हिंदुस्तान में आज तक जितने भी गीत रचे गए...गाए गए...और सुने गए हैं, उन सभी गीतों को एक तरफ रख दीजिए और उनका मुकाबला सिर्फ एक 'अमर गीत' से कर लीजिए, तो लबों पर सिर्फ और सिर्फ एक ही गीत होगा...'ऐ मेरे वतन के लोगों ज़रा आंख में भर लो पानी, जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कुरबानी...'
ये महज़ एक गीत नहीं, ना ही इसे शहीदों को नमन करने के मकसद से गुनगुनाया जाता है। अस्ल में इस गीत के जरिए हमारी आत्मा तड़प उठती है और बस, आंखों से एक नमकीन दरिया निकल पड़ता है...27 जनवरी 2014 को इस गीत का 51वां जन्मदिन था...जिस तरह हम अपने पसंदीदा सितारों के जन्मदिन पर उन्हें याद करते हैं, उसी तरह आज पूरे देश की तरफ से हम इस गीत का भी जन्मदिन मना रहे हैं।
यह गीत केवल 26 जनवरी या 15 अगस्त जैसे राष्ट्रीय पर्व पर ही नहीं बल्कि हर रोज़ बजना चाहिए। हर रोज़ इस गीत का प्रसारण होना चाहिए, यह गीत महज़ ज़ुबां पर ही नहीं बल्कि हर भारतवासी की रग-रग में बहना चाहिए। देश के हर शख्स को, हर घड़ी इस बात का एहसास होना चाहिए कि भारत भूमि पर कैसे-कैसे वीर सपूतों ने जन्म लिया है। ये धरती सदा से शेरों को अपनी गोद में खिलाती रही है।
बहरहाल, राष्ट्रीय कवि प्रदीप की इस अमर रचना को सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर ने अपनी आवाज देकर इसे केवल गीत ही नहीं रहने दिया, बल्कि एक अफसाना बना दिया, जिसके अल्फ़ाज़ कभी मद्धम नहीं पड़ेंगे।
जब तलक यह दुनिया कायम रहेगी, हर हिंदुस्तानी के लबों पर यह गीत ज़िंदा रहेगा, चाहे वह किसी भी उम्र का क्यों न हो। ख़ास बात यह है कि लता जी का ताल्लुक भी देश के दिल कहे जाने वाले मध्यप्रदेश से रहा है और गीतकार कवि प्रदीप का भी। प्रदीप का जन्म उज्जैन जिले के छोटे से गांव बड़नगर में 6 फरवरी 1915 को हुआ जबकि लता जी 29 सितम्बर 1929 के दिन इंदौर के सिख मोहल्ले में अपनी आंखे खोली।
कैसे जन्म लिया इस अमर गीत ने...आगे पढ़ें..
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रोजी रोटी की खातिर प्रदीप बड़नगर से मुंबई पहुंच गए। एक दिन मुंबई की सड़कों पर घूमते हुए उन्हें सहसा शैतान सिंह भाटी की याद हो आई, जो 1962 में भारत-चीन युद्ध में शहीद हुए थे। ज़ेहन में ख़याल आया, 'जो शहीद हुए हैं, उनकी ज़रा याद करो कुर्बानी'...बस, इतना-सा ही ख़याल दौड़ा था कवि प्रदीप की चेतना में। इसी बीच फौरन उन्होंने पास की ही एक पान की दुकान से सिगरेट का खाली पाकेट लिया और पैन की जुगाड़ एक राहगीर से की। फौरन ही उस लाइन को पाकेट के पीछे लिख डाला...और इस तरह इस गीत का जन्म हुआ।
बाद में प्रदीप ने इस पूरे गीत की रचना घर जाकर की। सब जानते हैं कि 'हिन्दी-चीनी, भाई-भाई' का नारा देने वाले चीन ने भयंकर सर्दी से जकड़ी तारीख़ 20 अक्टूबर 1962 को अचानक भारत पर हमला कर दिया। दोस्ती के भरम में सरहद पर तैनात हजारों सैनिकों के ज़ेहन में कहीं से कहीं तक युद्ध की आशंका नहीं थी। ऐसे में बड़ी संख्या में सैनिकों को शहादत का कफ़न ओढ़ना पड़ा। इस घटना से पूरा देश सदमें में था और हार का गम मना रहा था। ऐसे में देश को एकजुट होने के लिए जज्बे की जरूरत थी।
27 जनवरी 1963 के दिन युद्ध में शहीद हुए जवानों की मदद के लिए दिल्ली में एक स्टेडियम में कार्यक्रम आयोजित किया गया था और इसी कार्यक्रम में कवि प्रदीप का गीत लता मंगेशकर ने गाया...'ऐ मेरे वतन के लोगों, ज़रा आँख में भर लो पानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुरबानी...'। इस गीत को सुनने वालों में देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू भी थे और न केवल नेहरू बल्कि स्टेडियम में जमा हजारों लोग इस गीत को सुनने के बाद रो रहे थे।
क़रीब साढ़े छह मिनट के इस गीत को संगीत में पिरोया था सी रामचंद्र ने। दिलीप कुमार उस लम्हें को याद करते हुए कहते हैं कि 'राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन और डॉ. राधाकृष्णन के पास, वहीं क़दमों में मैं भी बैठा था और अचानक मैंने देखा कि उनकी आंखों से आँसू बह रहे हैं।
51 साल बाद भी अमर गीत ताजा तरीन... आगे पढ़ें...
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'ऐ मेरे वतन के लोगों', इस गीत ने लोकप्रियता के सारे कीर्तिमान ध्वस्त कर दिए हैं। आज 51 साल बाद भी यह गीत जब बजता है, तो जज़्बात रोके नहीं रुकते...पूरा देश आदर और वंदन के साथ इस गीत की कद्र करता है। इस गीत का हर शब्द, हर हिंदुस्तानी की रगों और दिलो-दिमाग में आज भी अपनी जगह बनाए हुए है और हमेशा रहेगा...।
भारत में जन्मा हर आदमी दुनिया के चाहे किसी भी कोने में क्यों न हो, उसे वतन की मिट्टी हमेशा याद आती है और यह गीत सात समंदर पार भी उन्हें अपनी मिट्टी से जोड़े रखता है। और इसी तरह उनकी सांसों में अपने वतन की मिट्टी की महक ताजा रहती है। आप भी इस करिश्माई गीत को गुनगुना कर शहीदों की शहादत को नमन कर सकते हैं...
ऐ मेरे वतन के लोगों तुम खूब लगा लो नारा ये शुभ दिन है हम सब का लहरा लो तिरंगा प्यारा पर मत भूलो सीमा पर वीरों ने है प्राण गँवाए कुछ याद उन्हें भी कर लो जो लौट के घर ना आए
ऐ मेरे वतन के लोगों ज़रा आँख में भर लो पानी जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कुरबानी
जब घायल हुआ हिमालय ख़तरे में पड़ी आज़ादी जब तक थी साँस लड़े वो फिर अपनी लाश बिछा दी संगीन पे धर कर माथा सो गए अमर बलिदानी जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कुरबानी
जब देश में थी दीवाली वो खेल रहे थे होली जब हम बैठे थे घरों में वो झेल रहे थे गोली क्या लोग थे वो दीवाने क्या लोग थे वो अभिमानी जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कुरबानी
कोई सिख कोई जाट मराठा कोई गुरखा कोई मदरासी सरहद पर मरनेवाला हर वीर था भारतवासी जो खून गिरा पर्वत पर वो खून था हिंदुस्तानी जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कुरबानी
थी खून से लथ-पथ काया फिर भी बंदूक उठाके दस-दस को एक ने मारा फिर गिर गए होश गँवा के जब अंत-समय आया तो कह गए के अब मरते हैं खुश रहना देश के प्यारों अब हम तो सफ़र करते हैं
थे धन्य जवान वो अपने थी धन्य वो उनकी जवानी जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कुरबानी जय हिंद जय हिंद की सेना जय हिंद, जय हिंद, जय हिंद