Opposition to SIR in Bihar : 'इंडिया' गठबंधन के कई घटक दलों के नेताओं ने बिहार में जारी मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर बुधवार को निर्वाचन आयोग का रुख कर अपनी चिंताओं से अवगत कराया और इस कवायद के समय को लेकर सवाल उठाया। उन्होंने दावा किया कि इस प्रकिया से बिहार के 20 प्रतिशत मतदाताओं को मतदान से वंचित होना पड़ सकता है। निर्वाचन आयोग के शीर्ष अधिकारियों से मुलाकात के बाद कांग्रेस नेता अभिषेक सिंघवी ने कहा, हमने कई बिंदु आयोग के समक्ष रखे हैं। हमने सवाल किया कि वर्ष 2003 से आज तक करीब 22 साल में बिहार में कम से कम पांच चुनाव हो चुके हैं, तो क्या वे सारे चुनाव गलत थे?
कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माले) लिबरेशन समेत 11 दलों के नेताओं ने मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार और अन्य चुनाव आयुक्तों से मुलाकात की और राज्य में विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले की जा रहे विशेष पुनरीक्षण को लेकर आपत्ति जताई।
निर्वाचन आयोग के शीर्ष अधिकारियों से मुलाकात के बाद कांग्रेस नेता अभिषेक सिंघवी ने कहा, हमने कई बिंदु आयोग के समक्ष रखे हैं। हमने सवाल किया कि वर्ष 2003 से आज तक करीब 22 साल में बिहार में कम से कम पांच चुनाव हो चुके हैं, तो क्या वे सारे चुनाव गलत थे?
उन्होंने कहा कि अगर आपको विशेष गहन पुनरीक्षण करना था तो इसकी घोषणा जून के अंत में क्यों की गई और इसका निर्णय कैसे और क्यों लिया गया? सिंघवी का कहना था कि अगर मान भी लिया जाए कि एसआईआर की जरूरत है तो इसे बिहार चुनाव के बाद इत्मीनान से किया जा सकता था।
कांग्रेस नेता ने कहा, जब 2003 में यह प्रक्रिया अपनाई गई थी, तो उसके एक साल बाद लोकसभा चुनाव था और दो साल बाद विधानसभा का चुनाव था, इस बार केवल एक महीने का ही समय है। सिंघवी ने कहा, पिछले एक दशक से हर काम के लिए आधार कार्ड मांगा जाता रहा है, लेकिन अब कहा जा रहा है कि आपको वोटर नहीं माना जाएगा, अगर आपके पास जन्म प्रमाण पत्र नहीं होगा।
उनके अनुसार, एक श्रेणी में उन लोगों के माता-पिता के जन्म का भी दस्तावेज होना चाहिए, जिनका जन्म 1987-2012 के बीच हुआ होगा। ऐसे में प्रदेश में लाखों-करोड़ गरीब लोग होंगे, जिन्हें इन कागजात को जुटाने के लिए महीनों की भागदौड़ करनी होगी। उन्होंने कहा कि यह व्यवस्था चुनाव में समान अवसर की स्थिति से उपेक्षित करने वाली है।
वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि उन्होंने चुनाव आयोग के उस नए निर्देश का भी विरोध किया, जिसमें आयोग से मुलाकात के लिए केवल पार्टी अध्यक्षों के संवाद को महत्व देने की बात की गई है। सिंघवी ने कहा, पहली बार हमें चुनाव आयोग में प्रवेश के लिए नियम बताए गए। पहली बार हमें बताया गया कि केवल पार्टी प्रमुख ही आयोग जा सकते हैं। इस तरह के प्रतिबंध का मतलब है कि राजनीतिक दलों और चुनाव आयोग के बीच आवश्यक संवाद नहीं हो सकता
उन्होंने कहा, हमने (संवाद के लिए) एक सूची दी थी, किसी भी अनधिकृत व्यक्ति को अनुमति नहीं दी गई थी। पार्टियों को केवल दो लोगों को अधिकृत करने के लिए मजबूर करना दुर्भाग्यपूर्ण है। उनके अनुसार, कुछ वरिष्ठ नेताओं को तीन घंटे तक इंतजार करना पड़ा। बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष राजेश कुमार ने आरोप लगाया कि परीक्षण का निर्णय आयोग का तुगलकी फरमान है।
उन्होंने दावा किया, हमें काफ़ी आश्चर्य हुआ कि चुनाव आयोग हमारी बात सुनने को तैयार नहीं था और चर्चा में जाने से पहले हम आधे घंटे तक जूझते रहे। चर्चा के दौरान चुनाव आयोग सिर्फ अपनी बातें कहने में व्यस्त रहा और हमें परीक्षण की प्रक्रिया समझाता रहा।
उन्होंने बिहार से बड़ी संख्या में लोगों के रोजगार के लिए बाहर होने का उल्लेख किया और दावा किया कि चुनाव आयोग ठान बैठा है कि वह बिहार में 20 प्रतिशत वोटरों को वोट के अधिकार से वंचित करके रहेगा। विशेष गहन पुनरीक्षण की कवायद बिहार में शुरू हो चुकी है। इसे पांच और राज्यों- असम, केरल, पुडुचेरी, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में लागू किया जाना है, जहां अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं।
राजद नेता मनोज झा ने सवाल किया कि क्या यह कवायद लोगों को मताधिकार से वंचित करने के बारे में है? उन्होंने कहा, क्या आप बिहार में संदिग्ध मतदाताओं को ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं? भाकपा (माले) लिबरेशन के नेता दीपांकर भट्टाचार्य ने इस बात का उल्लेख किया कि बिहार में 20 प्रतिशत लोग काम के लिए राज्य से बाहर जाते हैं।
भट्टाचार्य ने कहा, चुनाव आयोग कहता है कि आपको सामान्य निवासी बनना होगा। इसलिए वे प्रवासी श्रमिक बिहार में चुनाव आयोग के मतदाता नहीं हैं। हमने कहा कि गरीबों के पास ए प्रमाणपत्र नहीं होंगे। (भाषा)
Edited By : Chetan Gour