उन्होंने प्रसिद्ध सरोद वादक उस्ताद अमजद अली खान के साथ यहां उर्दू के तीन दिवसीय समारोह 'जश्ने रेख्ता' का उद्घाटन करने के बाद कहा, उर्दू इश्क, नजाकत, नफासत और तहजीब की जुबान है। इसमें जो मिठास है, वह शायद ही किसी जुबान में है। दो मुसाफिर अगर उर्दू में बात कर रहे हों तो सुनकर ही उनसे जुड़ाव कायम हो जाता है। अगर कोई लड़की उर्दू जुबान में बात कर रही हो तो मैं उससे शादी कर लूं। उर्दू ग़रीबी में भी नवाबी का मज़ा देती है। इस जुबान में कोई भीख भी मांगता है तो उठकर अदब के साथ उसके कासे (भिक्षापात्र) में भीख देने को जी चाहता है।
उन्होंने उर्दू जुबान में आ रहे बदलावों का जिक्र करते हुए कि दूसरी भाषाओं के सम्पर्क में आकर उर्दू में भी तब्दीलियां आ रही हैं। पाकिस्तान में पश्तो और पंजाबी के असर से उर्दू बदल रही है। इसी तरह भारत में भी दूसरी जुबानों के सम्पर्क से इसमें बदलाव हो रहे हैं। उन्होंने उर्दू की लिपि को लेकर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि यह सिमटती जा रही है। इसके रस्मो उल खत (लिपि) को संभाल कर रखने की जरूरत है। कहीं यह खत्म न हो जाए।
गुलजार ने कहा कि उर्दू सिर्फ हिन्दुस्तान तक महदूद (सीमित) नहीं है। इसका एक पूरा मुल्क है। पाकिस्तान और उसके अलावा भी उर्दू की न जाने कितनी ही बस्तियां बसी हैं। इसकी मकबूलियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हिन्दी फिल्मों में 80 प्रतिशत उर्दू होती है और आज जो हिन्दुस्तानी बोली जाती है, वह उर्दू ही है।