कहते हैं प्यार और जंग में सब जायज़ है, लेकिन धोखा ऐसा कृत्य है जिसे कम से कम प्यार में तो जायज़ नहीं कहा जा सकता। इसी धोखे को लेकर अब नई बहस छिड़ी हुई है। इसे लव जिहाद के खिलाफ अभियान कहा जा रहा है और कई राज्यों में इसे क़ानून के दायरे में लाने की तैयारी की जा रही है। इन राज्यों में मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, हरियाणा और कर्नाटक जैसे बड़े राज्य शामिल हैं। हालांकि महाराष्ट्र और राजस्थान जैसे कुछ अन्य बड़े राज्य लव जिहाद के विरुद्ध क़ानून की ज़रूरत महसूस नहीं करते। दरअसल भारत में अब हर मामले को राजनीति के चश्मे से देखा जाने लगा है। लव जिहाद भी इससे अछूता नहीं है। जिन राज्यों में भाजपा सत्ता में है, वहां इसके ख़िलाफ़ क़ानून बनाने की तैयारी हो चुकी है और जहां कांग्रेस या अन्य दल हैं, वहां इसे ग़ैरज़रूरी बताया जा रहा।
भारतीय संविधान में जब से धर्मनिरपेक्षता शब्द का प्रादुर्भाव हुआ है, तभी से राजनीतिक पार्टियां अपनी सुविधानुसार इसे परिभाषित कर रही हैं और विरोधियों को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश करती हैं। यही कारण है कि देश में धार्मिक और जातिगत वैमनस्य चरम सीमा तक बढ़ गया है और प्राय: विस्फोटक की तरह फट पड़ता है।
लव जिहाद के विरोध में क़ानून बनाने का विचार तो काफ़ी पहले जन्म ले चुका था। इसे गति प्रदान की हाल ही में हरियाणा की एक घटना ने, जिसमें एक युवक ने दूसरे धर्म की लड़की को सरे राह गोली मार दी। लड़की का दोष बस इतना था कि वह धर्म बदलकर उस लड़के के साथ शादी करने को तैयार नहीं हुई। विचार को पुख़्ता ज़मीन प्रदान की इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फ़ैसले ने, जिसमें कहा गया कि शादी करने के लिए धर्म परिवर्तन की क्या ज़रूरत है? ज़बरन धर्म परिवर्तन कराकर की जाने वाली शादी को वैध नहीं माना जा सकता।
हालांकि बाद में अदालत को आभास हुआ कि उसका फ़ैसला व्यक्ति विशेष के जीवन और आज़ादी के मसलों को नहीं छूता। इससे अच्छे क़ानूनों का आधार भी तैयार नहीं हो रहा। इसलिए हम अपने फ़ैसले को रोक रहे हैं। अदालत ने यह भी कहा कि दो परिपक्व लोगों को अपना जीवन साथी चुनने का अधिकार है। वे किसके साथ रहना चाहते हैं, यह उनका चुनाव है।
हरियाणा प्रकरण के बाद से भाजपा शासित राज्यों ने लव जिहाद के विरुद्ध क़ानून बनाने की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी। मध्यप्रदेश की सरकार ने सबसे पहले घोषणा की कि वह अगले विधानसभा सत्र में लव जिहाद के ख़िलाफ़ सख़्त क़ानून का विधेयक लाएगी। इसके बाद हरियाणा, उत्तरप्रदेश और कर्नाटक आदि राज्यों ने भी ऐसी ही घोषणाएं की हैं। मप्र सरकार ने मप्र फ़्रीडम ऑफ़ रिलीजन एक्ट 2020 का ड्राफ़्ट तैयार कर लिया है। इसमें ताज़ा मामले में पकड़े जाने पर पांच साल की सज़ा का प्रावधान तो है ही, यदि ऐसे विवाह हो चुके हैं, तो उन्हें रद्द करने का अधिकार भी फ़ैमिली कोर्ट को दिए जाने का प्रावधान भी किया जा रहा है।
यह ध्यान रखा जा रहा है कि इस तरह के मामले तभी रजिस्टर होंगे जब कोई सगा संबंधी शिकायत दर्ज कराएगा। मध्यप्रदेश सरकार के ड्राफ़्ट की तर्ज़ पर ही उत्तरप्रदेश सरकार अपना क़ानून बनाने जा रही है। यूपी में तो लव जिहाद के खिलाफ अध्यादेश भी पारित हो चुका है। इसमें 10 साल तक की सजा की प्रावधान किया गया है।
उल्लेखनीय तथ्य यह है कि मध्यप्रदेश में 1968 में पहली बार धर्म स्वातंत्र अधिनियम नाम से क़ानून बना था। इसमें अपराध ज़मानती और सज़ा दो साल होने के साथ 10 हज़ार रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान है। अब नए प्रावधान में थाने के बजाय अदालत से ही ज़मानत मिल सकेगी। सरकार पुराने क़ानून में संशोधन न करते हुए नया क़ानून लाने जा रही है।
क्या है लव जेहाद? : आम बोलचाल में लव जिहाद कहे जाने वाले मामलों में बहला-फुसलाकर, झूठ बोलकर या जबरन धर्मांतरण कराते हुए अंतर धार्मिक विवाह किए जाने की घटनाओं को शामिल किया जाता है। प्रस्तावित कानून सभी धर्मों के लोगों पर समान रूप से लागू होगा।
आसान भाषा और कम शब्दों में आप इसे यूं समझ सकते हैं। लव जिहाद दो शब्दों से मिलकर बना है। अंग्रेजी भाषा का शब्द लव यानी प्यार, मोहब्बत, इश्क और अरबी भाषा का शब्द जिहाद। जिसका मतलब होता है किसी मकसद को पूरा करने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा देना। जब एक धर्म विशेष को मानने वाले दूसरे धर्म की लड़कियों को अपने प्यार के जाल में फंसाकर उस लड़की का धर्म परिवर्तन करवा देते हैं तो इस पूरी प्रक्रिया को लव जिहाद कहा जाता है।
लव जिहाद की ये परिभाषा हमारे देश की मीडिया और कुछ कट्टर हिंदू संगठन ने मिलकर तय की है।
हालांकि लव जिहाद शब्द की कोई क़ानूनी हैसियत नहीं है। इसे ना ही अब तक किसी क़ानून के तहत परिभाषित किया गया है और न ही केंद्र या राज्य की किसी एजेंसी ने किसी क़ानूनी धारा के तहत इम मामले में कोई केस दर्ज किया है। यहां तक की गृह मंत्रालय भी कहता है कि जबरन अंतरजातीय विवाह को लव-जिहाद कहा जा रहा है।
ऐसे मामलों में कानूनी पेंच यहां फंसता रहा है कि मुस्लिम शादियां शरीयत कानून और हिंदू शादियां हिंदू मैरिज एक्ट के तहत होती हैं। चूंकि मुस्लिम शादियों में सहमति दोतरफा अनिवार्य है इसलिए इन शादियों में अगर लड़की हिंदू है तो उसका धर्म परिवर्तन कराया जाता है। अगर यह साबित हो जाता है कि सहमति के बिना ही शादी हुई थी, तो कई मामले सिरे से खारिज होने की नौबत तक आ जाती है। इसी के बाद लव जिहाद यानी ज़बरन धर्म परिवर्तन का सिलसिला बनता है, जो सामाजिक वैमनस्य का कारण है और धर्मांन्ध लोग राजनीतिज्ञों के हाथ का खिलौना बनने लगते हैं। (इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)