पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी : बेदाग रहा राजनीतिक पटल, बहुत याद आएंगे अटल

देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वह ना केवल एक राजनीतिज्ञ थे, बल्कि एक महान कवि भी थे। वाजपेयी ने ढेरों कविताएं लिखीं। वे पत्रकार के रूप में भी सक्रिय रहे। वे इतने उच्च कोटि के वक्ता रहे हैं कि संसद में उनके भाषणों को पंडित नेहरू जैसे राजनीतिक विरोधियों ने भी सराहा। लम्बे समय तक राजनीति में रहे, लेकिन उन्होंने कभी किसी के बारे में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं कहा।
 
संसदीय लोकतंत्र में एक विरोधी दल के नेता और बाद में एक प्रधानमंत्री के रूप में देश की सेवा की। अपने पूरे जीवन में अजातशत्रु रहने वाले अटलजी की खूबियों और उपलब्धियों की एक लम्बी सूची है। अपने आचरण और व्यवहार में वे एक ऐसे व्यक्ति रहे जिसने कभी किसी को शिकायत का मौका नहीं दिया और अगर आज के नेताओं से उनकी तुलना करें तो पाएंगे कि उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में किसी तरह का आरोप लगाने का मौका नहीं दिया और पूरी तरह कबीर की भांति 'ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया' की तरह बेदाग रहे। 
 
वाजपेयी के नेतृत्व की क्षमता का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि वे एनडीए (राजग) सरकार के पहले ऐसे प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री के तौर पर 5 साल बिना किसी समस्या के पूरे किए। उन्होंने 24 दलों के गठबंधन से सरकार बनाई थी जिसमें 81 मंत्री थे, जिन्हें संभालना किसी विरले व्यक्ति का काम हो सकता है, लेकिन उन्होंने अपनी कविता 'हार नहीं मानूंगा' की तर्ज पर सदैव ही नीर-क्षीर विवेक से काम लिया। 
 
अटलजी उन चंद लोगों में से एक थे जिन्होंने भारतीय जनसंघ की स्थापना की थी। इतना नही नहीं, वे वर्ष 1968 से 1973 तक वह उसके अध्यक्ष भी रहे थे। राजनीतिज्ञ वाजपेयी का एक और चेहरा अच्छे कवि और संपादक का भी रहा। उनकी कविताओं का संकलन 'मेरी इक्यावन कविताएं' शीर्षक से प्रकाशित हुआ। एक पत्रकार के तौर पर उन्होंने लंबे समय तक राष्ट्रधर्म, पांचजन्य और वीर-अर्जुन आदि पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन किया और समसामयिक मामलों पर अपने विचार रखे।
 
अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर, 1924 को मध्यप्रदेश के ग्वालियर शहर में हुआ था और उनकी प्रारंभिक शिक्षा भी ग्वालियर में हुई, लेकिन कॉलेज की पढ़ाई-लिखाई के लिए उन्हें कानपुर में रहना पड़ा। वे अपने कॉलेज के समय से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के स्वयंसेवक बन गए थे। डीएवी कालेज में पढ़ाई के दौरान उन्होंने राजनीति शास्त्र में पोस्ट ग्रेजुएशन किया। एलएलबी भी करना चाहते थे, लेकिन पढ़ाई बीच में ही छोड़कर राजनीति में पूरी तरह सक्रिय हो गए। 
 
राजनीति में उनका पहला कदम अगस्त 1942 में रखा गया, जब उन्हें और बड़े भाई प्रेम को भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 23 दिन के लिए गिरफ्तार किया गया। वर्ष 1951 में वे भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में से एक बने। उन्होंने 1955 में पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए। 1957 में जनसंघ ने उन्हें तीन लोकसभा सीटों लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से चुनाव लड़ाया। इस प्रयोग का परिणाम यह रहा कि वे लखनऊ में चुनाव हार गए। दूसरे निवार्चन क्षेत्र मथुरा संसदीय क्षेत्र में तो उनकी ज़मानत भी ज़ब्त हो गई, लेकिन बलरामपुर (जिला गोण्डा, उत्तर प्रदेश) से चुनाव जीतकर वे लोकसभा पहुंचे थे।
 
वे 1957 से 1977 तक (जनता पार्टी की स्थापना तक) जनसंघ के संसदीय दल के नेता रहे। 1968 से 1973 तक उन्हें भारतीय जनसंघ के राष्टीय अध्यक्ष पदासीन होने का मौका मिला। देश में आपातकाल के बाद हुए आम चुनावों में वर्ष 1977 में पहली बार वाजपेयी गैर कांग्रेसी विदेश मंत्री बने। उस समय मोरारजी देसाई की सरकार थी। वह 1977 से 1979 तक विदेश मंत्री रहे और इस दौरान संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन में उन्होंने हिंदी में भाषण दिया। वे पहले ऐसे विदेश मंत्री थे, जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी में भाषण देकर भारत को गौरवान्वित किया था। 
 
आपातकाल के बाद जिस जनता पार्टी का राजनीतिक जन्म हुआ था उसमें शुरू से ही राजनीतिक अस्थिरता और उठापटक का माहौल बना हुआ था। परिणाम स्वरूप उन्होंने 1980 में जनता पार्टी से असंतुष्ट होकर पार्टी छोड़ दी और भाजपा की स्थापना में मदद की। 1980 से 1986 तक उन्हें बीजेपी का अध्यक्ष बनाया गया और इसी दौरान वे बीजेपी संसदीय दल के नेता भी रहे। दो बार राज्यसभा के लिए भी निर्वाचित हुए। 16 मई 1996 को उन्हें पहली बार प्रधानमंत्री बनने का अवसर मिला, लेकिन लोकसभा में बहुमत साबित न कर पाने के कारण 31 मई 1996 को उन्होंने त्यागपत्र दे दिया। इसके बाद 1998 तक वह लोकसभा में विपक्ष के नेता बने रहे। 
 
उनके राजनीतिक जीवन से जुड़ा एक आश्चर्यजनक पहलू यह रहा कि अटलजी नौ बार लोकसभा के लिए चुने गए। वे सबसे लम्बे समय तक सांसद रहे हैं। उनकी दृढ़ता को इसी बात से जाना जा सकता है कि परमाणु शक्ति सम्पन्न देशों की संभावित नाराजगी से विचलित हुए बिना उन्होंने परमाणु परीक्षण कर देश की सुरक्षा के लिए साहसी कदम भी उठाया। यह परमाणु परीक्षण वर्ष 1998 में राजस्थान में जैसलमेर जिले के पोखरण कस्बे के पास किए गए थे। 
 
वाजपेयी जी को काव्य रचनाशीलता एवं रसास्वाद के गुण विरासत में मिले। उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी ग्वालियर रियासत में अपने समय के जाने-माने कवि और शिक्षक थे। उन्हें 1992 में पद्म विभूषण सम्मान, 1994 में लोकमान्य तिलक पुरस्कार, 1994 में श्रेष्ठ सांसद पुरस्कार और 1994 में ही गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 27 मार्च 2015 को उन्हें भारत रत्न का सम्मान दिया गया, जिसके वे एक लम्बे समय से हकदार थे। वास्तव में, यह कहना गलत ना होगा कि भारत सरकार ने उन्हें पुरस्कार प्रदान कर भारत रत्न की ही गरिमा को बढ़ाया। 
 
स्वतंत्रता बाद के शुरुआती दिनों में भाजपा की पूर्ववर्ती भारतीय जनसंघ की स्थिति की कल्पना की जा सकती है। वर्ष 1957 की दूसरी लोकसभा में भारतीय जनसंघ के सिर्फ चार सांसद थे। जब इन सांसदों का परिचय तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एस. राधाकृष्णन से कराया गया तब राष्ट्रपति ने हैरानी व्यक्त करते हुए कहा था कि वह किसी भारतीय जनसंघ नाम की पार्टी को नहीं जानते। अटलजी उन चार सांसदों में से एक थे, जिन्हें राष्ट्रपति से मिलवाया गया था।
 
एक सांसद से देश के प्रधानमंत्री तक के सफर में अटलजी ने कई पड़ाव तय किए। नेहरू-गांधी परिवार के प्रधानमंत्रियों के बाद अटलबिहारी वाजपेयी का नाम भारत के इतिहास में उन चुनिंदा नेताओं में शामिल रहा, जिन्होंने केवल अपने नाम, व्यक्तित्व और करिश्मे के बूते पर सरकार बनाई और देश पर शासन किया।
 
अटल सरकार ने 11 और 13 मई 1998 को पोखरण में पांच भूमिगत परमाणु परीक्षण विस्फोट करके भारत को परमाणु शक्ति संपन्न देश घोषित कर दिया। इस कदम से उन्होंने भारत को निर्विवाद रूप से विश्व मानचित्र पर एक सुदृढ वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित करने का काम किया। यह सब इतनी गोपनीयता से किया गया कि अति विकसित जासूसी उपग्रहों व तकनीकी से संपन्न पश्चिमी देशों को इसकी भनक तक नहीं लगी। यही नहीं, इसके बाद पश्चिमी देशों द्वारा भारत पर अनेक प्रतिबंध लगाए गए लेकिन वाजपेयी सरकार ने सबका दृढ़तापूर्वक सामना करते हुए आर्थिक विकास की ऊंचाइयों को छुआ।
 
अटलजी के कार्यकाल को पाकिस्तान से संबंधों में सुधार की पहल किए जाने के लिए याद किया जाएगा। 19 फरवरी, 1999 को सदा-ए-सरहद नाम से दिल्ली से लाहौर तक बस सेवा शुरू की गई। इस सेवा की शुरुआत करते हुए प्रथम यात्री के रूप में वाजपेयी जी ने पाकिस्तान की यात्रा करके नवाज़ शरीफ से मुलाकात की और आपसी संबंधों में एक नई शुरुआत की।
 
कुछ ही समय पश्चात पाकिस्तान के तत्कालीन सेना प्रमुख परवेज़ मुशर्रफ की शह पर पाकिस्तानी सेना व उग्रवादियों ने कारगिल क्षेत्र में घुसपैठ करके कई पहाड़ी चोटियों पर कब्जा कर लिया था। अटल सरकार ने पाकिस्तान की सीमा का उल्लंघन न करने की अंतरराष्ट्रीय सलाह का सम्मान करते हुए धैर्यपूर्वक किंतु ठोस कार्यवाही करके भारतीय क्षेत्र को मुक्त कराया। इस युद्ध में प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण भारतीय सेना को जान माल का काफी नुकसान हुआ और पाकिस्तान के साथ शुरू किए गए संबंध सुधार एकबार फिर शून्य हो गए।
 
उनके कार्यकाल में ही भारत भर के चारों कोनों को सड़क मार्ग से जोड़ने के लिए स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना (अंगरेजी में- गोल्डन क्वाड्रिलेट्रल प्रोजेक्ट या संक्षेप में जी क्यू प्रोजेक्ट) की शुरुआत की गई थी। इसके अंतर्गत दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई व मुंबई को राजमार्ग से जोड़ा गया। वाजपेयी के कार्यकाल में ही एक सौ साल से भी ज्यादा पुराने कावेरी जल विवाद को सुलझाया गया।
    
संरचनात्मक ढांचे के लिए कार्यदल, सॉफ्टवेयर विकास के लिए सूचना एवं प्रौद्योगिकी कार्यदल, विद्युतीकरण में गति लाने के लिए केन्द्रीय विद्युत नियामक आयोग आदि का गठन उनके ही शासन काल में हुआ। राष्ट्रीय राजमार्गों एवं हवाई अड्डों का विकास शुरू कराया गया और नई टेलीकॉम नीति तथा कोंकण रेलवे की शुरुआत करके बुनियादी संरचनात्मक ढांचे को मजबूत करने वाले कदम उठाए गए। 
 
वाजपेयी के 90 साल के होने के एक दिन पहले उन्हें भारत रत्न देने की घोषणा 24 दिसंबर, 2014 को की गई थी। उम्र से जुड़ी बीमारियों के कारण वे सार्वजनिक जीवन से दूर रहे। 16 अगस्त 2018 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया। उनका जाना भारतीय राजनीति की बहुत बड़ी क्षति है। 

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