श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन नाग पंचमी के पर्व को लोग बड़ी श्रद्धा और आस्था से मनाते आ रहे हैं। नाग पंचमी के दिन शहर की तमाम गलियों में 'सांप को दूध पिलाओ' की आवाजें सुनाई देती थीं, जो कि आजकल सुनाई नहीं देती हैं।
प्रशासन द्वारा यह तर्क दिया जाता है कि बड़ी ही बेरहमी व अमानवीय तरीके से सांपों के दांतों व इसके विष को निकालने से इसका असर सर्प के फेफड़ों पर होने से कुछ दिन बाद इनकी मृत्यु हो जाती है और दांत निकालते समय 80 प्रतिशत सर्प मर जाते हैं। इस कारण वन विभाग की टीम द्वारा सपेरों पर सख्ती से नजर रखी जाती है ताकि नाग जाति की रक्षा हो सकें।
इतना ही नहीं, विशेषज्ञों ने भी सर्प को दूध पिलाया जाना गलत बताया है। उनके अनुसार सर्प के लिए दूध हानिकारक होता है, जबकि भारतीय पौराणिक परंपराओं के अनुसार वर्षों से नागदेव को लोग दूध पिलाते आ रहे हैं। गत कुछ वर्षों से नागदेव को दूध न पिलाने की अपील की जा रही है।
इसको कुछ लोग उचित मान रहे हैं तो कई लोगों का कहना है कि इस तरह की नई-नई वैज्ञानिक बातों को लाकर लोगों की श्रद्धा व आस्थाओं के साथ धोखा किया जा रहा है जिससे हमारी भारतीय संस्कृति की परंपराओं को नष्ट करने की योजना है।
भारतीय संस्कृति में नाग पूजा की परंपरा वर्षों से चली आ रही है। प्रतिवर्ष श्रावण शुक्ल पंचमी के दिन यह पर्व परंपरागत श्रद्धा एवं विश्वास के साथ मनाया जाता है।
हमारा भारत देश कृषि प्रधान देश है, जहां धन-धान्य को प्रमुखता दी जाती है और ऐसे में लगभग एक-चौथाई खाद्य उपज प्रतिवर्ष चूहे व अन्य जीव नष्ट कर देते हैं। एक ओर, जहां नाग-सांप बड़े ही प्रभावी ढंग से चूहों का खात्मा कर उनकी आबादी को रोकते हैं, वहीं वे चूहों के बिलों में भीतर तक जाकर उनका सफाया करते हैं। चूहों की 80 प्रतिशत आबादी को सांप नियंत्रित करते हैं और ये हमारे अन्न को बचाते हैं।
पौराणिक मान्यता है कि हमारी धरती शेषनाग के फन पर टिकी हुई है, लेकिन अगर वैज्ञानिक और जीवनचक्र के हिसाब से देखा जाए तो नाग/ सांप धरती पर जैविक क्रम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। नाग-सर्प प्रकृति के अनुपम उपहार हैं और उनका जीवन नष्ट होने से बचाना हमारा पहला कर्तव्य है अत: नाग पंचमी के दिन नागों को दूध न पिलाकर उनकी रक्षा करना बहुत जरूरी है। यही दूध हम किसी गरीब-गुरबे को देकर जीवन में पुण्य भी कमा सकते हैं।
इस तरह नागों की रक्षा के साथ-साथ हम उनके जीवन का संरक्षण कर पुण्य के भागी बनते हैं अत: नाग पंचमी के पावन पर्व पर हम नागों को दूध न पिलाने का प्रण लेकर वही दूध किसी जरूरतमंद को दें ताकि हम हमारी धरती, प्रकृति तथा प्रकृति के अनुपम उपहार नागों की रक्षा कर सकें।