दलाई लामा ने यहां राजेन्द्र माथुर स्मृति व्याख्यानमाला में अपने उद्बोधन के बाद एक सवाल के जवाब में उम्मीद जतायी कि कोई पक्ष युद्ध शुरू नहीं करेगा। उन्होंने कहा, 'कभी कभी बहुत शोर होता है और कठोर शब्द कहे जाते हैं लेकिन मैं नहीं सोचता कि यह बहुत गंभीर स्थिति है।'
डोकलाम विवाद को लेकर एक प्रश्न का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि दोनों पक्षों के पास एक दूसरे को मिटा देने की ताकत है इसलिए उन्हें नहीं लगता कि दोनों पक्ष युद्ध चाहते हैं। उन्होंने 1962 के युद्ध का उदाहरण देते हुए कहा कि युद्ध के बाद चीन को जीती गईंजगहों से हटना पड़ा था। उन्होंने कहा कि समस्याओं का संवाद के माध्यम से ही समाधान खोजे जाने की जरूरत है ताकि यह सदी सही से गुज़रे।
सर्वोच्च तिब्बती धर्मगुरु ने कहा कि जीत और हार प्राचीन सोच है, जो वर्तमान परिदृश्य में अप्रासंगिक हो चुकी है। भारत एवं चीन दोनों मूलत: ऐतिहासिक रूप से पड़ोसी हैं और चीन के लोगों में भारत के विरुद्ध कोई नकारात्मक भावना नहीं है। हालांकि सरकार कभी कभी सूचनाओं में हेराफेरी करती रहती है। लेकिन सरकारें बदलती रहतीं हैं पर लोग नहीं।