मानव मल तो खाद के रूप में बरसों से श्रेष्ठ साबित हो चुका है। अब मानव मूत्र को उर्वरक के बतौर इस्तेमाल करने का प्रयोग स्थानीय गाँधी कृषि विज्ञान केन्द्र की छात्रा श्रीदेवी ने कर दिखाया है।
उन्होंने 7.3 एकड़ के खेत में 750 लीटर मानव मूत्र का छिड़काव कर 83 टन मक्का उपजाई। अब केले के दो सौ पौधों पर इसका प्रयोग शुरू किया है और नतीजों की प्रतीक्षा है। उन्होंने बताया कि शुरू में किसान इसे अपनाने में हिचक रहे थे।
क्या-क्या तत्व हैं : मानव मूत्र में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम पर्याप्त मात्रा में होता है। इसे पौधे आसानी से ग्रहण भी कर लेते हैं। इससे फसल तो अच्छी होती ही है, रासायनिक उर्वरकों के कारण मृदा खराब होने से भी बचती है।
पहली बार : डोडाबालपुर के निकट नागसुंद्र के दस घरों में पर्यावरण हितैषी शौचालय प्रणाली विकसित की गई है। भारत में पहली बार ऐसा प्रयोग हुआ है। इसका मकसद पर्यावरण की रक्षा और पानी की बचत दोनों है।
ऐसे शौचालयों से मानव मल-मूत्र का संग्रहण कर उसका कृषि कार्य में सदुपयोग किया जा रहा है। समीप स्थित स्वामी विवेकानंद स्कूल के छात्रों के मध्यान्ह भोज के लिए सब्जियाँ उगाई जाती हैं।