बाहुबली से गेम ऑफ़ थ्रोन्स तक, कृत्रिम भाषाओं की मजेदार दुनिया

पीरियड फ़िल्मों व टीवी ड्रामा के दर्शकों को लोकप्रिय अंग्रेजी सीरीज़ ‘गेम ऑफ़ थ्रोन्स’ के तीन ड्रैगन याद होंगे। उनकी मां ‘डायनैरिस टारगैरिन’ के ‘द्रकैरिस’ कहते ही ड्रैगन इंगित व्यक्ति या समूह पर अपने मुंह से आग बरसाते थे और वह तुरंत जलकर राख हो जाता था। सीरीज़ में यह शब्द ‘हाई वलेरियन’ नामक भाषा का था। इसी सीरीज़ में एक और भाषा थी, जो आम भाषाओं से अलग थी, और इसका नाम था ‘डॉथराकी’।
 
इसी प्रकार हमारे अपने देश की बहुचर्तित फ़िल्म बाहुबली में माहिष्मति की सेना का एक काल्पनिक, खतरनाक लड़ाकू प्रजाति, ‘कालकेय’ के बर्बर लुटेरों के साथ युद्ध दिखाया गया था, जिसमें सेना के कुशल नेतृत्व के आधार पर माहिष्मति के युवराज का चयन किया जाना था। इस ‘कालकेय’ प्रजाति के लड़ाके ‘किलिकी’ भाषा बोलते थे।
 
जेम्स कैमरून की बेहद कमाई करने वाली मूवी, ‘अवतार’ में एलियन्स की भाषा थी ‘नावी’।
 
क्या आप जानते हैं कि इन सभी भाषाओं में समानता क्या है? ये सभी भाषाएं ‘बनाई हुई’ या कृत्रिम भाषाएं हैं। इन्हें प्लान्ड लेंग्वेज या आविष्कृत भाषा भी कहा जाता है क्योंकि इन्हें बनाने वाले भाषा विज्ञान के सिद्धान्तों का उपयोग करके इन्हें गढ़ते हैं।
 
क्या होती हैं कृत्रिम या संश्लेषित भाषाएं : आम तौर पर भाषाओं का विकास हज़ारों सालों से चल रही प्रक्रिया है। अलग-अलग भाषाएं बोलने वाले नए इलाकों में अपनी भाषा लेकर जाते हैं और समय के साथ वहां अपभ्रंशित होकर उसका तौर-तरीका बदलता जाता है, और कभी-कभी उसमें इतना बदलाव हो जाता है कि उसे एक नई भाषा माना जा सकता है। उदाहरण के लिए हमारे देश में बहुत सारी भाषाएं संस्कृत से प्रभावित और उसके विविध प्रयोगों से बनी हैं। इसी तरह यूरोप की अधिकांश भाषाएं प्रोटो-इन्डो-यूरोपियन परिवार से जन्मी हैं और हजारों वर्ष के उपयोग के बाद अपने वर्तमान स्वरूप में आई हैं। ये सब भाषाएं प्राकृतिक या नेचरल लैंग्वेज कहलाती हैं।
 
लेकिन कभी-कभी कोई ऐसी आवश्यकता आ जाती है कि एक नई भाषा ‘बनानी’ पड़ती है। भाषाओं को बनाने का यह चलन बहुत नया नहीं है। इस लेख में, हम आपको ऐसी कुछ भाषाओं का परिचय देंगे, जो प्राकृतिक भाषाओं की तरह नहीं पनपीं, बल्कि बनाई गईं, जिन्हें अंग्रेजी में कंस्ट्रक्टेड लैंग्वेजेस कहा जाता है।
 
भारत में बनी ‘किलिकी’ : एसएस राजामौली की ब्लॉकबस्टर फ़िल्म ‘बाहुबली’ के जिस दृश्य की बात हमने ऊपर की है, उसमें सुनाई पड़ने वाली ‘किलिकी’ के जनक हैं मदन कार्की। राजामौली ने ‘कालकेय’ कबीले के साथ माहिष्मति के युद्ध को प्रभावी बनाने के लिए कबीले को अत्यन्त बर्बर बनाया और उसे माहिष्मति से अलग संस्कृति देने के लिए एक अलग भाषा देने के बारे में सोचा। लेकिन उनके मन में डर यह था कि कबीले के कोई और भाषा बोलने से उस भाषा के भाषियों को बुरा लग सकता है। इसी उधेड़बुन में उन्होंने मदन कार्की से इस पर बात की।
 
मदन तमिल के जाने माने विद्वान व गाने व डायलॉग लिखने में महारथी वैरामुथु रामास्वामी के बेटे हैं और पेशे से कंप्यूटर इंजीनियर हैं। उन्होंने तमिल भाषा के लिए एक टेक्स्ट-टू-स्पीच इंजिन, स्पेल चेकर, भारतीय भाषाओं के आधार पर बोले जा सकने वाले नए नाम बनाने वाला सॉफ़्टवेयर आदि कई काम किए लेकिन बाद में पिता के पद-चिन्हों पर चलकर फ़िल्मों में गाने और डायलॉग लिखने लगे। उन्होंने आरआरआर, एथिरन और थ्री ईडियट्स के तमिल संस्करण जैसी बहुत सी बड़ी फ़िल्मों के लिए काम किया है।
 
राजामौली की बात सुनते ही मदन को याद आया कि ऑस्ट्रेलिया में काम करने के दौरान उन्होंने वहां के तमिल मूल के परिवारों के बच्चों के साथ समय बिताते हुए खेल-खेल में उनके लिए 50 शब्दों की भाषा बनाई थी। यह भाषा बच्चों को कर्ता और कर्म के स्थान, लिंग आदि याद रखने से बचाती थी। उन्होंने तुरन्त राजामौली को फ़िल्म के लिए एक नई भाषा बनाने का विकल्प दिया और वही 50 शब्दों की भाषा दुबारा लेकर पूरी भाषा बनाने पर काम शुरू कर दिया। इस भाषा को मूलत: ‘क्लिक’ नाम दिया गया था। यह नाम इस भाषा के कंप्यूटर के माउस को क्लिक करने जितना आसान होने का भाव देता था। लेकिन तब मदन नहीं जानते थे कि आगे चलकर यह शब्द ‘क्लिक’, ‘कालकेय’ कबीले और ‘किलिकी’ भाषा को जन्म देने वाला था!
 
फ़िल्म में भाषा की प्रशंसा होने के बाद मदन ने किलिकी पर काम जारी रखा, और अब किलिकी अपनी लिपि और व्याकरण के साथ 22 अक्षरों और लगभग 3000 शब्दों के भंडार वाली भरी-पूरी भाषा है। एक पूरी रीसर्च टीम ने किलिकी भाषा को बनाया और अब इसकी एक वेबसाइट (https://www.kiliki.in/) भी है, जहां जाकर आप इसे सीख सकते हैं और किसी के साथ कूट भाषा में बात करने के लिए उपयोग कर सकते हैं।
किलिकी को कुछ इस तरह बनाया गया है कि कम से कम टाइप करके शब्द बन सकें। साथ ही, सीखने में आसान बनाने के लिए शब्दों को उलटकर विपरीत शब्द बनाए गए हैं। जैसे यदि आप ‘आगे’ या ‘बाएं’ के लिए प्रयुक्त शब्द याद रख सकें, तो उसकी वर्तनी या स्पेलिंग को उलटकर ‘पीछे’ या ‘दाएं’ शब्द बन जाएगा।
 
और हां, यदि आप किलिकी में वेबदुनिया.कॉम लिखना चाहेंगे, तो यह कुछ यूं होगा :
वलेरियन और डॉथराकी : 1996 में अमेरिकी उपन्यासकार जॉर्ज आरआर मार्टिन की एक उपन्यास श्रृंखला छपी थी, जिसका नाम था ‘अ सॉन्ग ऑफ़ आइस एंड फ़ायर’। इस सीरीज़ के पहले उपन्यास का शीर्षक था ‘गेम ऑफ़ थ्रोन्स’ जिस नाम से एचबीओ ने इस उपन्यास सीरीज़ पर आधारित टीवी सीरीज़ का निर्माण किया। मार्टिन ने अपने उपन्यास में ‘हाई वलेरियन’ नाम की एक भाषा का ज़िक्र किया था, जो वेस्टेरोस नामक काल्पनिक शहर के कुलीन लोगों द्वारा बोली जाती थी। उपन्यास में इस भाषा के केवल 56 पदबंधों का उपयोग हुआ था। वह आम तौर पर बोली जाने वाली तो नहीं, पर कविता और साहित्य की भाषा बताई गई थी।
 
जब एचबीओ ने ‘गेम ऑफ़ थ्रोन्स’ पर काम शुरू किया, तो भाषा को समृद्ध कर कुछ वाक्य गढ़ने का विचार आया। भाषा को समृद्ध बनाने का काम सौंपा गया डेविड जे. पीटरसन को। पीटरसन एक अमेरिकी भाषाविद् और ‘भाषा सर्जक’ हैं, जिन्हें हॉलीवुड में इस काम का महारथी माना जाता है। उन्होंने भाषा का उपयोग करने वाले चरित्रों का और उनकी परिस्थितियों का अध्ययन करने के बाद ‘हाई वेलेरियन’ को 56 से लेकर 667 शब्दों तक पहुंचा दिया। इन 667 शब्दों को लेकर एचबीओ ने ‘गेम ऑफ़ थ्रोन्स’ की शूटिंग पूरी कर ली।
 
सीरीज़ के प्रसारण की समाप्ति तक तो ‘हाई वलेरियन’ बड़ी हिट बन चुकी थी। कहानी की सबसे प्रमुख महिला किरदार, डायनेरिस टारगेरिन के मुंह से ‘हाई वलेरियन’ का शब्द ‘द्रकैरिस’ सुनते ही उसके बेटे, जो ड्रैगन थे, सामने मौजूद व्यक्ति या वस्तु पर अपने मुंह से आग छोड़कर उसे भस्म कर देते थे। 
 
इसी प्रकार, ‘गेम ऑफ़ थ्रोन्स’ में एक और भाषा, ‘डॉथराकी’ का भी उपयोग हुआ। इस भाषा का निर्माण भी डेविड जे. पीटरसन का ही कमाल था। ‘डॉथराकी’, ‘गेम ऑफ़ थ्रोन्स’ का एक घुमंतू कबीला था, जो अपने प्रबल योद्धाओं के लिए जाना जाता था। इस भाषा के लिए पीटरसन पहले से तैयार थे। एचबीओ द्वारा ‘गेम ऑफ़ थ्रोन्स’ बनाए जाने से पहले ही वे ‘अ सॉन्ग ऑफ़ आइस एंड फ़ायर’ में बताई गई ‘डॉथराकी’ को समृद्ध बनाने पर काम कर रहे थे। पीटरसन की डॉथराकी जॉर्ज आर. आर. मार्टिन के बताए शब्दों के अलावा एस्टोनियाई, स्वाहिली, रुसी, टर्किश आदि भाषाओं से प्रेरित थी। जब एचबीओ ने लगभग 30 भाषा सर्जकों की स्क्रीनिंग के बाद पीटरसन को चुना, तो उन्होंने तुरन्त ही एचबीओ को ‘डॉथराकी’ के 1700 शब्द भेजकर आश्चर्य में डाल दिया।
 
‘डॉथराकी’ कबीले के शासक को ‘खाल’ कहा जाता था और खाल की पत्नी यानि रानी को ‘खलीसी’। कहते हैं कि सीरीज़ में डायनेरिस के ‘खाल ड्रोगो’ से विवाह कर ‘खलीसी’ बनने के बाद अमेरिका में नई जन्मी बच्चियों का नाम ‘खलीसी’ रखने के मामलों की बाढ़ सी आ गई थी।
 
पुराने यूरोप की संस्कृति और राजपरिवारों के जीवन, युद्धों और फंतासी को गूंथकर रची गई इस कहानी ने दुनिया भर में तहलका मचाया और उसकी सफलता इस बात से साबित होती है कि सीरीज़ के बाद युवाओं में इन भाषाओं को जानने का बहुत चाव देखा गया। यहां तक कि पीटरसन ने अपनी बनाई भाषाओं में कविता लेखन की प्रतियोगिताएं भी आयोजित कीं। ‘हाई वलेरियन’ और ‘डॉथराकी’ अब क्रमश: 2000 और 3000 शब्दों के समृद्ध भंडार वाली भाषाएं हैं, और इन्होंने कृत्रिम भाषाओं का एक नया संसार रच दिया है। (चित्र : kiliki.in से साभार)
 

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