जम्मू एयरफोर्स स्टेशन पर 26 जून की रात पहली बार ड्रोन हमला किया गया था। इस हमले में विस्फोट से एयरफोर्स स्टेशन की छत को नुकसान पहुंचा था और दो जवान घायल हुए थे। 27 जून की रात में भी जम्मू के कालूचक मिलिट्री बेस पर ड्रोन नजर आया। सुरक्षा बलों ने इस पर फायरिंग की, लेकिन यह अंधेरे में गायब हो गया।
जम्मू के सुंजवां मिलिट्री स्टेशन के पास 28 जून की देर रात ड्रोन नजर आया। कुंजवानी और कालूचक इलाके में भी ड्रोन दिखा। 30 जून को भी शहर में चार अलग-अलग जगहों पर ड्रोन नजर आए। 16 जुलाई को जम्मू, सांबा, कठुआ में सैन्य ठिकानों के आसपास ड्रोन दिखाई दिए गए। 2 जुलाई को अरनिया में बीएसएफ ने ड्रोन को खदेड़ा था।
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि ड्रोन वार कहां जाकर रूकेगी कोई नहीं जानता। सुरक्षाधिकारी मानते हैं कि यह आतंकवाद का सबसे खतरनाक स्वरूप है जिससे निपटना आसान नहीं है। सीमांत क्षेत्रों में सुरक्षाबलों के लिए मुसीबत यह है कि पांव के नीचे आतंकियों द्वारा बिछाई जाने वाली बारूदी सुरंगों का खतरा है है तो सैन्य प्रतिष्ठानों पर आत्मघाती हमलों के खतरे के बीच अब आसमान से ड्रोन के रूप में लटकती मौत भी इसमें शामिल हो गई है।