उन्होंने कहा कि जहां तक संवैधानिक अधिकारों का सवाल है कृषि आय पर कर लगाने का अधिकार केन्द्र सरकार के पास नहीं है। इस बीच नीति आयोग ने भी इस संबंध में स्पष्टीकरण जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि कई अखबारों में यह समाचार छपा है कि नीति आयोग की ओर से या उसके तीन वर्षीय कार्य योजना प्रारूप में कर दायरा बढ़ाने के लिए कृषि आय पर कर लगाने की सिफारिश की गई है।
आयोग ने दो टूक शब्दों में स्पष्ट किया है कि यह न तो उसका सुझाव है और न ही उस कार्य योजना प्रारूप में इसका उल्लेख है, जिसे गत 23 अप्रैल को आयोग की संचालन परिषद की बैठक में सदस्यों को वितरित किया गया था। आयोग ने कहा कि कृषि आय पर कर लगाने का उसके सदस्य देबराय का बयान उनका निजी विचार है और यह किसी भी रूप में आयोग की राय नहीं है।
उल्लेखनीय है कि देबराय ने मंगलवार को यहां आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया और सदस्य रमेश चंद की मौजूदगी में आयोग के तीन वर्षीय कार्य योजना प्रारूप के संबंध में कहा था कि कर दायरा बढ़ाने के लिए किसानों की आय पर कर लगाया जाना चाहिए। उन्होंने व्यक्तिगत आय पर दी जाने वाली छूट को समाप्त किए जाने की वकालत की और कहा कि अब भी ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले या गांवों में रहने वाले अपनी सभी आय को कृषि आय बताते हैं और उस पर कोई कर नहीं लगता।
उन्होंने पुरजोर तरीके से कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वालों की सभी आय कृषि आय नहीं होती है और उन पर भी उसी तरह से कर लगाया जाना चाहिए जैसे शहरों में रहने वाले लोगों की आय पर व्यक्तिगत कर लगता है। उन्होंने कहा कि किसानों की आय निर्धारित करने के लिए उनकी तीन वर्ष या पांच वर्ष की आय के आधार पर औसत आय की सीमा तय की जानी चाहिए।