हाल ही में भारतीय नौसेना दल में हेलीकॉप्टर विंग में दो महिला अधिकारियों ने जॉइन किया है। इनके नाम है सब-लेफ्टिनेंट कुमुदिनी त्यागी और रीति सिंह। भारतीय नौसेना में यह पहली बार हुआ है जब किसी महिला को इस विंग के लिए चुना गया हो। वेबदुनिया ने इन दोनों महिला कॉम्बैटेंट से बातचीत की।
प्रश्न : आप दोनों का वेबदुनिया में स्वागत है। जब अपने बारे में और अपने अचीवमेंट के बारे में पढ़ती हैं तो कैसा लगता है?
सब-लेफ्टिनेंट कुमुदिनी त्यागी : नाम सुनकर और पढ़कर अच्छा लगता है, लेकिन साथ ही साथ एक जिम्मेदारी भी कंधों पर आ जाती है। जो जिम्मेदारी हम पर नौसेना ने डाली है उसे हम सही तरीके से निभाएं।
सब-लेफ्टिनेंट रीती सिंह - यह जानकर अच्छा लगता है कि नौसेना ने हमें इतनी बड़ी जिम्मेदारी दी है, लेकिन साथ ही साथ दिल में यही विश्वास रहता है कि हमें अच्छे से अच्छा काम करना है ताकि अपने आप को साबित कर सकें। साथ ही साथ उन सब लड़कियों के लिए एक अच्छा नाम छोड़कर जाएं जो हमारे पीछे आने वाली हैं और हमारी जगह पर ट्रेनिंग लेने वाली हैं।
प्रश्न : आप इस मुकाम पर कैसे पहुंचे?
कुमुदिनी त्यागी : सबसे पहले तो हमें एसएसबी (सर्विस सिलेक्शन बोर्ड) एग्जाम देनी पड़ती है जो 5 दिन की होती है। उसमें सिलेक्ट होने के बाद पर हमारी इंडियन नेवल एकेडमी में ट्रेनिंग शुरू की जाती है। यह ट्रेनिंग 6 महीने तक चलती है और यहां पर हमको शारीरिक और मानसिक रूप से ट्रेनिंग दी जाती है और तैयार किया जाता है।
यह ट्रेनिंग खत्म करने के बाद फिर हम लोगों की प्रोफेशनल ट्रेनिंग शुरू होती है, यानी कि जिस तरीके के हेलीकॉप्टर्स हैं, जिन्हें हमें समझना है, जानना है उनकी ट्रेनिंग दी जाती है। ट्रेनिंग के दौरान हमें नियत घंटों तक उड़ानें भरनी होती हैं। फिर चाहे वह दिन में भरें या रात में भरें। इसके अलावा भी कुछ उड़ानें होती है, जिन्हें भरना होता है।
प्रैक्टिकल के अलावा कुछ किताबी बातें भी होती हैं जो हमें पढ़नी होती हैं। अभी जो हेलीकॉप्टर को हम उड़ाने वाले हैं, उसकी ट्रेनिंग चल रही है और इस ट्रेनिंग में हमें उस पूरे हेलीकॉप्टर को समझना होगा। लिखे हुए या उससे जुड़े जितने दस्तावेज हैं, वह समझने होंगे। मशीनरी कैसे काम करती है, इस तरीके से उड़ाए जाना चाहिए यह सारी छोटी से छोटी और सूक्ष्म बातों का अध्ययन हमें करना होता है।
प्रश्न : आपकी निजी जिंदगी के बारे में जानना चाहती हूं?
रीति सिंह- मैं असल में लखनऊ से हूं। मेरे पिताजी भी नेवल ऑफिसर रहे हैं। सो यह माहौल मैंने बचपन से देखा है। हालांकि लखनऊ में कभी रहना नहीं हुआ। अब मेरी फैमिली हैदराबाद में है। मैंने अपना बीटेक कंप्यूटर इंजीनियरिंग में किया है। मैं और कुमुदनी दोनों ही इंजीनियर हैं।
कुमुदिनी त्यागी - मैं सिविल बैकग्राउंड से आती हूं। मेरे पिताजी की अपनी सिक्योरिटी एजेंसी है और एसएसबी पास करके फिर मैं यहां पर आ गई।
प्रश्न : आप दोनों के पास ऐसी क्या मोटिवेशन रही है या क्या प्रेरणा रही है कि आपको डिफेंस सर्विसेस जॉइन करने की इच्छा हुई?
कुमुदिनी त्यागी - जैसा कि मैंने आपको बताया कि मैं एक सिविल बैकग्राउंड से हूं तो मेरे पिताजी ने कभी मेरे ऊपर यह बंदिश नहीं डाली कि मैं किस तरीके से करियर अपनाऊं, लेकिन 2015 में जब लेफ्टिनेंट किरण शेखावत अपने काम और अपनी ड्यूटी करते हुए शहीद हुईं तो उससे मेरा ध्यान गया। मैंने देखा कि शायद नेवी में भी महिलाओं के लिए अवसर हैं तो बस उसी दिन से सोच लिया कि मुझे इंडियन नेवी में आना है। शहीद लेफ्टिनेंट किरण शेखावत ने मुझे हमेशा ही प्रेरित किया।
रीति सिंह - जैसा कि आप जानते हैं कि मैं एक फौजी के घर-परिवार से हूं। बचपन से वही सब देखा, डिफेंस सर्विसेस वाले ही हैं आसपास। हमेशा यही सोचा कि जो करना है फौज में ही करना है और मैं यहीं पर अपना करियर बनाने वाली हूं। मैं जब भी किसी भी ऑफिसर से मिलती मुझे हमेशा एक कदम और प्रेरित कर देता कि मैं फौज जॉइन कर लूं। और मुझे हमेशा से मालूम था कि अगर मैंने फौज जॉइन की तो मेरे लिए काम करने के लिए नई दिशा तय हो चुकी होगी तो बस इसी बात से खुश हो जाती हूं।
प्रश्न : कभी आपको मौका मिले कि आप लड़कियों से जाकर बात कर सकें और बता सकें कि कैसे डिफेंस सर्विसेज जॉइन करनी है तो क्या टिप्स देंगी आप?
कुमुदिनी त्यागी- कहूंगी कि अगर आपको लगता है कि आपको करियर बनाना है तो डिफेंस सर्विसेस एक बहुत अच्छा प्लेटफार्म है। लेकिन हां, यह जॉइन करने के पहले एक बार अपने होराइजन को बढ़ाएं। अपनी सोच को बढ़ाएं। बहुत सारी चीजे हैं, इसलिए इसके बारे में पढ़ें। जैसे कि मैं एक सिविल बैकग्राउंड की हूं तो कई सालों तक तो मुझे मालूम ही नहीं था कि फौज में असल में होता क्या है, लेकिन जैसे-जैसे पढ़ा वैसे-वैसे मुझे अच्छा लगता गया और फिर मैंने ठान लिया कि मुझे फौज में आना है।
मैं लड़कियों से पढ़ने की बात इसलिए कह रही हूं क्योंकि उत्तर भारत में खासकर नेवी को लेकर जागरूकता थोड़ी कम है। तो एक बार नेवी के बारे में पूरा पढ़ लीजिए और फिर निश्चित कीजिए। हालांकि लड़की हो या लड़का एक बार थोड़ा पढ़ लें, समझ लें अपने आपको और फिर लगता है कि वह फौज में आना चाहते हैं तो बिलकुल आ जाइए।
रीति सिंह- मैंने मेरा कॉलेज पुणे से किया है। पुणे में कॉलेज करते समय हमारे कैंपस में कई बार एयरफोर्स के ऑफिसर या नेवी के ऑफिसर आया करते थे और हम सब मिला करते थे। क्योंकि मैं फौजी परिवार से ही हूं मेरे लिए सब कुछ नया नहीं था। लेकिन मैंने अपने दोस्तों को देखा है, वे इनसे मिलकर बहुत उत्साहित हो जाया करते थे। जिस किसी की भी इच्छा है फौज जॉइन करने की, वह जरूर आएं।
प्रश्न : आप उन मांओं को क्या कहेंगे जो अपनी बेटियों को फौज जॉइन करने देना चाहती हैं, लेकिन दिल में एक बार जरूर सवाल आता है कि प्रिजनर ऑफ वॉर (युद्ध बंदी) बन गईं तब क्या होगा?
कुमुदिनी त्यागी - पहले हम सोल्जर हैं, हम लड़के हैं या लड़की हैं, यह बाद में आता है और हम ड्यूटी पर हैं। इसके पहले भी कई मेल ऑफिसर या मेल फौजी प्रिजनर ऑफ वॉर बन चुके हैं और उनके साथ कई बार गंदगी भी हुई है। लेकिन हम पूरी तैयारी के साथ आते हैं, क्योंकि एक पैशन के साथ हम फौज को जॉइन करते हैं। प्रिजनर ऑफ वॉर बनना किसी भी देश के लिए बहुत अच्छा नहीं माना जाता है। लेकिन यदि उस समय कभी ऐसी सिचुएशन में हम पड़ भी गए तो हमेशा ड्यूटी निभाऊंगी। पहले मैं फौजी हूं, मैं अपना काम करूंगी और फिर देखूंगी कि मैं लड़का हूं या लड़की हूं।