सन् 2014 के आम चुनाव में सोशल मीडिया का सभी राजनैतिक दलों ने जमकर उपयोग किया था। नरेन्द्र मोदी ने 2014 में फेसबुक पर अपनी विशेष जगह बनाई थी। फेसबुक पेज फॉलो करने वालों में नरेन्द्र मोदी पहले नंबर पर, अरविन्द केजरीवाल दूसरे नंबर पर, कुमार विश्वास तीसरे, वसुंधरा राजे चौथे, राजनाथ सिंह पांचवें और मनीष सिसौदिया छठे स्थान पर थे। कांग्रेस के तब 33 लाख फॉलोअर्स थे और अकेले नरेन्द्र मोदी के एक करोड़ से ज्यादा।
टि्वटर, फेसबुक की तुलना में ज्यादा सक्रिय राजनैतिक माध्यम है। यहां राजनैतिक न केवल सक्रिय उपस्थिति दिखाते हैं, बल्कि अपने प्रशंसकों से भी संपर्क में रहते हैं। जब टि्वटर पर शशि थरूर के रिकॉर्ड को नरेन्द्र मोदी ने तोड़ा, तब मोदी समर्थकों ने सोशल मीडिया पर जमकर जश्न मनाया था। चुनाव प्रचार अभियान के दौरान नरेन्द्र मोदी सप्ताह के पांच दिन तक ट्रेंड्स में शामिल थे। जिस दिन उन्होंने अपनी अंतिम और महत्वपूर्ण चुनावी रैली की, उस दिन उनके ट्वीटस इंटरनेशनल ट्रेंड्स में भी शामिल हुई।
बीबीसी पर एक इंटरव्यू में भाजपा के एक नेता ने कहा था कि यदि मोदी किसी भी रैली को संबोधित करते हैं, तो सोशल मीडिया पर उनका संदेश गूंजने लगता है। देखते ही देखते मोदी की रैली वायरल हो जाती है। यहां तक कि लोग मोदी के संदेश को फोन पर भी सुन सकते हैं। 12 मई 2014 को वाराणसी में मतदान था और उस दिन मोदी के ट्वीट 1 लाख 24 हजार बार आरटी किए गए। राहुल गांधी उस दौर में चौथे नंबर पर थे। जिनके ट्वीट 26 हजार बार आरटी हुए।
चुनाव प्रचार के परंपरागत तरीकों पर अब सोशल मीडिया हावी होता जा रहा है। पिछले कुछ दिनों से कांग्रेस ने भी सोशल मीडिया को आक्रामक तरीके से लेना शुरू कर दिया है। अब कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं के सोशल मीडिया पोस्ट में भाजपा और नरेन्द्र मोदी को उन्हीं की शैली में जवाब देने की कोशिश की जा रही है। ताजा मामला लंदन में प्रधानमंत्री के उस बयान का है, जिसमें उन्होंने बलात्कार की घटनाओं को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा था कि इस बारे में राजनीति नहीं होनी चाहिए, लेकिन कर्नाटक पहुंचते ही चुनावी रैलियों में नरेन्द्र मोदी कांग्रेस की सरकार को इसके लिए दोषी बताने लगे।
आज-कल कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दोनों ही टि्वटर पर बहुत सक्रिय हैं। किसी राष्ट्रीय त्यौहार की शुभकामना देनी हो या किसी धर्म विशेष के त्यौहार पर बधाई संदेश, किसी पुरस्कार विजेता का हौसला बढ़ाने वाले ट्वीट हो या किसी सड़क दुर्घटना में होने वाली मृत्यु पर शोक संवेदना तत्काल दोनों ही नेताओं के ट्वीट नजर आने लगते हैं और उनके फॉलोअर्स उनके ट्वीट को आगे बढ़ाते रहते हैं। राहुल गांधी ने पिछले दिनों अपने टि्वटर हैंडल ऑफिस ऑफ द आरजी को बदलकर राहुल गांधी कर दिया। इसका भी सकारात्मक प्रभाव देखने को मिल रहा है।
राहुल के ट्वीट को रि-ट्वीट करने वालों को लगता है कि वे राहुल गांधी को फॉलो कर रहे हैं, ना कि राहुल गांधी के कार्यालय को। नरेन्द्र मोदी ने यहां बाजी मार ली है। नरेन्द्र मोदी के टि्वटर फॉलोअर्स की संख्या 4 करोड़ 24 लाख है, जबकि राहुल गांधी के फॉलोअर्स 68 लाख ही हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय और अन्य कई नामों से भी अकाउंट चलाते हैं। प्रधानमंत्री होने के नाते उन्हें शासकीय स्टॉफ भी मिला हुआ है। कहा जाता है कि नरेन्द्र मोदी के ट्विटर अकाउंट को देखने के लिए करीब 300 लोगों की टीम जुटी हुई है। ऐसी ही टीम राहुल गांधी के लिए भी है, लेकिन उसमें प्रोफेशनल लोग कम और राजनैतिक कार्यकर्ता ज्यादा हैं।