लोकसभा चुनाव में सीट शेयरिंग को लेकर I.N.D.I.A गठबंधन में फंसा पेंच, जानें किन राज्यों में उलझी कहानी

विकास सिंह

गुरुवार, 11 जनवरी 2024 (14:49 IST)
लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा जल्द अपने उम्मदीवारों की पहली सूची जारी करने की तैयारी में है। पार्टी लोकसभा चुनाव में मध्यप्रदेश में टिकट बंटवारे के फॉर्मूले को लागू करते हुए 2019 के  लोकसभा चुनाव में हारी हुई सीटों पर तीन महीने पहले उम्मीदवारों के नामों का एलान कर सकती है। इसके साथ पार्टी अपनी पहली सूची पार्टी के दिग्गज चेहरों का भी नाम एलान करने की तैयारी में है। पार्टी पहले ही लोकसभा चुनाव के लिए ‘तीसरी बार मोदी सरकार’ और ‘अबकी बार 400 पार’  नारे के  साथ चुनाव मैदान में आ डटी है।

एक और भाजपा पीएम मोदी के चेहरे के साथ उम्मीदवारों की पहली सूची जारी करने की तैयारी में है तो दूसरी विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A अब भी सीट शेयरिंग के फॉर्मूल पर फंसी हुई है। इसके साथ विपक्ष मोदी के चेहरे को चुनौती देने के लिए अपना एक चेहरा अब तक चुन सकी  है।    

लोकसभा चुनाव के नजरिए से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, बंगाल और पंजाब में सीट शेयरिंग को लेकर विपक्षी गठबंधन में मामला उलझता हुआ दिख रहा है। उत्तरप्रदेश में लोकसभा चुनाव में सीट बंटवारे को लेकर कांग्रेस के आला नेताओं और समाजवादी पार्टी के बीच कई दौर की बातचीत भी हो चुकी है लेकिन मामला अभी उलझा हुआ है। उत्तर प्रदेश कांग्रेस विपक्षी गठबंधन में मायावती की पार्टी बसपा को भी शामिल करने की कोशिश में हो तो दूसरी ओर सपा इसके एकदम खिलाफ है।

उत्तर प्रदेश में 80 लोकसभा सीटें आती है और दिल्ली में किसकी सरकार होगी यह उत्तर प्रदेश के ही चुनाव परिणाम तय करते है। सीट शेयरिंग का फॉर्मूला तय होने से पहले ही समादवादी पार्टी के बड़े नेताओं ने अपनी सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी शुरु कर दी है। वहीं विपक्षी गठबंधन में शामिल राष्ट्रीय लोकदल भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सीटों पर खुलकर अपनी दावेदारी कर रही है।  

वहीं बिहार में विपक्षी गठबंधन में सीट शेयरिंग का फॉर्मूला तय होने से पहले ही मुख्यमंत्री नीतीथ कुमार की पार्टी जेडीयू ने 3 सीटों पर अपने उम्मीदवारों के नामों का एलान कर दिया है। जेडीयू राज्य की 17 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है। वहीं जेडीयू ने कांग्रेस पर क्षेत्रीय दलों की उपेक्षा और क्षेत्रीय दलों को कमजोर करने का आरोप भी लगा दिया है। वहीं कांग्रेस ने राज्य में 10 सीटों पर चुनाव लड़ने का दावा ठोंक दिया है। इसके साथ राज्य में सत्ता में भागीदारी लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी ने 20 सीटों की मांग कर सीट शेयरिंग पर पेंच फंसा दिया है।

विपक्षी गठबंधन में शामिल आम आदमी पार्टी ने दिल्ली, पंजाब के साथ पांच राज्यों में लोकसभा की सीटों की भागीदारी का दांव चलकर मामले को और उलझा दिया है। अगर 2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजों को देखा जाए तो पंजाब में कांग्रेस ने 8 सीटों पर जीत हासिल की थी जबकि आम आदमी पार्टी का खाता नहीं खुला था। वहीं विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने प्रचंड जीत हासिल कर अपनी सरकार बनाई थी। वहीं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने लोकसभा चुनाव के लिए पार्टी के चुनाव प्रचार अभियान का शंखनाद भी कर दिया है।

कांग्रेस दिल्ली में 2019 के प्रदर्शन के आधार पर सीटों का बंटवारा चाह रही है तो आम आदमी पार्टी विधानसभा चुनावों के परिणाम पर सीट बंटवारे पर अड़ी हुई है। इसको लेकर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच गतिरोध बना हुआ है।

विपक्षी गठबंधन  I.N.D.I.A  में महाराष्ट्र में भी सीट बंटवारे को लेकर मामला उलझता हुआ दिख रहा है। महाराष्ट्र में शिवसेना (उद्धव गुट) ने राज्य की कुल 48 लोकसभा सीटों में से 23 सीटों पर लोकसभा चुनाव लड़ने का दावा ठोंक दिया है। शिवसेना नेता संजय राउत ने साफ कहा कि राज्य में पार्टी 23 सीटों पर चुनाव लड़ती आई है और इस बार भी इतनी सीटों पर चुनाव लड़ेगी। ऐसे में गठबंधन में शामिल कांग्रेस और शरद पवार की पार्टी एनसीपी की मुश्किलें बढ़ गई है।

महाराष्ट्र जैसी ही हालत कमोबेश पश्चिम बंगाल में भी है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 42 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस को सिर्फ 2 सीटें देने की तैयारी से राज्य के कांग्रेस नेता बैचेन है। पश्चिम बंगाल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी कह चुके कि सूबे में ममता बनर्जी सीटों को ईमानदारी से बंटवारा नहीं चाह रही है। अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि  ममता बनर्जी कह रहीं हैं कि राज्य में कांग्रेस को दो सीटें देगी। यह वह दोनों सीटें हैं, जिसे कांग्रेस पहले ही जीत चुकी है। ममता बनर्जी ये सीटें देकर क्या हम पर एहसान कर रही है।

ऐसे में अब जैसे-जैस लोकसभा चुनाव करीब आते जा रहे है तब अगर सीटों के बंटवारे को लेकर विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A में पेंच फंसता जाएगा तो निश्चित रूप से इसका असर गठबंधन की एकता पर भी पड़ेगा। ऐसे में राम की लहर पर सवार होकर भाजपा लोकसभा चुनाव में अपने पिछले प्रदर्शन को पीछे छोड़ सकती है।

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