सीरिया में बशर अल असद की सत्ता के पतन पर संपूर्ण विश्व के आम लोग हैरत में होंगे। यद्यपि वहां पिछले डेढ़ दशक से गृह युद्ध चल रहा था लेकिन इसका आभास नहीं था कि अचानक सब कुछ पलट जाएगा। समाचार के अनुसार बशर अल असद और उनका परिवार रूस में है और राष्ट्रपति पुतिन ने उन्हें अपने यहां शरण दी है। उनका परिवार कुछ दिन पहले ही रूस चला गया था। हालांकि यह भी आशंका उठाई गई थी कि उनके विमान को तुर्किये द्वारा दिए गए अमेरिकी मिसाइल से मार गिराया जा सकता है।
सत्ता से उखाड़ने वाला हयात तहरीर अल-शाम या एचटीएस एक कट्टर जेहादी इस्लामवादी समूह है। इसने नवंबर के अंत में शायद अब तक का सबसे बड़ा संघर्ष आरंभ किया। पिछले ही दिनों समाचार आया कि सीरिया के सबसे बड़े शहर अलेप्पो सहित अनेक शहरों पर उसका नियंत्रण होता जा रहा है। 8 दिसंबर को अंततः राजधानी दमिश्क भी उसके कब्जे में आ गया। सहसा लोगों को इन समाचारों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि बशर शासन में सेना के अधिकारी या तो समर्पण कर रहे हैं या फिर भाग रहे हैं।
अब इस बात की पुष्टि हो गई है कि ज्यादातर अधिकारी इराक भाग गए। ये अधिकारी सद्दाम हुसैन के काल में असद के निकट और हितैषी माने जाते थे। सीरिया के निकट भविष्य में क्या होगा इस समय कहना जरा कठिन है। सत्ता उखाड़ने के बाद किसी भी मुस्लिम देश में स्थिरता का इतिहास नहीं है।
इतना कहा जा सकता है कि आम लोगों को भले आश्चर्यजनक लगे लेकिन इसकी संभावना पूरी तरह दिखाई देने लगी थी। अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने स्पष्ट कहा कि सीरिया में हो रही घटनाओं से हमारा कोई मतलब नहीं होना चाहिए क्योंकि यह न हमारी लड़ाई है और न सीरिया हमारा कभी दोस्त रहा है। जो बिडेन प्रशासन की नीति इससे भिन्न है।
अमेरिका इस पूरे संघर्ष के मूल में था और ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद क्या होगा कहना कठिन है पर तत्काल उसकी वहां सर्वप्रमुख भूमिका है। हयात तहरीर अल-शाम के प्रमुख अबू मोहम्मद अल जोलानी ने तो अमेरिकी टीवी सीएनएन से बातचीत में कहा है कि हमें बसर अल असद को सत्ता से हटाने का काम दिया गया था और यही हमारा लक्ष्य था। इसके पहले भी वह सीएनएन पर आ चुका था।
सीएनएन टेलीविजन पर उसका साक्षात्कार होना ही बड़ी बात थी। एचटीएस पहले ओसामा बिन लादेन द्वारा स्थापित अलकायदा से जुड़ा था। इसका लक्ष्य क्या हो सकता है यह बताने की आवश्यकता नहीं। ध्यान रखिए, जोलानी ने इराक में अमेरिका के विरुद्ध अलकायदा के आतंकवादी के रूप में ही संघर्ष किया था। अमेरिका ने 2018 में एचटीएस को विदेशी आतंकवादी संगठन घोषित कर जोलानी पर एक करोड डॉलर का इनाम रखा था। जोलानी का पूरा साक्षात्कार देखे तो उसमें वह कह रहा है की सीरिया में ईरान ने बशर अल असद को नए सिरे से शक्ति दी और रूस ने उसमें पूरा सहयोग किया। एक आतंकवादी आतंकवादी समूह के द्वारा सीरिया की सत्ता पर कब्जा कर रहा है और उसे प्रमुख देशों का समर्थन मिल रहा है
आरंभ में इसने तुर्किये से लगे हुए इदलिब प्रांत पर हमला किया। अलेप्पो समेत कई शहरों पर कब्जा करने के बाद जिस तरह कुछ घंटे में राजधानी दमिश्क में झंडा फहरा दिया उसका अर्थ था कि इसकी पूरी तैयारी पहले से की गई थी और उसमें सहयोग भी था। वास्तव में पिछले कई वर्षों से इन सबको तुर्किये में प्रशिक्षण मिल रहा था। अगर तुर्किये जैसा देश बसर अल असद के विरुद्ध विद्रोहियों को प्रशिक्षण और संसाधन दे और उन्हें बड़े-बड़े देश जिनमें अमेरिका, सऊदी अरब, ब्रिटेन, फ्रांस, इजरायल, कतर, नीदरलैंड आदि से केवल राजनीतिक नहीं सैन्य समर्थन भी प्राप्त हो जाए तो फिर इनकी विजय होनी ही थी।
ध्यान रखिए, रूस के सबसे सुरक्षित चार सैनिक अड्डे सीरिया में हैं यानि इसके पीछे रस को भी कमजोर करने की रणनीति है। गृह युद्ध में पहले से ही सीरिया का एक बड़ा हिस्सा कुर्द लड़ाकों के नियंत्रण में था जिन्हें अमेरिका समर्थन देता है और इसे तुर्किये का भी समर्थन है। यह एक सुन्नी संगठन है जिसके माध्यम से अमेरिका पूरे पूर्वी सीरिया को लगभग नियंत्रित कर रहा था। इसराइल ने बीच-बीच में आवश्यकता अनुसार हमले किए। कुर्दों की अपनी लड़ाई जारी रही। व पहले से ज्यादा शक्तिशाली थे।
आरंभ से लेकर अभी तक की स्थिति समझने के लिए यह जानना आवश्यक है कि सीरिया में 2011-12 से गृह युद्ध क्यों आरंभ हुआ? अरब में अमेरिका और यूरोपीय देशों के संबंध थोड़ा जटिल हैं। अमेरिका और उसके साथी देश कतर से गैस को तुर्किये होकर जॉर्डन और सीरिया से यूरोप तक पाइपलाइन ले जाना चाहते हैं। लक्ष्य है कि यूरोप की रूस के प्राकृतिक गैस पर निर्भरता समाप्त हो। कम से कम ठंड के दिनों में तो यूरोप रूस पर निर्भर न रहे और उसे दूसरे विकल्प उपलब्ध हों।
दूसरी ओर रूस अपने साथियों के लिए 5600 किलोमीटर गैस पाइपलाइन ईरान, इराक, सीरिया के रास्ते निर्मित करना चाहता था। इससे रूस की स्थिति मजबूत होती तथा ईरानी अर्थव्यवस्था भी सशक्त होता। तो निष्कर्ष यही है कि पूरे संघर्ष का एक बड़ा कारण ये गैस पाइपलाइन योजनाएं ही हैं। रूस द्वारा बशर को समर्थन का प्रमुख कारण यही रहा है। दरअसल, बशर अल असद ने 2010 में कतर की ओर से आए पाइपलाइन प्रस्ताव को नकार दिया क्योंकि वह यूरोप में रूस के व्यापारिक हितों के पक्ष में थे।
अमेरिका ने किसी तरह बशर अल असद को हटाने की कोशिश की। ऐसी स्थिति पैदा करने की कोशिश हुई ताकि या तो वे इस्तीफा दें या उनके विरुद्ध विद्रोह हो जाए। वर्ष 2011 में, जिसे अरब स्प्रिंग कहा गया, वहां के सरकारों के खिलाफ विद्रोह पूरे क्षेत्र में यूं ही नहीं फैला था। ट्यूनीशिया में शासन पलट गया तथा यमन, बहरीन और सीरिया में महंगाई, परिवारवाद, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों को सतह पर लाकर जो विरोध प्रदर्शन हुए वो हमारी स्मृतियों में हैं। विद्रोही समूहों को अमेरिका, यूरोप और तुर्की का पूरा समर्थन था। सीरिया के सहयोग में ईरान, लेबनान का हिजबुल्ला और रूस था।
2012 में बराक ओबामा के शासन काल में मान लिया गया था कि बसर अल असद का शासन खत्म होने ही वाला है। तत्कालीन विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने इसकी घोषणा भी कर दी थी। इसके बावजूद 12 वर्ष तक असद टिके रहे तो इसी कारण क्योंकि ईरान हिज्बुल्ला और रूस का उन्हें समर्थन मिलता रहा तथा आईएएस के कारण इसका खात्मा अमेरिका एवं यूरोपीय देशों के लिए प्रमुख लक्ष्य हो गया। लेकिन जब इजरायल के संघर्ष में हिज्बुल्ला लगभग खत्म है, ईरान इस समय सीधे संघर्ष में उलझने की स्थिति नहीं में नहीं और रूस यूक्रेन में फंसा हुआ है तो फिर बशर अल असद का बचना कठिन था।
वैसे बशर अल असद का शासन बहुत ज्यादा लोकप्रिय भी नहीं था। 50 वर्षों तक उनके परिवार के शासन में सीरिया कई अरब देशों से काफी पीछे चला गया। आर्थिक एवं सामाजिक समस्याएं थोड़ी जटिल हुईं। बसर के शासनकाल में सत्ता से जुड़ी एक छोटी आबादी ही उससे लाभान्वित हुई। देश में अल्पसंख्यक शियाओं की स्थिति थोड़ी अच्छी रही लेकिन सामाजिक-आर्थिक स्थिति के कारण असंतोष बना हुआ था। बावजूद अगर एक समय घोषित आतंकवादी समूह एजटीएस को समर्थन नहीं मिलता और इतनी संख्या में देश अपने स्वार्थ के वशीभूत उन्हें हटाने के लिए काम नहीं करते तो उनकी सत्ता नहीं जाती। किंतु सत्ता परिवर्तन के बाद सीरिया में स्थिरता आ जाएगी ऐसा नहीं मानना चाहिए।
जो स्थितियां है उसमें संघर्ष लंबा चलेगा। जालोनी इस्लामी जिहाद के लक्ष्य काम किया तो आगे अमेरिका एवं यूरोप के लिए दुनिया के लिए समस्याएं पैदा होगी। ना तो आईएसआईएस पूरी तरह खत्म हुआ है और न अलकायदा ही। वैसे भी इस तरह के परिवर्तन के बाद जनता के बीच लोकप्रिय होना और व्यापक समर्थन प्राप्त करना संभव नहीं होता। उसमें भी जब सत्ता विदेशी शक्तियों के स्वार्थ की दृष्टि से स्थापित हो।
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)