डीसीडब्ल्यू प्रमुख स्वाति मालीवाल ने केंद्रीय गृह सचिव को लिखे पत्र में दोषियों को बरी किए जाने को खराब जांच और मुकदमे में खामियों का परिणाम बताया। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय और निचली अदालत द्वारा मौत की सजा पाने वाले आरोपियों को बरी करते हुए दिल्ली पुलिस द्वारा उचित जांच न किए जाने और मुकदमे के दौरान कुछ खामियों को रेखांकित किया।
मालीवाल ने कहा कि फोरेंसिक साक्ष्य ने आरोपी व्यक्तियों को दोषी ठहराया, इसके बावजूद जिस असंवेदनशील तरीके से विभिन्न प्रक्रियाओं का पालन किया गया, उससे संदेह पैदा हुआ और अंततः आरोपियों को फायदा हुआ।
मालीवाल ने सलाह दी कि गृह सचिव, पुलिस आयुक्त, डीसीडब्ल्यू अध्यक्ष और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों की सदस्यता वाली एक उच्चस्तरीय समिति का तत्काल गठन किया जाए, जो दिल्ली पुलिस, फोरेंसिक प्रयोगशाला और निचली अदालत की कार्यप्रणाली को मजबूत करने के मकसद से व्यापक सुधारों का सुझाव दे।
उन्होंने कहा कि इसके अलावा, दिल्ली पुलिस को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश जारी किया जाना चाहिए कि फोरेंसिक नमूने एकत्र किए जाने के 48 घंटे के भीतर प्रयोगशाला में भेजे जाएं और यदि यह काम निर्धारित समय सीमा में न हो, तो संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए।
उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली के छावला इलाके में 2012 में 19 साल की लड़की से सामूहिक दुष्कर्म और उसकी हत्या के मामले में सोमवार को तीन लोगों को बरी कर दिया था। इस मामले में एक निचली अदालत ने 2014 में तीन आरोपियों को मौत की सजा सुनाई थी और मामले को दुर्लभ से दुर्लभतम करार दिया था। बाद में दिल्ली उच्च न्यायालय ने फैसले को बरकरार रखा था।(भाषा)
Edited by : Chetan Gour