समय परिवर्तनशील है। समय के साथ इंसान बदल जाता है, इंसानी जीवन के तौर-तरीके बदल जाते हैं। यही कारण है कि जो इंसान एक समय में नंगा घूमा करता था, कंद-मूल खाकर अपना पेट भरता था, आज वही इंसान विज्ञान की प्रगति के कारण इतना सक्षम हो गया कि उसने अपने जैसी हूबहू मशीन का आविष्कार करके पूरी दुनिया को दंग कर दिया है। जो एक समय अकल्पनीय था, आज वह सब हमारी आंखों के सामने साकार होता दिख रहा है।
वह मशीन ओर कोई नहीं रोबोट यानी कृत्रिम मानव ही है। जो भले ही हमारी तरह सांस नहीं लेते हो, जो हमारी तरह खाना नहीं खाते हो और जिसके चोट आने पर हमारी तरह जिस्म से खून का संवहन नहीं होता हो, पर कार्य के मूल्यांकन के लहजे से यह मशीन इंसानों से कई गुना आगे है।
ऐसे रोबोटों का आविष्कार कोई कम आश्चर्यजनक नहीं था कि सऊदी अरब जैसे इस्लामिक मुल्क ने हाल ही में एक रोबोट को नागरिकता देकर सबको सकते में डाल दिया है। ऐसा करके सऊदी अरब रोबोट को नागरिकता देने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है। नागरिकता प्राप्त करने वाले रोबोट का नाम सोफिया है जिसे हेसन रोबोटिक्स ने बनाया है। इस रोबोट की सबसे खास बात यह है कि यह आपके दैनिक कामों के अलावा सवालों के जवाब भी देता है।
गौरतलब है कि सऊदी अरब जैसे कट्टर देश जिसके दरवाजे किसी भी धर्म, जाति, समुदाय के लोगों के लिए बंद रहते हैं, जहां महिलाओं को खुला जीवन जीने का अधिकार नहीं है, वहां इसके विपरीत रोबोट को नागरिकता देकर वे सभी अधिकार देना, जो वहां की महिलाओं को नहीं हैं, सऊदी अरब में आंतरिक विरोध का कारण बन सकता है।
यह खबर सुनकर हर किसी की भविष्य के प्रति चिंता और बढ़ गई है। एक तो पहले ही हर क्षेत्र में मशीनीकरण के बढ़ते प्रयोग ने मानव को बेरोजगार कर दिया है, वहीं ऐसे अधिक बुद्धिमानी और कार्य निष्पादन में तीव्र रोबोट के बढ़ते निर्माण और प्रयोग के कारण मानव के न केवल काम पर संकट गहराने लग गया है, बल्कि उसके अस्तित्व पर भी संकट के बादल मंडराने लग गए हैं, क्योंकि आज रोबोट्स न सिर्फ ऑफिस के अंदर, बल्कि ऑफिस के बाहर भी लोगों की नौकरियां छीनने में लगे हैं। इससे चिंता जताई जा रही है कि पूरी दुनिया में रोजगार का ग्राफ नीचे आने वाला है। साल 2020 तक कई रोजगार ऐसे होंगे, जो ऑटोमेशन के शिकार हो जाएंगे, तो कुछ ऐसे भी होंगे जिनका अस्तित्व तो होगा लेकिन इनका स्वरूप मानव के लिए एकदम नया होगा।
प्यू की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिकियों को डर है कि रोबोट उनकी नौकरी पर सेंध लगा रहे हैं। यही कारण है कि ज्यादातर अमेरिकी स्वचालित कार और रोबोट के इस्तेमाल को लेकर झिझक रहे हैं। इसी रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में जिस तरह से ड्राइवरलेस कार का चलन बढ़ रहा है, उससे लगता है कि बहुत जल्द अमेरिका की सड़कों पर केवल ड्राइवरलेस कार का ही कब्जा होगा। अगर ये बदलाव आया तो ट्रैक्सी ड्राइवर और दूसरों की कार चलाने वालों की नौकरी पर खतरा आना तय है।
रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका के 56 फीसदी लोग यह मानते हैं कि 10 से 50 साल के अंदर पूरे अमेरिका में ड्राइवरलेस कारें ही चलेंगी जबकि 9 फीसदी अमेरिकियों के मुताबिक 10 साल के अंदर ही सड़क पर केवल ड्राइवरलेस कार दिखाई देंगी। रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका में अब तक 2 प्रतिशत लोगों की नौकरी जा चुकी है। वहीं जो लोग घंटे के एवज में वेतन पाते थे, उनके काम करने के समय को 5 प्रतिशत तक कम कर दिया गया है। 18 से 24 साल के युवाओं में 6 प्रतिशत की नौकरी ऑटोमेशन के चलते नहीं रही, जबकि 11 प्रतिशत युवाओं के काम करने के घंटों में कटौती कर दी गई है।
इतना ही नहीं, लंदन में तो अब डिलीवरी बॉय तक की नौकरियों पर संकट नजर आने लगा है। यहां रोबोट्स खाने-पीने की सामग्री घर-घर पहुंचाने का काम सफलतापूर्वक करने लगे हैं। ‘स्टारशिप’ नाम की एक टेक्नोलॉजी कंपनी का 6 पहियों वाला रोबोट सड़क मार्ग से कई बाधाएं पार करते हुए पार्सल लेकर घर पहुंच जाता है। अपने खास सेंसर की मदद से वह किसी से टकराता भी नहीं और सिग्नल्स भी बखूबी पार कर लेता है।
यह जरूर है कि जहां हमारे डिलीवरी बॉय किसी पार्सल को पहुंचाने में ज्यादा से ज्यादा 20 मिनट लेने का दावा करते हैं, वहीं ये रोबोट अधिकतम 30 मिनट का समय ले रहा है। दरअसल, यह साढ़े 6 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से अपना रास्ता तय करता है ताकि किसी दुर्घटना का शिकार न हो। हालांकि गति की तरह ये जिम्मेदारी में डिलीवरी बॉय से किसी भी मामले में कम नहीं हैं। अगर कोई पार्सल चुराने का प्रयास करे तो ये उसकी तस्वीर ले सकता है, जो सीधे पुलिस कंट्रोल रूम को भेजी जा सकती है।
ऐसा ही हाल कुछ समय बाद भारत में भी देखने को मिलेगा। सोचनीय बात यह है कि जब रोबोट सारा काम कर लेंगे तो इंसानों के पास क्या काम रह जाएगा? क्या इंसान रोबोट का अंधाधुंध आविष्कार करके अपने ही पैरों पर तो कुल्हाड़ी नहीं मार रहे हैं? क्या तकनीकी विकास और विज्ञान की उन्नति का ये दुरुपयोग तो नहीं है? क्या अब हमें रुक नहीं जाना चाहिए? ऐसे कई सवाल हर किसी के मस्तिष्क में पैदा होने लग गए हैं।
याद कीजिए रजनीकांत की फिल्म 'रोबोट' को, जिसमें एक रोबोट कैसे अपनी जिद पर तहस-नहस कर देता है। किस तरीके से आसानी से कोई व्यक्ति रोबोट का गलत उपयोग करके निर्दोषों की जान के साथ खेलता है। अब यहां यह भी सोचने लायक बिंदु है कि आज सऊदी अरब ने रोबोट को नागरिकता दे दी है, कल को यदि यह रोबोट किसी इंसान के साथ शादी करने पर उतर आए तो क्या सऊदी अरब इसकी भी मंजूरी दे देगा? और मान लें कि मंजूरी दे भी दी तो कोई स्त्री या पुरुष रोबोट के साथ वैवाहिक संबंध बनाने के लिए राजी हो जाएगा?
बेशक, परिवर्तन ही संसार का नियम है लेकिन तकनीकी विकास के इस क्रम में हमारी प्राथमिकता मानव ही होनी चाहिए। गौर करने वाली बात तो यह भी है कि आज रोबोट इंसान बन रहे हैं कि इंसान रोबोट? मशीनों से जैसे-जैसे हम घिरते जा रहे हैं, वैसे-वैसे हमारी मानवीय संवेदनाएं दम तोड़ती जा रही हैं और तनाव, क्रोध व चिढ़चिढ़ापन बढ़ता जा रहा है। जिस काम को मानव करने के लिए उपलब्ध है, वहां रोबोट को लगाकर हम मानव से रोबोट को अधिक तवज्जो दे रहे हैं। ऐसे में हमें रोबोट बनाम मानव की इस लड़ाई के अंत के विनाशकारी पहलू को ध्यान में रखकर रुक नहीं जाना चाहिए?
(लेखक जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर में अध्ययनरत हैं।)