JNU : आज जवानी पर इतराने वाले कल तू पछताएगा

अनिरुद्ध जोशी

मंगलवार, 19 नवंबर 2019 (16:21 IST)
धर्म के खिलाफ कम्युनिज्म बहुत सी जगह खड़ा है और बहुत सी जगह साथी बनकर लड़ा है। बाजारवाद और पूंजीवाद के खिलाफ साम्यवाद ने उसी तरह के हथियारों का उपयोग किया है जिस तरह के हथियारों का उपयोग पूंजीवाद ने किया है। आपको सिक्का पलटने की जरूरत है और मामला साफ हो जाएगा। कुछ लोगों को हथियार बेचना, तो कुछ लोगों को प्रॉडक्ट बेचना है। लेकिन कुछ ऐसे लोग हैं जिन्हें किसी भी देश के टुकड़े करके सत्ता हासिल करना है या संपूर्ण क्षेत्र को कमजोर करना है। छात्रों की प्रतिभा का राजनीतिज्ञ अपने हित में कैसे इस्तेमाल करते हैं, यह जानना छात्रों के लिए जरूरी है।
 
 
आप जेएनयू हो या हांगकांग पॉलिटेक्निक यूनिवर्सिटी या किसी भी कस्बे के आर्ट एंड कॉमर्स कॉलेज के छात्र का टेस्ट ले लीजिए कि वे कितना साम्यवाद को जानते हैं? कितना धर्म को या कितना पूंजीवाद के विषय में जानते हैं? उन्होंने क्या पढ़ा है? उन्हें स्कूल-कॉलेज में जो घुट्टी पिला दी गई है, बस उसे ही वह सच्चा ज्ञान मानकर आगे बढ़ रहे हैं और वे भी आंदोलनकारी नेता बनकर देश पर राज करने के सपने देख रहे हैं। मतलब अच्छा कार्य करके नहीं, बल्कि आंदोलन करके आप नेता आसानी से बन सकते हो। आपको याद होगा सोशल मीडिया के जरिए सीरिया, इराक और मिस्र में भी छात्रों का आंदोलन हुआ था। क्या हुआ उन देशों का? दुनिया के ऐसे कई देश हैं, जहां के छात्रों ने देश को बर्बाद कर दिया है।
 
 
दुनिया में हांगकांग एक बहुत बड़ी अर्थव्यस्था बनकर उभर गया था। वैश्विक वित्तीय केंद्र होने के नाते हांगकांग में जारी अस्थिरता का असर आज पूरी दुनिया के व्यापार पर पड़ना शुरू हो गया है। अंत में यह कि जो छात्र आंदोलन कर रहे हैं, वे सभी बेरोजगार ही रहने वाले हैं। अब उनके पास रोजगार का कोई विकल्प नहीं होगा। वे जिन अंतरराष्ट्रीय राजनीतिज्ञों का मोहरा बने हुए हैं, वे ही अब उन्हें हथियार मुहैया कराएंगे और अतत: संपूर्ण हांगकांग को भविष्य में बर्बाद ही होना है। इससे चीन को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है।
 
 
आजकल कॉलेजों में क्या होता है? उपद्रव करना, धरना देना या संसद मार्च करना। अपने ही देश को गाली देना, परंपराओं को दकियानुसी समझना, सरेआम किस करना या किस करने वालों के खिलाफ जनमोर्चा निकालना, सरकार को इसलिए गाली देना, क्योंकि उन्हें अपने लीडरों की नजर में ऊंचा उठना है। खासकर अफवाहें फैलाना और लोगों को विद्रोह के लिए भड़काना सबसे महत्वपूर्ण कार्य है।

अब एक और बात यह कि कविता, कहानी और सड़क पर नाटक खेलने के जरिए तथाकथित रूप से अपना बौद्धिक प्रदर्शन करके आम लोगों और नए छात्रों को अपनी विचारधारा से जोड़ना जरूरी होता है, क्योंकि जनसमर्थन से ही जनविद्रोह को जगाया जा सकता है। यह भी जरूरी है कि मानवाधिकार के लोगों से भी आपके संपर्क बने रहें।
 
 
मैं जब 9वीं में था तभी से सोचता था कि देश के स्कूल और कॉलेजों में पढ़ना व्यर्थ है। खासकर सरकारी स्कूल और कॉलेजों की ओर तो देखना भी नहीं चाहिए, क्योंकि वहां के छात्र पढ़ते नहीं बल्कि दिनभर राजनीति और गुंडागर्दी ही करते रहते हैं। छात्रों के अपने-अपने गुट होते थे। हर गुट का अपना पैनल या राजनीतिक संगठन से जुड़ाव रहता था। आज भी ऐसा ही है।
 
 
अब कोई यह सवाल कर सकता है कि आप कहते हैं कि सरकारी कॉलेजों में छात्र पढ़ते ही नहीं है तो फिर वे कैसे उच्च अधिकारी या राजनीति के उच्च पद पर चले जाते हैं? कैसे वे बड़े पत्रकार और शिक्षक, प्रोफेसर आदि बन जाते हैं? आप कैसे कह सकते हैं कि स्कूल और कॉलेजों में पढ़ना व्यर्थ है? आपकी कोई विचारधारा नहीं है क्या?
 
 
पहले प्रश्‍न का जवाब यह है कि यदि कोई बड़ा वैज्ञानिक बन गया है तो जरा देखिए कि उसने अपनी जिंदगी में कैसे पढ़ाई की और कैसे वह छात्र राजनीति से बचकर रहा? एक बहुत बड़ा सॉफ्‍टवेयर इंजीनियर बनने के लिए लिए उसने किस कॉलेज और स्कूल में पढ़ाई की? आप मानते हैं कि इस देश में बहुत बड़ा नेता बनने के लिए बहुत पढ़ाई करना होती है? क्या आप मानते हैं कि एक सामान्य शिक्षक या प्रोफेसर बनने के लिए कोई जुगाड़ नहीं होती है? क्या आप नहीं जानते हैं कि कॉलेजों में किस तरह कोई अपनी पीएचडी पूरी करता है? क्या आप नहीं जानते हैं कि कोई दबंग छात्र कैसे चीट करके आगे बढ़ जाता है और कोई पढ़ाकू कैसे मोटा-मोटा चश्मा लगाकर भी पीछे रह जाता है?
 
 
दूसरे सवाल का जवाब कि आप किसी भी विचारधारा के हों, आपने देश के लिए क्या किया? आंदोलन, धरना, संसद मार्च, तोड़फोड़, हिंसा, सरेआम सेक्स प्रदर्शन, परंपरा की दुहाई देना, मूर्ति तोड़ना, अफवाह फैलाना और राजनीतिज्ञों के इशारों पर विद्रोह भड़काना? दरअसल, विचारधाराएं ही मानवता और विज्ञान की हत्यारी हैं। क्यों नहीं आप एक वैज्ञानिक बनना चाहते हो? क्यों नहीं आप लोगों की सेवा करना चाहते हो? क्यों नहीं आप एक बिजनेसमैन बनकर लाखों लोगों को रोजगार देना चाहते हो?
 
 
आप खुद से पूछें सवाल कि मैं क्यों किसी विचारधारा से प्रभावित हूं? यदि हूं तो क्या मैंने उस विचारधारा को भी अच्छे से समझा है जिसका कि मैं विरोधी हूं? क्या मेरी कोई स्वतंत्र सोच नहीं है? क्या मैं सोचने की क्षमता नहीं रखता, जो मुझे किसी से प्रेरणा लेने की जरूरत पड़ रही है? क्या मैं मानसिक रूप से गुलाम नहीं हूं? क्या मुझे छला नहीं जा रहा है? मेरी प्राथमिक जिम्मेदारी क्या है? ऐसे कई सवाल हैं, जो छात्रों को खुद से पूछना चाहिए और आत्ममंथन करना चाहिए।
 
 
तेरे कंधे पर चढ़कर ही बनेंगे कई महान राजनेता लेकिन तू... आज जवानी पर इतराने वाले कल तू पछताएगा... चढ़ता सूरज धीरे-धीरे ढलता है, ढल जाएगा...!

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