हरियाणा में भाजपा ने 10 साल की एंटी इंकम्बेंसी की काट करते हुए हैट्रिक लगाते हुए सत्ता में वापसी कर ली। पिछले दिनों लोकसभा चुनाव में भाजपा को उम्मीद के मुताबिक अपेक्षित परिणाम नहीं मिले थे ऐसे में हरियाणा में भाजपा की जीत उसके लिए कई मयानों में बेहद महत्वपूर्ण है। हरियाणा में जीत से भाजपा को महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव के लिए एक बड़ी ताकत मिल गई है।
हरियाणा में भाजपा की जीत की सबसे बड़ी वजह उसको जातीय समीकरणों को साधना है। भाजपा की जीत का बड़ा कारण उसके ओबीसी और दलित वोटरों को एक समर्थन मिलना है। यहीं कारण है कि मुख्यमंत्री नायब सैनी के मंत्रिमंडल में ओबीसी चेहरों को शामिल किया गया वहीं सरकार बनते हुए मुख्यमंत्री नायब सैनी ने अपनी पहली कैबिनेट बैठक मे आरक्षण का वर्गीकरण करने का फैसला किया। यानि अब हरियाणा में एससी आरक्षण के कोटे के भीतर कोटे की नई व्यवस्था लागू होगी।
OBC-दलित वोटर क्यों जरूरी?- देश में ओबीसी वोटर्स को साधना भाजपा की सियासी मजबूरी है। देश की कुल आबादी में ओबीसी जातियों की संख्या 48 से 52 फीसदी हैं और इनका रूख ही लोकसभा और विधानसभा चुनाव में सियासी पार्टियों की जीत हार तय करता है। 2014 के बाद भाजपा लगातार ओबीसी वोटरों में अपनी पैठ बनाने में कामयाब रही है। गौर करने वाली बात यह है कि भाजपा ने ओबीसी कैटेगरी में गरीब ओबीसी जातियों को अधिक साधने की कोशिश की है। भाजपा ने इन ओबीसी जातियों को साधने की कोशिश की जो अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग पार्टियों की समर्थक रही हैं लेकिन अब यह पिछले कुछ चुनावों से लगातार भाजपा के साथ नजर आ रही है। ALSO READ: झारखंड चुनाव में गेमचेंजर महिला वोटर्स को साधने चुनावी लॉलीपाप, 25 से 30 हजार रुपए तक देने का वादा
मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, बिहार,राजस्थान जैसे राज्यों में ओबीसी वोटर्स ही तय करते है कि सूबे में किसकी सरकार बनेगी। अगर इन चारों राज्यों में पिछले विधानसभा चुनावों के परिणामों का विश्लेषण करते तो साफ पता चलता है कि इन राज्यों में ओबीसी वोटर पूरी तरह भाजपा के साथ खड़ा है। हाल में हुए हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत का बड़ा कारण भी उसको ओबीसी वोटरों का एकमुश्त साथ मिलना है। हरियाणा में भाजपा ने अहीरवाल क्षेत्र से 23 में से 17 सीट जीत कर सत्ता में वापसी की पटकथा लिख दी।
ओबीसी की तरह दलितों का भी एक बड़ा वोट बैंक है। देश में 17 प्रतिशत दलित वोटर हैं और चुनाव में यह 17 फीसदी दलित वोट बैंक सियासी दलों की चुनावी नैय्या पार लगाने में अपनी बड़ी भूमिका निभाते है। दलितों वोट बैंक की सियासी ताकत को इससे समझा जा सकता है कि लोकसभा की 543 सीटों में 84 सीटें दलितों के लिए आरक्षित है।
2004 और 2019 के लोकसभा चुनाव में जब दलितों ने एक मुश्त में भाजपा के समर्थन में वोट किए तो पार्टी की बड़ी जीत हुई वहीं इस साल हुए लोकसभा चुनाव में जब उत्तर प्रदेश जेसे बड़े राज्य में दलित वोट बैंक भाजपा से खिसका तो उसके सीटों की संख्या घट गई।
OBC-दलित वोटर्स बना भाजपा का ब्रह्मास्त्र !- भाजपा के चुनाव दर चुनाव में जीत का बड़ा कारण उसके लिए ओबीसी-दलित वोटर्स का एकमुश्त समर्थन मिलना है। यानि आज ओबीसी और दलित वोटर भाजपा का विनिंग ब्रह्मास्त्र बन गया है। अगर देखा जाए तो 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से चुनाव दर चुनाव ओबीसी वोट बैंक भाजपा के साथ खड़ा नजर आया है। अगर ओबीसी वोटर्स की बात करें तो 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को देश में 44 फीसदी ओबीसी वोट हासिल हुए थे वहीं कांग्रेस को 15 और अन्य क्षेत्रीय दलों को 27 फीसदी वोट हासिल हुए थे। ओबीसी वोटर्स के सहारे भाजपा किस तरह एक अजेय पार्टी बन गई इसको इससे समझा जा सकता है कि 2009 के आम चुनाव में भाजपा को 22 फीसदी ओबीसी वोट मिला था लेकिन 2019 के चुनाव इसका दोगुना यानी 44 फीसदी हो गया।
वहीं इस साल हुए लोकसभा चुनाव में जब भाजपा को ओबीसी वोटर्स 2 फीसदी भाजपा से खिसका तो उसे उत्तर प्रदेश जैसे राज्य जहां ओबीसी वोटर्स गेमचेंजर है, उसे दूसरे नंबर की पार्टी बनाना पड़ा। अगर ओबीसी वोट बैंक की बात करें तो उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में ओबीसी एक बड़ा वोट बैंक है जो राज्य की सरकार का भविष्य तय करने के साथ लोकसभा सीटों पर उम्मीदवारों की जीत-हार तय करता है।
भाजपा ने कैसे ओबीसी वोटर्स को साधा?-प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव दर चुनाव लड़ने वाली भाजपा के साथ ओबीसी जातियां एक जुट नजर आती है। दरअसल भाजपा ने अपने सबसे बड़े ओबीसी चेहरे नरेंद्र मोदी और क्षेत्रीय ओबीसी नेताओं को आगे बढ़ाकर बंटे हुए ओबीसी वोटर्स का साध लिया। भाजपा ओबीसी वोटरों के एक बड़े हिस्से को अपने खेमे में गरीब ओबीसी जातियों को अपने मुफ्त का दांव से लुभाना शुरू किया। मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा देकर ओबीसी वर्ग को सीधा संदेश देने की कोशिश कर उनको साधने की कोशिश की। सियासी विश्लेषकों के मुताबिक़ ये कमीशन गैर रसूखदार और अति पिछड़ी जातियों को लाभ दिलाने के लिए बनाया गया है।
भाजपा और कांग्रेस का ओबीसी वर्ग को लेकर आमने-सामने होने का बड़ा कारण इसकी संख्या है। प्रदेश में लगभग आधी आबादी वाले इस वोट बैंक को नज़रअंदाज़ करने का जोखिम कोई भी दल नहीं लेना चाहता है। ओबीसी वोटरो की सियासी ताकत को देखते हुए राहुल गांधी लगातार जातिगत जनगणना की बात कहते नजर आते है। दरअसल 2014 से पहले ओबीसी वोटर कांग्रेस और क्षेत्रीयों दलों के साथ था।
इस तरह दलितों वोटरों में सेंध लगाने के लिए इंडिया गठबंधन में लोकसभा चुनाव में संविधान खतरे में और संविधान बदलने जैसे मुद्दों को खूब सियासी हवा दी, जिसका नुकसान भाजपा को उठाना पड़ा और उसका 400 सीटें जीतन का सपना सपना ही रही गया, इसके ठीक उलट 2019 की तुलना में उसके खासा नुकसान उठाना पड़ा।
अगर देश में जातिगत राजनीति की बात करें तो 90 के दशक में मंडल कमीशन ने जातिगत राजनीति को एक नया उभार दिया। वीपी सिंह सरकार की ओर से मंडल आयोग की सिफारिशें लागू करने के बाद ओबीसी वोटर जनता दल, समाजवादी पार्टी आरएलडी, जनता दल (सेक्युलर) जैसी पार्टियों के पास आ गया है।
महाराष्ट्र और झारखंड में भी ओबीसी-दलित वोटर्स गेमचेंजर!-महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भी ओबीसी वोटर्स गेमचेंजर साबित हो सकते हैं। महाराष्ट्र में ओबीसी वोटर्स की कुल आबादी 52 फीसदी है, वहीं राज्य में कुल पिछड़ी जातियां 351, जिनमें से 291 जातियां केंद्रीय ओबीसी सूची में शामिल हैं। वहीं महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में मराठा को ओबीसी समुदाय में आरक्षण देना भी चुनावी मुद्दा है। ऐसे में ओबीसी वोटरों को साधने के लिए सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन और महाविकास अघाड़ी ने चुनावी रणनीति बनाने के साथ उम्मीदवारों के चयन पर अपना ध्यान केंद्रित कर दिया है।
वहीं महाराष्ट्र की कई सीटों पर दलित वोटरों का दबदबा है, ऐसे में भाजपा की भी नजर इन वोटर्स पर है। महाराष्ट्र में दलित वोटरों की संख्या 12 फीसदी के आसपास है, वहीं राज्य की करीब 20 सीटों पर दलित वोटर्स उम्मीदवारों की हार-जीत तय करते है। दलित वोटरों के बाहुल्य वाली सीटों पर जिस ओर दलितों का एकमुश्त वोट पड़ जाता है उसकी जीत तय हो जाती है।
इसी तरह झारखंड में भी भाजपा की नजर ओबीसी और दलित वोटरों पर है। राज्य की 50 फीसदी से अधिक ओबीसी वोटरों को साधने के लिए भाजपा ने केंद्रीय मंत्री और ओबीसी के बड़े चेहरे शिवराज सिंह चौहान को चुनाव प्रभारी बनाया है। वहीं राज्य की 14 फीसदी आबादी वाले दलितों को साधने के लिए भाजपा के सीनियर नेता दलितों के घऱ भोजन करने के साथ उन्हें मोदी सरकार की उन योजनाओं की जानकारी दे रहे है जिसका लाभ उन्हें मिल रहा है।