नई दिल्ली। देश के कृषि वैज्ञानिकों ने करेले की एक ऐसी संकर किस्म का विकास किया है, जो मधुमेह बीमारी को नियंत्रित करने में और अधिक कारगर सिद्ध होगी। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) ने वर्षों के अनुसंधान के बाद करेले की नई किस्म पूसा हाईब्रिड-4 का विकास किया है।
मधुमेह के रोगी आहार में करेला की इस किस्म को शामिल करते हैं तो यह पित्ताशय को सक्रिय करता है जिससे इंसुलिन का निर्माण होता है तथा रोगियों को राहत मिलती है। करेले में कैलोरी बहुत कम होती है और यह विटामिन बी 1, बी 2 और बी 3 का अच्छा स्रोत है। इसमें विटामिन सी, मैग्निशियम, जिंक, फास्फोरस आदि तत्व पाए जाते हैं।
इसमें अधिक मात्रा में फाइबर भी पाया जाता है। यह रक्त के विकारों को भी ठीक करता है। डॉ. बेहरा ने बताया कि आमतौर पर करेले की फसल में 55 से 60 दिनों में फल आने शुरू होते हैं जबकि नई किस्म में 45 दिन में फल लग जाते हैं। इसके साथ ही इसकी पैदावार भी 20 से 30 प्रतिशत अधिक है। गहरे हरे रंग का यह करेला मध्यम लम्बाई और मोटाई का है जिसका औसत वजन 60 ग्राम होता है।
इसकी पैदावार प्रति हेक्टेयर 22 टन से अधिक है। उन्होंने बताया कि नई किस्म दो बार फरवरी के अंत और मार्च में तथा अगस्त एवं सितम्बर के दौरान लगाई जाती है। लगभग चार माह तक इसमें फल लगते हैं और एक एकड़ में इसकी खेती से 50 से 60 हजार रुपए की आय हो सकती है। करेले की यह एक ऐसी किस्म है जिससे जमीन और मचान पर भी भरपूर पैदावार ली जा सकती है।
इसके पंक्ति से पंक्ति की दूरी डेढ़ मीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 45 से 50 सेंटीमीटर तक उपयुक्त है। देश से जिन सब्जियों का निर्यात किया जाता है उनमें करेला भी शामिल है। खाड़ी के देशों में भारतीय करेले की अच्छी मांग है। इसके अलावा कुछ अन्य देशों में भी इसकी मांग है। देश के सभी प्रमुख सब्जी उत्पादक राज्यों में करेले की खेती की जाती है। (वार्ता)