सत्ता पर जब सनक हावी होती है तो वह कुछ भी नहीं देखती है, ठीक यही हाल इस समय प्रदेश की सरकारों का है, लेकिन इन सबमें अव्वल यदि कोई है तो मप्र की सरकार जिसकी बागडोर शिवराज सिंह चौहान के हाथों है। लॉकडाउन के चलते जो क्षेत्र कोरोना संक्रमितों से बचे हुए थे वे भी अब सत्ता की अकर्मण्यता, स्वार्थपरता के कारण संक्रमितों की संख्या में शामिल होते जा रहे हैं।
लॉकडाउन एक, दो और अब तीन प्रारंभ हो चुका है, लेकिन जिस उद्देश्य के लिए लॉकडाउन घोषित किया जा रहा है। अब उस उद्देश्य की सरकारें अपने-अपने हथकंडों से शवयात्रा निकालने पर अमादा हो चुकी हैं।
कोरोना संक्रमितों की संख्या उफान मार रही है। दिन-प्रतिदिन आंकड़ों में वृध्दि होती जा रही है, वहीं प्रदेश की सरकार पता नहीं किस भ्रम में जी रही है कि आए दिन आत्मघाती फैसले लिए जा रही है?
जहां यह देखने में आ रहा है कि प्रदेश के अन्य राज्यों में फंसे श्रमिकों/नागरिकों और छात्रों को सरकार वापस बुला रही है लेकिन उन्हीं में से कुछ के संक्रमित होने की रिपोर्ट आ रही है। अब ऐसे में लोगों को मौत के मुंह में झोंकना नहीं है तो क्या है?? होम क्वारेंटाईन में बरती जा रही व्यापक लापरवाही और लोगों द्वारा उसका पालन न करना अपने घर-परिवार, गांव-शहर को जोखिम में डालना नहीं है तो क्या है?
प्रश्न कई सारे हैं कि -जब वापस लिवाए जा रहे लोगों में से कोई एक संक्रमित पाया जाएगा तो क्या उस चेन को पकड़ना क्या आसान कार्य होगा??
इस कदम को उठाने से कारगर यदि कोई कार्य था तो वह यह था कि विभिन्न राज्य सरकारों से बातचीत कर अपने नागरिकों के लिए व्यवस्था और आर्थिक मदद कर उन्हें राहत पहुंचाएं। लेकिन सरकार ने इसके इतर वोटबैंक की राजनीति को अपना हथियार बनाने का मार्ग चुना क्योंकि सरकार को लग रहा है कि इस काल में भी इन लोंगों को वापस प्रदेश लाने की व्यवस्था कर वोटबैंक के तौर पर स्थापित किया जा सकता है।
लोगों ने जिस गंभीरता के साथ पहले लॉकडाउन का पालन एवं स्वास्थ्य दिशा-निर्देशों पर अमल करने की दृढ़ प्रतिबद्धता को साकार किया। उससे यह प्रतीत हो रहा था कि कोरोना के इस संकट को मात देने में अप्रत्याशित सफलता अर्जित की जा सकेगी। किन्तु दूसरे लॉकडाउन के बाद से ही जिस तरीके की छटपटाहट और भय का माहौल चाहे वह राजनैतिक तौर पर संवेदनहीनता के कारण निर्मित किया गया हो या कि "भूख की लाचारी" के कारण उत्पन्न हुआ हो। जिसके कारण वापस अपने मूलस्थान की ओर पलायन को विवश भीड़ जत्थे पर जत्थे जिससे जैसे बन पड़ा वह वैसे ही चल पड़ा। यह सरकार की नाकामी और विफलता का ही परिचायक है। अन्यथा न तो लोगों को पलायन के लिए विवश होना पड़ता और न ही इस तरह की संकट में डालने वाली स्थितियां निर्मित होती। असलियत यह है कि इन निर्णयों से लोग बेहद डरे और सहमें हुए हैं कि आखिर सरकार करना क्या चाह रही है? जहां आप एक ओर संकट से लड़ने के लिए स्वास्थ्य, पुलिस प्रशासन सहित समस्त इकाइयां प्राण हथेली पर रखकर लॉकडाउन के पालन को सुनिश्चित करवाने के लिए लगी हुई हैं वहीं इस तरह लिए जा रहे निर्णय संकट की अनिश्चितता और आशंका को बढ़ा ही रहे हैं।
चाहे राजस्व वसूली के उद्देश्य से शराब की दुकानों को खोलने की इजाजत हो और उसके बाद शराब के लिए बेचैन लोगों की मूर्खता की अंतिम पराकाष्ठा का दृश्य कंपकंपा देने वाला है। या कि अन्य राज्यों से श्रमिकों को ले आने की बात हो यह सब बिल्कुल ही मूर्खतापूर्ण तरीका है जो सभी के प्राणों को संकट में डालने वाला कदम है।
सरकारें तो अकर्मण्य हैं ही अन्यथा ऐसी स्थितियां कैसे निर्मित हो पाती। लेकिन इसके इतर भी यह सच है कि हमारे देश के लोगों से भी धैर्य की अपेक्षा भी कैसे की जा सकती है??
लोगों को तो कुछ कहिए ही न। क्योंकि वे पगलाए जा रहे हैं, जहां हैं वहां सुरक्षित हैं। लेकिन उन्हें अब घर दिख रहा है भले ही वे खुद के तो प्राण संकट में डाल ही रहे हैं बल्कि वे जहा जाएंगे वहां तक अपने संक्रमित होने की मुसीबत मोल ले रहे हैं।
जब चाहिए था कि सरकार पर आर्थिक सहायता और राज्य सरकारों से मूलभूत आवश्यकताओं की आपूर्ति के लिए दबाव बनाया जाता तब वे पलायन और वापसी के लिए दबाव बनाने पर जुटे रहे जिस कमी को सरकार ने अपने से पूरी कर बकायदे स्वागत के लिए नव प्रवेश द्वार खोल दिए।
राज्यों की सरकारों ने दूसरे राज्यों की जनता के साथ दोहरापन दिखलाते हुए जिस तरह से अपनी जिम्मेदारी से पिंड छुड़ाने का अमानवीय व्यवहार किया है वह राजनैतिक कुटिलता की सीमाओं को लाँघ चुका है। कोरोना के इस महासंकट में जिस प्रकार के राजनैतिक हालात देखने को मिले उससे साफ-साफ यह स्पष्ट हो जाता है कि भले ही हम प्रस्तावना के शब्दों-"लोककल्याणकारी राज्य" या एकता और अखंडता तथा बिना भेदभाव के संघीय ढांचे की बात करते हों लेकिन विपत्ति ने यह स्पष्ट कर दिया है कि राजनैतिक स्वार्थपरता और कुटिलता ने अपने जो रंग दिखलाएं हैं, उससे यह चीज सिध्द होती नजर आई है कि सारी बातें धरातल पर आते ही हवा-हवाई ही साबित होने लग जाती हैं।
अब जब अन्य राज्यों से लोगों की प्रदेश में वापसी हो रही है तो देश की प्रारंभिक इकाई-ग्रामीण स्तर तक संक्रमण की आशंका बढ़ सी गई है। अतएव यदि अब पर्याप्त सतर्कता, सावधानी, होम क्वारेंटाईन एवं दिशा-निर्देशों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित नहीं करवाया जाता है तो संकट को व्यापक स्वरूप अख्तियार करने में देर न लगेगी!
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