कबीर संगत साधु की, नित प्रति कीजै जाय : जीवन में संगति सुंदर रखें

कबीर संगत साधु की, नित प्रति कीजै जाय 
दुरमति दूर बहावासी, देशी सुमति बताय 
 
बचपन में हमसे अपने घर में यदि कोई अवांछित हरकतें होतीं तो हमें कोसने के साथ साथ हमारी संगति को भी बखाना जाता। गुस्से में कहा जाता- इनकी संगति ही ख़राब है। किसके संग रह कर सिखा यह सब? यहां तक कि हमारी सखी-सहेलियों की जात-बिरादरी और पुश्तें गिनवा दी जातीं। 
 
तब से ही ये बात दिमाग में घर कर गई थी  कि संगति का बड़ा गहरा असर पड़ता होगा जीवन में। तभी तो बड़े हमेशा संगति पर नजर रखते हैं। आज इसी संगति का असर, पूरी दुनिया में अपना असर दिखा रहा है। और कोरोना में तो और भी ज्यादा। अब तो साथ रह कर भी दूर -दूर रहने को मजबूर हम आज इस संगति विषय पर ही बात करते हैं क्योंकि मनुष्य जीवन की उन्नति संगति से ही होती है। संगति  से उसका स्वभाव परिवर्तित हो जाता है। संगति ही उसे नया जन्म देता है। जैसे, कचरे में चल रही चींटी यदि गुलाब के फूल तक पहुंच जाए तो वह देवताओं के मुकुट तक भी पहुंच जाती है। ऐसे ही महापुरुषों के संग से नीच व्यक्ति भी उत्तम गति को पा लेता है।
 
 -तुलसीदास जी ने कहा हैः
 
 जाहि बड़ाई चाहिए, तजे न उत्तम साथ। ज्यों पलास संग पान के, पहुंचे राजा हाथ।।
 
जैसे, पलाश के फूल में सुगंध नहीं होने से उसे कोई पूछता नहीं है, परंतु वह भी जब पान का संग करता है तो राजा के हाथ तक भी पहुंच जाता है। इसी प्रकार जो उन्नति करना चाहता हो उसे महापुरुषों का संग करना चाहिए।
 
-कबीर संगति साधु की, निष्फल कभी न होय |
ऐसी चंदन वासना, नीम न कहसी कोय ||
 
संतों की संगत कभी निष्फल नहीं होती । मलयगिर की सुगंधी उड़कर लगने से नीम भी चन्दन हो जाता है, फिर उसे कभी कोई नीम नहीं कहता।
 
-एक घड़ी आधी घड़ी, आधी में पुनि आध |
कबीर संगत साधु की, कटै कोटि अपराध ||
 
एक पल आधा पल या आधे का भी आधा पल ही संतों की अच्छी संगत करने से मन के करोडों दोष मिट जाते हैं ।
 
-कोयला भी हो उजला, जरि बरि हो जो सेत |
मूरख होय न अजला, ज्यों कालम का खेत ||
 
कोयला भी उजला हो जाता है जब अच्छी तरह से जलकर उसमे सफेदी आ जाती है। लकिन मुर्ख का सुधरना उसी प्रकार नहीं होता जैसे ऊसर खेत में बीज नहीं उगते।
 
-ऊंचे कुल की जनमिया, करनी ऊंच न होय |
कनक कलश मद सों भरा, साधु निन्दा कोय ||
 
जैसे किसी का आचरण ऊंचे कुल में जन्म लेने से, ऊंचा नहीं हो जाता । इसी तरह सोने का घड़ा यदि मदिरा से भरा है, तो वह महापुरुषों द्वारा निन्दित ही है।
 
-साखी शब्द बहु तक सुना, मिटा न मन का मोह |
पारस तक पहुँचा नहीं, रहा लोह का लोह ||
 
ज्ञान से पूर्ण बहुतक साखी शब्द सुनकर भी यदि मन का अज्ञान नहीं मिटा, तो समझ लो पारस-पत्थर तक न पहुंचने से, लोहे का लोहा ही रह गया।
 
-सज्जन सो सज्जन मिले, होवे दो दो बात |
गदहा सो गदहा मिले, खावे दो दो लात ||
 
सज्जन व्यक्ति किसी सज्जन व्यक्ति से मिलता है तो दो दो अच्छी बातें होती हैं। लकिन गधा गधा जो मिलते हैं, परस्पर दो दो लात खाते हैं ।
 
कबीर विषधर बहु मिले, मणिधर मिला न कोय |
विषधर को मणिधर मिले, विष तजि अमृत होय ||
 
सन्त कबीर जी कहते हैं कि विषधर सर्प बहुत मिलते है, मणिधर सर्प नहीं मिलता। यदि विषधर को मणिधर मिल जाए, तो विष मिटकर अमृत हो जाता है।
 
-जेा रहीम उत्तम प्रकृति का करि सकत कुसंग
चंदन विष ब्यापत नहीं लिपटे रहत भुजंग 
 
अच्छे चरित्र के स्वभाव बालों पर बुरे लोगो के साथ का कोई असर नहीं होता। चंदन के वृक्ष पर सांप लिपटा रहने से विष का कोई प्रभाव नहीं होता है।
 
-रहिमन जो तुम कहत थे संगति ही गुण होय,
बीच ईखारी रस भरा रस काहै ना होय ।
 
रहीम कहते हैं कि संगति से गुण हेाता । पर कभी कभी संगति से भी लाभ नहीं होता। ईख के खेत में कड़वा पौधा अपना गुण नहीं छोड़ता।  दुष्ट कभी अपना जहर नहीं त्यागता है।
 
-ओछे को सतसंग रहिमन तजहुं अंगार ज्यों
तातो जारै अंग सीरे पै कारो लगै ।
 
नीच की संगति आग के समान छोड़नी चाहिए। जलने पर वह शरीर को जलाती है और बुझने पर वह कालिख लगा देती है ।
 
-रहिमन ओछे नरन सों बैर भलो न प्रीति
काटे चाटे स्वान को दुहुं भांति बिपरीत।
 
बुरे लोगों से दुश्मनी और प्रेम दोनों हीं अच्छा नहीं होता। कुत्ता को मारो या दुत्कारो तो वह काटता है और पुचकारने पर चाटने लगता है। वह दोनों अवस्था में खराब ही है। 
 
-कदली सीप भुजंग मुख स्वाति एक गुण तीन
जैसी संगति बैठिये तैसोई फल दीन।
 
स्वाति नक्षत्र का बूंद कदली में मिलकर कपूर और समुद्र का जल सीपी में मिल कर मोती बन जाता है वही पानी सांप के मुंह में विष बन जाता है। संगति का प्रभाव जरूर पड़ता है। जैसी संगति होगी-वैसा ही फल मिलता है।
 
-ससि की शीतल  चांदनी सुंदर सबहिं सुहाय
लगे चोर चित में लटी घटि रहीम मन आय ।
 
चन्द्रमा की शीतल चांदनी सबों को अच्छी लगती है पर चोर को यह चांदनी अच्छी नहीं लगती है। बुरे लोगों को अच्छाई में भी बुराई नजर आती है।
 
-रहिमन लाख भली करो अगुनी अगुन न जाय
राग सुनत पय पियतहुं सांप सहज धरि खाय।
 
दुष्ट की लाख भलाई करने पर भी उसकी दुष्टता अवगुण नही जाती है।सांप को बीन पर राग सुनाने और दूध पिलाने पर भी वह सपेरा को डस लेता है।
 
-रहिमन नीचन संग बसि लगत कलंक न काहि
दूध कलारी कर गहे मद समुझै सब ताहि ।
 
दुष्ट, नीच के संग रहने से किसे कलंक नहीं लगता। शराब बेचने बाली कलवारिन के घड़े में दूध रहने पर भी लोग उसे शराब ही समझेंगें। सज्जन व्यक्ति को दुर्जन से दूर ही रहना चाहिए।
 
-मूढ मंडली में सुजन ठहरत नहीं विसेख
श्याम कंचन में सेत ज्यों दूरि किजियत देख।
 
मूर्खों की मंडली में सज्जन लोग अधिक समय तक नहीं रह सकते हैं। काले बालों के बीच में यदि कोई सफेद बाल दिख जाये तो उसे तुरंत उखाड़  कर दूर कर दिया जाता है। सज्जन व्यक्ति अपने सही स्थान पर ही ठहर पाते हैं।
 
अधम बचन ते को फल्यो बैठि ताड की छांह 
रहिमन काम न आइहै ये नीरस जग  मांह|
 
अधर्म की बातें किसी को फल नहीं देती। अधर्मी का आश्रित होना ताड़ की छाया में बैठने जैसा बेकार है। नीच लोगों द्वारा बहुत संग्रह कर ताकतवर हो जाने पर वह बहुत दिनों तक काम नहीं देता।यह संसार क्षणभंगुर है।
 
-रहिमन उजली प्रकृति को नहीं नीच को संग
करिया वासन कर गहे कालिख लागत अंग।
 
अच्छे लोग को नीच लोगों की संगति नहीं करनी चाहिए। कालिख लगे बरतन को पकड़ने से हाथ काले हो जाते हैं। नीच लोगों के साथ बदनामी का दाग लग जाता है।
 
-कहु रहीम कैसे निभै बेर केर को संग
वे डोलत रस आपने उनके फाटत अंग।
 
बेर और केला एक जगह साथ नहीं रह सकते। बेर की डाली जब हवा में झूमती है तो वह केले के पत्ते को फाड़ देती है। केले का अंग जख्मी हो जाता है।सज्जन और दुर्जन एक साथ नही रह सकते। दुर्जन के संग रहने पर सज्जन को भी अपमानित होना पड़ता है।
 
-बसि कुसंग चाहत कुशल यह रहीम जिय सोस
महिमा घटी समुद्र की रावण बस्यो परोस ।
 
दुष्ट लोगों के साथ रहने पर कुशलता की कामना नहीं करनी चाहिए। समुद्र के पड़ोस में रावण के रहने पर समुद्र की महत्ता भी घट गई। राम की सेना समुद्र को लांघ कर लंका गई। बुरे लोगों से हमेशा दूर रहना चाहिए।
 
-अनुचित उचित रहीम लुध करहि बड़ेन के जोर
ज्यों ससि के संयोग ते पचवत आगि चकोर ।
 
बड़े लोगों की सहायता से कभी कभी छोटे लोग भी बड़ा काम कर लेते हैं, जैसे चन्द्रमा के प्रेम से सहयोग से चकोर भी आग खा कर पचा लेता है।
 
-रीति प्रीति सबसों भली बैर न हित मित गोत
रहिमन याही जनम की बहुरि न संगति होत ।
 
सबों से प्रेम का संबंध रखने में भलाई है ।दुश्मनी का भाव रखने में कोई भलाई नहीं। इसी जीवन में यह प्रेम संभव है।पता नही पुनः मनुष्य जीवन मिले या नही -तब हम कैसे संगी साथी के साथ संगति रख पाएंगे? 
 
-जब लगि जीवन जगत में सुख दुख मिलन अगोट
रहिमन फूटे गोट ज्यों परत दुहुन सिर चोट ।
 
जब तक संसार में जीवन है हमें सबसे मिलजुल कर रहना चाहिए-इससे सारे दुख भी सुख में बदल जाते हैं। अलग रहने से सुख भी दुख में बदल जाता है। चैपड़ के खेल में अकेली गोटी मर जाती है और समूह बाली गोटी बच जाती हैं।
 
महाजनस्य संसर्गः, कस्य नोन्नतिकारकः। 
पद्मपत्रस्थितं तोयम्, धत्ते मुक्ताफलश्रियम् ॥
 
महापुरुषों या अच्छी संगति का सामीप्य किसके लिए लाभदायक नहीं होता, कमल के पत्ते पर  पड़ी हुई पानी की बूंद भी मोती जैसी शोभा प्राप्त कर लेती है।
 
हमारा देश, इसका ज्ञानकोष, संस्कृति, शास्त्र, पुराण, वेद, काव्य-महाकाव्य और इतिहास ऐसी ही कितनी शिक्षाप्रद हीरे-मोती  सी बातों को अपने गर्भ में छुपा कर बैठा हुआ है।ये एक महासागर, महा समुद्र है इसमें जितने गहरे गोते लगाओगे उतने रत्न हमारे हाथ लगेंगे। ये वो रत्न हैं जो आपके जीवन को अपने अनुभव की कहासुनी से आसन,सरल और सहज बना देंगे।  

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