अब ‘एक देश, एक पार्टी' की ओर बढ़ते कदम?

श्रवण गर्ग

शुक्रवार, 12 जून 2020 (22:31 IST)
देश इन दिनों कई मोर्चों पर एक साथ लड़ाइयां लड़ रहा है! सरकार चीन के साथ बातचीत में भी लगी है और साथ ही सीमाओं पर सेना का जमावड़ा भी दोनों ओर से बढ़ रहा है। नागरिकों को इस बारे में न तो कोई ज़्यादा जानकारी है और न ही आवश्यकता से अधिक बताया जा रहा है। प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्रियों के साथ वीडियो वार्ताओं को विराम दे रखा है। राष्ट्र के नाम कोई संदेश भी वे प्रसारित नहीं कर रहे हैं। जनता धीरे-धीरे महामारी से लड़ने के लिए आत्मनिर्भर बन रही है और भगवान से प्रार्थना के लिए धार्मिक स्थलों के पूरी तरह से खुलने की प्रतीक्षा कर रही है। अब वह संक्रमण और मौतों के आंकड़ों को भी शेयर बाज़ार के सूचकांक के उतार-चढ़ाव की तरह ही देखने की अभ्यस्त होने लगी है।

जनता को इस समय अपनी जान के मुक़ाबले ज़्यादा चिंता इस बात की भी है कि जैसे-जैसे लॉकडाउन ढीला हो रहा है और किराना सामान की दुकानें खुल रही हैं, सभी तरह के अपराधियों के दफ़्तर और उनके गोदामों के शटर भी ऊपर उठने लगे हैं। इनमें राजनीतिक और साम्प्रदायिक अपराधियों को भी शामिल किया जा सकता है जिनकी की गतिविधियां इस बात से संचालित होती हैं कि ऊपर सरकार किसकी है। सड़कों से प्रवासी मज़दूरों की भीड़ लगभग ख़त्म हो गई है। उनकी जगह नए फ़्रंट लाइन वारीयर्स ले रहे हैं जिनकी कि पीपीई के रंग और सर्जिकल इंस्ट्रुमेंट अस्पतालों से अलग हैं।

और अंत में लड़ाई का मोर्चा यह कि इस सब के बीच देश का जागरूक विपक्ष (कांग्रेस) ट्विटर-ट्विटर खेल रहा है और सरकार का सक्रियता से ऑनलाइन विरोध कर रहा है। वह राजनीति के बजाय देश की अर्थव्यवस्था को लेकर ज़्यादा चिंतित है और जानी-मानी हस्तियों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए ज्ञान-वार्ता में जुटा हुआ है। कोई संजय भी उसे नहीं बता पा रहा है कि मध्यप्रदेश की बॉक्स-आफिस सफलता के बाद अब भाजपा अपने शीर्ष नेतृत्व के मार्गदर्शन में बाक़ी ग़ैर-कांग्रेसी सरकारों को भी गिराने में लगी हुई है। गृहमंत्री कोरोना नियंत्रण के साथ-साथ बिहार और बंगाल के चुनावों की तैयारी में भी लगे हैं।

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के श्रीमुख को समर्पित यह आडियो-वीडियो क्लिप लॉकडाउन के प्रतिबंधों का मख़ौल उड़ते हुए तेज़ी से वायरल हो ही चुकी है जिस समय कोरोना का प्रदेश-प्रवेश हो चुका था, स्वास्थ्य मंत्री तुलसीराम सिलावट के नेतृत्व में किस तरह कांग्रेस के बाग़ी बंगलुरु में बैठकर अपनी ही सरकार को गिराकर जश्न मनाने की तैयारी कर रहे थे। अब वैसी ही तैयारी महाराष्ट्र और राजस्थान के लिए जारी है। गुजरात में राज्यसभा चुनावों के मद्देनज़र दल-बदल सम्पन्न हो ही चुका है।

महाराष्ट्र तो कोरोना मामलों में देश में सबसे ऊपर है पर सत्ता की राजनीति को इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। पिछले साल नवम्बर में जब तमाम कोशिशों के बाद भी देवेंद्र फड़नवीस की सरकार को जाना पड़ा था तो अमृता फड़नवीस ने एक ट्वीट किया था जिसकी कि आरम्भिक कुछ पंक्तियां इस तरह थीं:’ पलट के आऊंगी शाख़ों पे ख़ुशबुएं लेकर, ख़िज़ां की ज़द में हूं मौसम ज़रा बदलने दो।’ महाराष्ट्र में मौसम कभी भी बदला जा सकता है।
प्रधानमंत्री बार-बार कह रहे हैं कि महामारी ने हमारी जीवन शैली को पूरी तरह से बदलकर रख दिया है। और कि कोरोना के बाद हमारी ज़िंदगी पहले जैसी नहीं रहने वाली है। इसके आगे की बात देश की जनता के लिए समझने की है कि महामारी के बाद लोगों का जीवन ही नहीं पार्टियों का जीवन भी बदल सकता है। भारत तेज़ी के साथ ‘एक देश, एक पार्टी' की ओर कदम बढ़ाता हुआ नज़र आएगा।

श्रीमती इंदिरा गांधी भी यही कहती थीं कि एक मज़बूत केंद्र के लिए राज्यों में भी एक ही पार्टी की सरकारों का होना ज़रूरी है। पर तब भाजपा विरोध में थी। इस बात से बड़ा फ़र्क़ पड़ता है कि किस समय कौन सत्ता में है और कौन विपक्ष में। जनता को कोरोनावायरस के फैलने की चिंता से मुक्त हो जाना चाहिए। ऐसा और भी काफ़ी कुछ है जो फैल रहा है जिसे कि जनता पकड़ नहीं पा रही है। (इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)

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