भूटान को तिब्बत बनाना चाहता है चीन

सोमवार, 10 जुलाई 2017 (21:01 IST)
सिक्किम हथियाने में असफल चीन ने काफी समय पहले अपनी एक सुनियोजित योजना के तहत तिब्बत को येन केन प्रकारेण हथियाकर ही दम लिया। भारत जैसे देशों ने, जिससे इस मामले पर चीन का पुरजोर विरोध करने का दायित्व था, उसने भी तिब्बत को चीन का हिस्सा बनाने में कोई विरोध दर्ज नहीं कराया। इतना ही नहीं, तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू के कार्यकाल में चीनियों ने अपनी सीमा का विस्तार करने के साथ यह भी सुनिश्चित किया कि तिब्बत, भूटान और सिक्किम जैसे भू भागों को हड़पने की शुरुआत की। 
 
अभी तक सिक्किम को लेकर भारत और चीन के बीच छाया युद्ध चल रहा है, लेकिन चीनी सैनिकों ने भूटान के क्षेत्र में सड़कें बनाने की शुरुआत कर अपना पुराना खेल दोहराना शुरू किया। उसने भारत-चीन के बीच सीमा को लेकर गतिरोध के चलते समय भूटान में भी अपने क्षेत्रों में चौड़ी-चौडी सड़कें बना रहा है। इन सड़कों के बन जाने के बाद चीन की सेना सीधे तिब्बत से पाक अधिकृत कश्मीर तक अपनी पहुंच सुनिश्चित करना चाहता है, जबकि इस मामले में भूटान ने अपने क्षेत्र में सड़क निर्माण पर विरोध जताकर कहा कि चीन को इस मामले में चीन से उसकी गतिविधियों और उद्देश्यों को लेकर डिमार्शे (योजना संबंधी विवरण) जारी करना चाहिए ताकि भूटान जैसे देशों की सुरक्षा को सु‍निश्चित किया जा सके।
 
भारत में भूटान के राजदूत वेत्सोप नामग्येल ने कहा कि हाल ही में चीन की सेना ने भूटानी सेना के शिविर की दिशा में सड़क का निर्माण कार्य शुरू किया है जो दोनों देशों के बीच समझौते का उल्लंघन है। सिक्किम सेक्टर में चीनी घुसपैठ करने, सड़कें बनाने पर औपचारिक विरोध दर्ज कराया है।
 
भारत-चीन गतिरोध के बीच भूटान ने सड़क निर्माण पर जताया विरोध, चीन को डिमार्शे जारी किया। सिक्किम सेक्टर में चीनी सेना द्वारा सड़क निर्माण को लेकर भूटान ने औपचारिक विरोध दर्ज कराया है। विदित हो कि सिक्किम सेक्टर के डोकलाम इलाके में चीनी सेना सड़क निर्माण बिना किसी रोक के सड़कें बनाने में लगी है। जानकार सूत्रों का कहना है कि भूटान ने चीन के राजनयिक मिशन के जरिए उसे डिमार्शे जारी किया है। भूटान की मांग है कि यथास्थिति बनाए रखने के लिए सभी तरह के निर्माण कामों पर रोक लगा दी जाए।
 
सिक्किम सेक्टर के डोकलाम इलाके में चीनी सेना द्वारा सड़क निर्माण को लेकर भारतीय और चीनी सेना के बीच जारी गतिरोध के बीच भूटान ने कहा है कि उसने डोकलाम के जोम्पलरी इलाके में उसके सैन्य शिविर की ओर सड़क का निर्माण कराए जाने को लेकर चीन को डिमार्शे जारी किया है। जबकि भारत में भूटान के राजदूत वेत्सोप नामग्येल ने एक समाचार एजेंसी, से कहा, 'हमने चीन के राजनयिक मिशन के जरिए उसे डिमार्शे जारी किया है। हाल ही में चीन की सेना ने भूटानी सेना के शिविर की दिशा में सड़क का निर्माण कार्य शुरू किया है, जो दोनों देशों के बीच समझौते का उल्लंघन है।
 
भूटानी राजदूत वेत्सोप नामग्येल ने कहा कि डोकलाम (जिसे डोंगलांग के नाम से भी जाना जाता है) एक विवादित क्षेत्र है और भूटान का चीन के साथ लिखित समझौता है कि सीमा मुद्दे का अंतिम समाधान लंबित रहने तक इलाके में शांति एवं सौहार्द कायम रहना चाहिए। भूटानी राजदूत ने कहा कि हमने चीन से कहा है कि यथास्थिति कायम रखने के लिए वह निर्माण कार्य को तुरंत रोक दे।
 
सरहद पर चीन और भारत में तनाव के बीच भूटान भी चर्चा में है क्योंकि इसकी डोकलाम सीमा पर विवाद है और यह भूटान और चीन के बीच है। चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने आरोप लगाया है कि भारत अपने हितों को साधने के लिए भूटान का इस्तेमाल कर रहा है।
 
ग्लोबल टाइम्स का कहना है कि भूटान की सीमा चौकी पर भारत ने बेवजह आकर टांग अड़ाई है। चीन के इस सरकारी अखबार ने लिखा है कि अतीत में चीन और भूटान सीमा पर कई घटनाएं हुई हैं। पर सभी का समाधान रॉयल भूटान आर्मी और चीनी आर्मी के बीच होता रहा है। इसमें कभी भारतीय सैनिकों की जरूरत नहीं पड़ी है।
 
अखबार ने यह भी लिखा है कि इसमें कोई शक नहीं है कि भूटान में भारतीय सैनिकों की मौजूदगी है और भूटानी आर्मी को भारत ट्रेनिंग और फंड मुहैया कराता है, लेकिन भारत ऐसा भूटान की सुरक्षा के लिए नहीं करता है बल्कि ऐसा वह अपनी सुरक्षा के लिए करता है। यह भारत का चीन के खिलाफ सामरिक योजना के तहत है।
 
कुछ समय पहले ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मुखपत्र ऑर्गेनाइजर के पूर्व संपादक शेषाद्री चारी ने ट्वीट कर कहा कि चीन अग्रिम रूप से अपनी योजना तैयार कर रहा है। 1948 में माओ ने इसी तरह तिब्बत को अपने कब्जे में लिया था। वास्तव में वर्तमान तनाव भूटान को दूसरा तिब्बत बनाने का हिस्सा है? चारी ने आगे भी लिखा हैं चीन पीओके के जरिए सीपीईसी को अंजाम दे रहा है। ऐसे में भारतीय प्रधानमंत्री को येरुशलम और वेस्ट बैंक क्यों नहीं जाना चाहिए? इतिहास बदल रहा है इसलिए इसका असर भूगोल पर भी पड़ेगा।
 
हालांकि डोकलाम पर चीन और भारत के बीच तनाव को लेकर भूटानी मीडिया उस तरह से आक्रामक नहीं है। दूसरी तरफ चीनी और भारतीय मीडिया में इस तनाव पर आक्रामकता आसानी से महसूस किया जा सकता है। भूटान के सरकारी अखबार क्यून्सेल ने डोकलाम के पास चीन द्वारा सड़क बनाए जाने पर चिंता जाहिर की है।
 
इस भूटानी अखबार ने लिखा है कि भूटान और चीन के बीच जिन चार इलाक़ों को लेकर विवाद हैं उनमें डोकलाम एक है। 29 जून को भूटान के विदेश मंत्रालय ने चीन से कहा था कि उसे यथास्थिति का पालन करना चाहिए। भूटान ने कहा था कि चीन डोकलाम के पास कोई निर्माण करता है तो यह दोनों देशों के बीच सीमा समझौते का उल्लंघन होगा।
 
एक और भूटानी अखबार ने फेसबुक पर अपने संपादक की टिप्पणी पोस्ट की है, पहले रॉयल भूटान आर्मी ने चीन के सड़क निर्माण को रोकने की कोशिश की लेकिन चीनी टीम ने इसमें सहयोग करने से इनकार कर दिया। इसके तत्काल बाद इस इलाक़े में भारतीय सैनिक आए और सड़क निर्माण को रोका गया। इसके बाद चीनी सेना ने प्रतिक्रिया में भारतीय सैनिकों की छोटी चौकियों को नष्ट कर दिया। एक और अख़बार बिज़नेस भूटान का कहना है, भारतीय और भूटानी आर्मी के साथ तीन हफ्तों से जारी गतिरोध के बावजूद चीनी आर्मी डोकलाम के पास निर्माण सामग्री पहुंचाने में लगी हुई है।
 
दोनों देशों के बीच जारी विवाद को लेकर भारत की पूर्व विदेश सचिव और चीन में भारत की राजदूत रहीं निरुपमा राव ने भी ट्विटर पर लिखा है, डोकलाम का विवाद कोई नया नहीं है लेकिन चीन यहां सड़क निर्माण जानबूझकर कर रहा है ताकि भारत और भूटान की तरफ से कोई प्रतिक्रिया आए। उन्होंने कहा है कि डोको लांग चीन, भूटान और भारत (सिक्किम) के लिए त्रिकोणीय-जंक्शन की तरह है। चीन इस कदम के जरिए यहां अपनी परिभाषा थोपना चाहता है। चीन का यह क़दम भूटान और भारत दोनों की सुरक्षा चिंताओं को बढ़ाने वाला है।
 
इस तनाव के बीच भारत को भूटानी संवेदनशीलता को किस तरह से हैंडल करना चाहिए? इस पर निरुपमा राव ने ट्वीट किया है, भूटान और भारत के बीच संबंध स्थायी, भरोसमंद और बहुत क़रीबी का है। दोनों देशों के बीच जाहिरा तौर पर सैन्य मदद को लेकर कोई विवाद नहीं है। दोनों देशों के बीच अच्छी समझ भी है। भारत भूटानी संप्रभुता को पवित्र और अटूट मानता है। 2007 में भारत और भूटान ने फ्रेंडशिप संधि पर हस्ताक्षर किए।
 
इंस्टिट्यूट ऑफ चाइनीज स्टडीज के डायरेक्टर और 2014 से 2016 तक चीन में भारत के राजदूत रहे अशोक कांता ने दोनों देशों के बीच ताजा विवाद को लेकर भारतीय मीडिया में कहा है, चीन भूटान में कुछ इलाक़ों पर अपना दावा पेश करता है। चीन यहां 1988 से ही अतिक्रमण करता रहा है, लेकिन डोकलाम में चीनी सेना या चरवाहों की स्थायी मौजूदगी नहीं रही है। यह पहली बार है जब चीन डोकलाम से जोमप्लरी में भूटानी आर्मी कैंप तक सड़क बना रहा है।
 
समझा जाता है कि इस मामले में चीन का मूल्यांकन यह है कि भूटान इस पर कुछ कर नहीं पाएगा। यह साफ है कि भूटानी इतने सक्षम नहीं हैं कि चीनी सैनिकों को निर्माण से रोक दें। भूटान ने इस निर्माण को लेकर राजनयिक स्तर पर विरोध भी जताया। साथ ही, चीनियों को यह भी लगा होगा कि भारत इस मामले में बीच में नहीं आएगा, लेकिन चीनी घुसपैठ को लेकर भारत का रुख साफ है। 
 
सिक्किम में भारत-चीन टकराव : भारत-चीन के बीच सीमा विवाद को लेकर एक बार फिर तनातनी हो गई है। चीन चुंबी घाटी में सड़कें बनाने में जुटा है, उसी को भारतीय सैनिकों ने रोक दिया। जिसकी वजह से वह तिलमिलाया हुआ है। ये जगह भारत-भूटान के लिए बेहद अहम है, अगर चीन यहां अपनी सड़कों का जाल बिछा लेता है, तो उसे भारत-भूटान पर रणनीतिक तौर पर बेहद अहम बढ़त हासिल हो जाएगी। 
 
चीन जिस जगह सड़कें बनाने पर अड़ा हुआ है, वह मैक मोहन लाइन के मुताबिक, भारत के क्षेत्र में पड़ता है, पर चीन 1914 के इस समझौते को मानता ही नहीं और उसे अपना हिस्सा बताता है। यही वजह है कि भारत और चीन की सेनाएं सिक्किम की चुंबी घाटी में आमने-सामने आ गई हैं।
 
विशेषज्ञों का मानना है कि चीन के यहां सड़क बनाने के पीछे की चाल इस इलाके में रणनीतिक बढ़त हासिल करना है। चुंबी घाटी में चीन के सड़कों के निर्माण से रोकने की वजह से बौखलाए चीनी सैनिक भारतीय सीमा में घुस आए। दरअसल, वे पहले से ही भारतीय इलाके में सड़क बना रहे थे और रोकने पर उन्होंने भारतीय सेना के बंकरों को ध्वस्त कर दिया। यही नहीं, उसके चीनी सेना ने नाथू-ला दर्रे से कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए जा रहे भारतीय तीर्थयात्रियों पर भी रोक लगा दी।
 
विशेषज्ञ और चीन में भारतीय पूर्व राजनयिक अशोक कंठ कहते हैं कि भारत-चीन में सिक्किम सेक्टर में सीमारेखा को लेकर तो रजामंदी देखी जा रही है लेकिन भूटान के मसले पर दोनों देश एक-दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहा रहे हैं। दरअसल, दोनों देशों में इस सेक्टर को लेकर मुख्य विवाद जल विभाजन की सीमा को लेकर है जो दोनों ही देशों के लिए एक महत्वपूर्ण है, लेकिन सबसे बड़ी चिंता इस बात की है कि 2013 में डेपसंग और 2014 में डेमचोक इलाके में हालत नाजुक होने के बाद भी चीन रास्ता निकालने के बजाए कैलाश मानसरोवर यात्रा रोककर भारत के साथ आपसी रिश्तों में तल्खी पैदा कर रहा है। 
 
चीनी विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को किसी भी हाल में चीन को चुंबी घाटी में सड़क बनाने से रोकना होगा, क्योंकि ऐसा करके चीन अपनी सीमा में विस्तार करना चाहता है, जिससे भारत और भूटान को बेहद खतरा हो सकता है। दशकों पहले चीन ने भूटान पर चुंबी घाटी से खास जगह छोड़ने के लिए दवाब बनाया था, लेकिन भूटान के राजा ने चीन के इस दवाब को सिरे से खारिज कर दिया। क्योंकि उन्हें लगता था कि अगर चीन ने ऐसा किया तो भारत और भूटान के लिए भविष्य में खतरा पैदा हो सकता है। 

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