क्या स्त्री का सौन्दर्य केवल पुरुषों की हितपूर्ति का माध्यम है?

मेरी राय में स्त्री की देह को भोग के लिए नहीं बनाया गया। प्रकृति ने प्रत्येक प्रजाति को  अपनी प्रगति तथा जीवित रहने के लिए समान अवसर संतानोत्पत्ति द्वारा दिया है, जो हर  प्रजाति में नर और मादा दो प्राणियों द्वारा संभव होता है।


 

यह प्रकृति को सुचारु रूप से  संचालित करने के लिए अतिआवश्यक है और संतानोत्पत्ति के लिए विपरीत लिंगियों में  आकर्षण होना भी अतिआवश्यक है, जो कि सभी प्राणियों में प्रकृति ने उनके हिसाब से  निर्धारित कर रखा है। सभी जीवित प्राणियों की देह अपने आप में अद्वितीय होती है। उसका  आकार-प्रकार दूसरे से भिन्न ही होता है।
 
इसी प्रकार मनुष्य प्रजाति में ही नर और मादा के बीच आकर्षण उत्पन्न करने के लिए स्त्री को  प्रकृति ने या ये कहें ईश्वर ने सौन्दर्य प्रदान किया और यही स्थिति पुरुषों के लिए भी है। परंतु  मेरी नजर में भारतीय पुरातन और वैदिक कथाओं के अनुसार जो ज्ञान मुझे है उसके अनुसार  स्त्री की देह को भोग की विषयवस्तु पुरुषों ने ही अपने लोभ और हितपूर्ति के लिए बनाया। 
 
उर्वशी, मेनका, रंभा मुख्य रूप से तथा और भी बहुत-सी स्त्रियां अप्सराएं थीं। देवराज इन्द्र ने  अपनी हितपूर्ति के लिए उनकी देह का या ये कहें उनके सौन्दर्य का उपयोग किस तरह किया,  यह विस्तार से बताने की आवश्यकता नहीं है।
 
दूसरी बात यह कि स्त्री अपने शरीर को माध्यम बनाकर स्वयं ही खुश हो लेती है तो अपने  शरीर को देखकर खुश सभी को होना चाहिए (दिव्यांगों के बारे में अपवाद हो सकता है)। पर  क्या आपको नहीं लगता कि जब सतयुग से लेकर कृष्णयुग तक स्त्री की देह को (शिखंडी)  पुरुषों द्वारा अपनी हितपूर्ति का माध्यम बनाया गया तो इतने युगों तक माध्यम बनते-बनते  स्त्री ने अपनी देह को माध्यम बनाकर खुश होने की कला विकसित कर भी ली हो तो कोई बड़ी  भूल तो नहीं की होगी।
 
जब पुरुष, स्त्री की देह से अपने हित साधने में चिरंतन काल से लगे हुए हैं तो यदि स्त्री अपनी  देह को माध्यम बनाकर अपने खुद के हित साधती है तो इसमें आपत्ति क्या है?
 

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