मलिक ने कहा कि मैं नहीं चाहता था कि सज्जाद राज्य के मुख्यमंत्री बने और यहां के लोगों के साथ बेईमानी हो। साथ ही मैं यह भी नहीं चाहता था कि इतिहास में मुझे बेईमान के रूप में जाना जाए। अत: मैंने विधानसभा भंग करना ही ज्यादा उचित समझा। इस फैसले पर लोग मुझे गाली देते हैं तो देते रहें। मुझे जो सही लगा मैंने किया।
उन्होंने कहा कि अब नहीं पता कि इस फैसले के बाद वे कितने समय तक राज्यपाल रह पाते हैं। उन्होंने कहा कि दिल्ली की बात मानता तो तो लोन की सरकार बनानी पड़ती, जो कि कतई उचित नहीं था। लोन को कश्मीर में भाजपा का करीबी माना जाता है।
उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों पीडीएफ ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के सहयोग से कश्मीर में सरकार बनाने का दावा पेश किया था। कांग्रेस ने भी बाहर से समर्थन दिया था, लेकिन ऐन वक्त पर राज्यपाल ने विधानसभा भंग करने का फैसला ले लिया। इसके चलते राजनीतिक दलों ने काफी हंगामा किया था।