विश्व हिन्दी सम्मेलन के कवरेज को लेकर मास मीडिया पर सोशल मीडिया की बढ़त नज़र आ रही है। मास मीडिया में वह गहमागहमी नहीं, जो सोशल मीडिया में है। प्रिंट की खबरों में अभी भी यही बात कही जा रही है कि विश्व हिंदी सम्मलेन का उद्घाटन प्रधानमंत्री करेंगे, विदेश मंत्री पूरे समय सम्मेलन में रहेंगी (विदिशा की लोकसभा सदस्य जो हैं), मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने सम्मलेन स्थल का दौरा किया, समितियों-उप समितियों का गठन हुआ …आदि।
सोशल मीडिया में इसके विपरीत विश्व हिन्दी सम्मेलन को लेकर चर्चा का कोई पहलू छूटा नहीं है। सम्मेलन में कौन-कौन आ रहे हैं, से लेकर किन-किन मुद्दों पर चर्चा होगी, विभिन्न सत्रों की रूपरेखा क्या है, अब तक हुए नौ हिन्दी सम्मेलनों से क्या हासिल हुआ, मुद्दों पर तो चर्चा होती ही रही; आयोजन से अटलबिहारी वाजपेयी हिन्दी विश्वविद्यालय की भूमिका पर भी चर्चा हुई, जिससे मज़बूर होकर हिन्दी विश्वविद्यालय को महत्व देना ही पड़ा। भले ही आयोजक सरकार हो, आयोजन हिन्दी का है, हिन्दी को बढ़ाने के लिए है।
विश्व हिन्दी सम्मेलन के आयोजकों को सोशल मीडिया की महत्ता का अहसास शायद नहीं है। प्रधानमंत्री के सोशल मीडिया पर हिन्दी प्रेम के कारण आयोजकों को सोशल मीडिया पर हाजिरी दिखाना पड़ रही है, लेकिन नए माध्यम की शक्ति का उपयोग हिन्दी के लोग ही कर रहे हैं। फेसबुक, ट्विटर, लिंक्डइन, गूगल प्लस, इंस्टाग्राम.... हर जगह विश्व हिन्दी सम्मलेन से जुड़े लोग चर्चारत हैं।
सोशल मीडिया की इन चर्चाओं में एक दिलचस्प बात यह निकल कर सामने आई है कि न्यूजर्सी, यूएसए में अप्रैल 2015 में हुए अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन की विषयवस्तु भी वही थी, जो चार महीने बाद होनेवाले इस विश्व हिन्दी सम्मेलन है। अंतर है तो बस, शब्दों का मामूली उलटफेर। न्यू जर्सी के सम्मेलन का विषय था -- ‘हिन्दी जगत का प्रसार : संभावनाएं और चुनौतियां’ और भोपाल के विश्व हिन्दी सम्मेलन का केंद्रीय विषय है -- 'हिंदी जगत-विस्तार एवं संभावनाएं' ! 'प्रसार' की जगह 'विस्तार' शब्द ने ले ली है और चुनौतियों को विलुप्त कर दिया गया है।
रविवार, 6 सितम्बर की सुबह तक (दसवें विश्व हिन्दी सम्मेलन शुरू होने के चार दिन पहले तक) दसवें विश्व हिन्दी सम्मेलन के आधिकारिक ट्विटर खाते में केवल 10 ट्वीट ही थे और 31 अगस्त के बाद उसे अपडेट करने की कोई जहमत नहीं उठाई गई थी, जबकि इसी अकाउंट के 365 फॉलोअर हजारों ट्वीट करके अपने बारे में जानकारियां दे रहे थे और ले रहे थे।
दसवें विश्व हिन्दी सम्मेलन के बारे में तमाम जानकरियां गोपनीय राखी जा रही हैं या केवल कुछ ही विश्वासपात्रों से शेयर की जा रही हैं मानो कोई बड़ा ही गोपनीय सरकारी अभियान चलाया जा रहा हो, और अधिकारियों को गोपनीयता भंग होने का डर हो। होना यह चाहिए था कि दुनियाभर से जो हिंदी सेवी आ रहे हैं, उनके बारे में जानकारी दी जाती, चर्चा के पहले कुछ माहौल को तैयार किया जाता। यहां सोशल मीडिया ने दसवें विश्व हिन्दी सम्मेलन की चर्चा के जरिए भूमिका बनाने में जोरदार काम कर दिखाया।
आज आप दसवें विश्व हिन्दी सम्मेलन के बारे में तमाम सोशल मीडिया साइट्स पर जाकर हजारों अपडेट्स पा सकते हैं। आयोजकों ने शायद इसकी कल्पना भी नहीं की थी। ऐसे सम्मेलनों के महत्व को नकारना संभव नहीं है क्योंकि चर्चाओं से ही नए विचार और अभियान शुरू होंगे। पहले विश्व हिन्दी सम्मलेन के प्रस्ताव के बाद ही वर्धा में हिन्दी विश्वविद्यालय की शुरुआत हो सकी थी। इस दसवें विश्व हिन्दी सम्मेलन के चर्चा सत्र भी हमें कहीं आगे ले जाएंगे, इसमें शक क्यों करना?