भारी पड़ रहा है बच्चों का स्कूली खर्च

मंगलवार, 15 जुलाई 2008 (12:25 IST)
दिल्ली की अन्नपूर्णा ने अपने घरेलू बजट में कटौती करके अपनी बच्ची के स्कूल प्रोजेक्ट का महँगा सामान खरीदा। पटना की अंजू को अपने दो जुड़वाँ बच्चों को स्कूल भेजने पर आने वाले भारी खर्च की चिंता सता रही है और चंडीगढ़ के पुष्पेन्द्र अपने दसवीं और बारहवीं में पढ़ने वाले दो बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने के लिए अपनी कमाई बढ़ाने की जुगत में हैं। तुर्रा यह कि देश के तमाम अभिभावक अपने बच्चों की पढ़ाई पर आने वाले भारी खर्च से परेशान हैं।

कमरतोड़ महँगाई के इस जमाने में इन अभिभावकों की चिंता अपनी जगह ठीक भी है। दरअसल उद्योग परिसंघ (एसोचैम) ने हाल ही में अपने अध्ययन में वर्ष 2000 से 2008 तक के आठ वर्षों की अवधि के दौरान बच्चों के स्कूली खर्च में 160 प्रतिशत के वृद्धि की बात कही है।

एसोचैम के अध्यक्ष डीएस रावत ने बताया कि वर्ष 2000 से 2008 के दौरान बच्चों के विभिन्न मदों में स्कूली खर्च में 160 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है।

उन्होंने बताया कि महँगाई बढ़ने से स्कूली खर्च में आई इस जबरदस्त वृद्धि से अधिकांश परिवारों का बजट प्रभावित हो रहा है। अभिभावक अन्य खर्चो में कटौती तो कर लेते हैं, लेकिन बच्चों के भविष्य से जुड़े स्कूली खर्च में कैसे कटौती करें।

एसोचैम के अध्ययन के अनुसार वर्ष 2000 में बच्चों के शर्ट-टाई आदि का खर्च 2500 रुपए सालाना था, जो 2008 में बढ़कर 5500 रुपए हो गया, जबकि जूते, सैंडल और इसी तरह के अन्य सामान का सालाना खर्च 3000 से बढ़कर 6800 रुपए हो गया।

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