मनीष सिसोदिया ने जेल से लिखा पत्र, कहा- 60,000 स्कूल बंद, कम पढ़ा लिखा प्रधानमंत्री देश के लिए खतरनाक
नई दिल्ली। दिल्ली के पूर्व उप मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी (आप) के नेता मनीष सिसोदिया ने जेल से देशवासियों को पत्र लिखकर कहा कि पिछले कुछ वर्षों में देश में 60,000 स्कूल बंद हुए। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी शिक्षा का महत्व नहीं समझतें।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सिसोदिया का पत्र ट्विटर पर साझा करते हुए लिखा, 'मनीष सिसोदिया ने जेल से देश के नाम चिट्ठी लिखी है-प्रधानमंत्री का कम पढ़ा-लिखा होना देश के लिए बेहद खतरनाक है। मोदी जी विज्ञान की बातें नहीं समझते। मोदी जी शिक्षा का महत्व नहीं समझते। उन्होंने पिछले कुछ वर्षों में 60,000 स्कूल बंद किए। भारत की तरक्की के लिए पढ़ा-लिखा प्रधानमंत्री होना जरूरी है।'
सिसोदिया ने लिखा, 'आज हम 21वीं सदी में जी रहे हैं। दुनिया भर में विज्ञान और टेक्नॉलॉजी में हर रोज नई तरक्की हो रही है। सारी दुनिया ऑफिशियल इंटेलिजेंस की बात कर रही है। ऐसे में जब में प्रधानमंत्री को ये कहते हुए सुनाता हूं कि गंदे नाले में पाइप डालकर उसकी गंदी गैस से चाय या खाना बनाया जा सकता है, तो मेरा दिल बैठ जाता है। क्या नाली की गंदी गैस से चाय या खाना बनाया जा सकता है? नहीं। जब प्रधानमंत्री कहते हैं कि बादलों के पीछे उड़ते जहाज को रडार नहीं पकड़ सकता तो पूरी दुनिया के लोगों में वो हास्य के पात्र बनते हैं। स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ने वाले बच्चे उनका मजाक बनाते हैं।'
दिल्ली के पूर्व शिक्षा मंत्री ने पत्र में कहा कि मोदी जी के इस तरह के बयान देश के लिए बेहद खतरनाक हैं। इसके कई नुकसान है। जैसे पूरी दुनिया को पता चल जाता है कि भारत के प्रधानमंत्री कितने कम पढ़े- लिखे हैं और उन्हें विज्ञान की बुनियादी जानकारी तक नहीं है। दूसरे देशों के राष्ट्र अध्यक्ष जब प्रधानमंत्री से गले मिलते हैं तो एक-एक झप्पी की भारी कीमत लेकर चले जाते हैं। बदले में न जाने कितने कागजों पर साइन करवा लेते हैं, क्योंकि प्रधानमंत्री तो समझ ही नहीं पाते कि क्योंकि वह तो कम पढ़े लिखे हैं। क्या कम पढ़ा लिखा प्रधानमंत्री आज के युवाओं के सपनों को पूरा करने की क्षमता रखता है।
सिसोदिया ने कहा कि हाल के वर्षों में 60,000 सरकारी स्कूल बंद कर दिए गए। क्यों? एक तरफ देश की आबादी बढ़ रही है तो देश में सरकारी स्कूलों की संख्या बढ़नी चाहिए थी। अगर सरकारी स्कूलों का स्तर सुधरता तो लोग प्राइवेट स्कूलों से निकालकर बच्चों को सरकारी स्कूल में भर्ती कर देते। जैसा दिल्ली में हो रहा है।