समेट दिया गया! पांचवें दिन का क्या हुआ? आशंकाएं तो यही थीं कि पूरा सत्र इतनी गर्माहट से भर जाएगा कि उसे आगे बढ़ाना पड़ेगा। वैसा कुछ भी नहीं हुआ। अंत में जो नज़र आया वह यही था कि आक्रामक विपक्ष और जनता का मूड भांपते हुए सरकार ने अपने अघोषित एजेंडे पर रणनीतिक रूप से पीछे हटने का तय कर लिया।
 
ऐसा मान लेने में कोई हर्ज नहीं कि संसद की पुरानी इमारत से नए भवन में प्रवेश मात्र से प्रधानमंत्री न तो ज़्यादा लोकतांत्रिक हो गए और न ही पवित्र सेंगोल की उपस्थिति में उनका कोई हृदय परिवर्तन हो गया है। संसद का एक और विशेष सत्र बुलाने के निर्णय से पहले प्रधानमंत्री शायद पांच राज्यों के चुनाव परिणामों से रूबरू होना चाहते हैं। इसीलिए विधानसभा चुनाव लोकसभा जैसी तैयारियों से लड़े जा रहे हैं। इनके परिणाम ही अब लोकसभा चुनावों की तारीख़ें भी तय करेंगे?
 
याद किया जा सकता है कि बहुचर्चित विशेष सत्र की जानकारी संसदीय मंत्री प्रह्लाद जोशी द्वारा 31 अगस्त को टि्वटर के ज़रिए देश को उस समय दी गई थी, जब विपक्षी गठबंधन INDIA के नेता अपनी महत्वपूर्ण बैठक के लिए मुंबई में जमा थे। याद करने की दूसरी चीज़ यह है कि विशेष सत्र की शुरुआत के समय पुराने संसद भवन की लोकसभा में प्रवेश से ठीक पहले प्रधानमंत्री ने मीडिया की उपस्थिति में तीन-चार मिनटों में क्या कहा था!
 
प्रधानमंत्री ने कहा था : विशेष सत्र ऐतिहासिक होगा। समय के हिसाब से छोटा है, पर ऐतिहासिक निर्णयों का सत्र होगा। पचहत्तर साल की यात्रा नए मुक़ाम से हो रही है। 2047 तक देश को एक विकसित राष्ट्र बनाकर रहना है। रोने-धोने के लिए बहुत समय होता है, करते रहिए। भारत की विकास यात्रा में अब कोई विघ्न नहीं रहेगा।
 
सवाल यह है कि क्या विशेष सत्र ठीक वैसा ही साबित हुआ जैसा कि दावा किया गया था? ऐतिहासिक निर्णयों के नाम पर जो हासिल हुआ क्या उसी के लिए इतनी अटकलों और अफ़वाहों को जन्म दिया गया? इतनी सनसनी फैलने दी गई! कथित तौर पर अंग्रेजों की ग़ुलामी के प्रतीक पुराने संसद भवन से प्रधानमंत्री के सपनों के नए भारत को दर्शाने वाले नए भवन तक पैदल यात्रा किस ताक़त के प्रदर्शन के लिए की गई थी? कहीं ऐसा तो नहीं कि कुख्यात ‘नोटबंदी’ और त्रासदायी ‘लॉकडाउन’ जैसा ही कुछ चौंकाने वाला होना था, पर सरकार की हिम्मत आख़िरी क्षणों में जवाब दे गई?
 
प्रधानमंत्री ने अपनी वैश्विक महत्वाकांक्षाओं को इतना ऊंचा उठा दिया है कि वे अब उस जगह वापस नहीं लौट सकते जहां से उन्होंने सत्ता प्राप्ति की यात्रा प्रारंभ की थी। प्रधानमंत्री इस सचाई से बेख़बर नहीं होंगे कि पार्टी में उनकी ज़रूरत तभी तक क़ायम है जब तक वे उनके ‘व्यक्तिवाद’ का समर्थन करने वाले सांसदों-विधायकों को सत्ता में स्थापित करते रहने का सामर्थ्य दिखाते रहते हैं! अपने साथ पार्टी संगठन को भी उन्होंने सत्ताभिमुख कर दिया है।
 
प्रधानमंत्री पिछले चार दशक से अधिक समय से सत्ता की राजनीति से जुड़े हुए हैं। अतः इस तरह की मान्यताएं निर्विवाद हैं कि इतने लंबे कालखंड में विपक्ष दलों से कहीं ज़्यादा शत्रु उन्होंने अपनी ही पार्टी, संघ और उसके आनुषंगिक संगठनों में खड़े कर लिए हैं। ये सब भी विपक्षी पार्टियों की तरह ही उस क्षण की वापसी की प्रतीक्षा में हैं जिसे प्रधानमंत्री कभी लौटता हुआ नहीं देखना चाहेंगे। संसद का विशेष सत्र उसी क्षण को पीछे धकेलने की कोशिशों का एक असफल प्रयास माना जा सकता है!
 
विश्वासपूर्वक कहा जा सकता है कि अभी केवल संसद का विशेष सत्र ही ख़त्म हुआ है, प्रधानमंत्री का विशेष एजेंडा नहीं! एजेंडा पूरी तरह से क़ायम है और उसकी कार्यसूची की जानकारी भी सिर्फ़ प्रधानमंत्री को ही होगी। संभव है एजेंडे को लागू करने के लिए प्रधानमंत्री राहुल गांधी और विपक्षी गठबंधन INDIA के किसी कमज़ोर क्षण अथवा उसकी किन्हीं कमज़ोर कड़ियों के टूटकर बिखरने की प्रतीक्षा कर रहे हों। उन्हें निश्चित ही यक़ीन होगा कि शरद पवार, नीतीश कुमार, अखिलेश यादव और अरविंद केजरीवाल के कांग्रेस के साथ अविश्वास के संबंध और 2024 के परिणामों को लेकर विपक्षी दलों में व्याप्त भय की स्थिति भाजपा की मददगार साबित हो सकती है। 
 
विपक्षी दलों के बीच अपनी आवाज़ को और मज़बूत करने के लिए कांग्रेस के लिए ज़रूरी हो गया है कि दो महीने बाद होने जा रहे विधानसभा चुनावों में वह कर्नाटक जैसी ही जीत हासिल करके दिखाए। यही कारण है कि कांग्रेस को कमजोर करने के लिए तीनों राज्यों (मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़) में प्रधानमंत्री ने पार्टी की पूरी ताक़त को झोंक दिया है। यह बात अलग है कि इन राज्यों में कांग्रेस से मुक़ाबले के साथ-साथ पार्टी की अंदरुनी कलह से भी उन्हें निपटना पड़ रहा है। मोदी जानते हैं कि इन राज्यों में भाजपा की जीत या हार लोकसभा चुनावों के लिए जनता के बीच उनके तिलिस्म का प्रभाव भी तय करने वाली है।
 
अंत में : वास्तुशास्त्र और ज्योतिष में यक़ीन करना हो तो कुछ अनुभवी वास्तुविदों ने आशंकाएं व्यक्त की हैं कि नवनिर्मित संसद भवन में कई गंभीर वास्तु दोष हैं जो प्रधानमंत्री के तीसरे कार्यकाल के लिए बाधाएं उत्पन्न कर सकते हैं। यह भी कहा गया है कि नए संसद भवन में आयोजित हुए विशेष सत्र को अपेक्षित सफलता नहीं मिलने से मोदी के लिए बाधाओं की शुरुआत हो चुकी है।

उधर, कांग्रेस ने इरादे ज़ाहिर कर दिए हैं कि INDIA गठबंधन अगर सत्ता में आता है तो पुराने संसद भवन में वापसी कर सकता है। देखना यही बाक़ी रह जाता है कि कथित वास्तुदोषों और विपक्षी मंसूबों को विफल करने के लिए नरेंद्र मोदी आगे क्या करने वाले हैं!
(इस लेख में व्यक्त विचार/ विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/ विश्लेषण वेबदुनिया के नहीं हैं और वेबदुनिया इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं लेती है।)

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