राजशाही की मांग से हिला नेपाल, योगी आदित्यनाथ का क्या है कनेक्शन?

वेबदुनिया न्यूज डेस्क

बुधवार, 26 मार्च 2025 (12:44 IST)
Demand for monarchy rises in Nepal: नेपाल एक बार फिर सियासी तूफान के केंद्र में है। राजशाही की वापसी की मांग को लेकर सड़कों पर उमड़ा जनसैलाब और भारत पर लगे सनसनीखेज आरोपों ने पूरे हिमालयी क्षेत्र में हड़कंप मचा दिया है। पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह के समर्थन में बढ़ते प्रदर्शन, सरकार के खिलाफ जनता का गुस्सा और भारत की कथित भूमिका, यह कहानी हर पल और सनसनीखेज होती जा रही है। क्या नेपाल का लोकतंत्र सचमुच खतरे में है? आइए, इस सनसनीखेज घटनाक्रम की पूरी पड़ताल करते हैं।
 
राजशाही की वापसी का उफान में भारत पर उंगली : नेपाल में राजतंत्र समर्थक प्रदर्शन तेजी से बढ़ रहे हैं। 9 मार्च 2025 को काठमांडू के त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर हजारों समर्थकों ने पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह का स्वागत किया। 'राजा लाओ, देश बचाओ' और 'हिंदू राष्ट्र चाहिए' के नारे गूंजे और कुछ लोगों ने भारत का झंडा लहराते हुए 'भारत माता की जय' तक कहा। इस प्रदर्शन का नेतृत्व राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (RPP) कर रही है, जो लंबे समय से राजशाही और हिंदू राष्ट्र की बहाली की मांग करती रही है। लेकिन इस बार कहानी में नया मोड़ तब आया, जब कुछ नागरिकों ने सनसनीखेज आरोप लगाए कि ज्ञानेंद्र भारतीय धार्मिक कट्टरपंथियों के साथ मिलकर यह साजिश रच रहे हैं। 
 
नागरिकों के एक समूह ने बयान जारी कर कहा कि ज्ञानेंद्र भारत की ताकतवर राजनीतिक ताकतों से समर्थन ले रहे हैं, जो 2015 में नेपाल पर आर्थिक नाकेबंदी कर चुकी हैं। उनका मकसद नेपाल के संवैधानिक मूल्यों- लोकतांत्रिक गणतंत्र, संघवाद और धर्मनिरपेक्षता को कुचलना है। सबसे चौंकाने वाला दावा यह है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने नेपाल में राजशाही की वापसी की खुली वकालत की है। दरअसल, प्रदर्शन के दौरान योगी की तस्वीरें लहराई गईं, जिसके बाद कई लोगों ने इसे नेपाल की संप्रभुता पर हमला करार दिया। एक प्रदर्शनकारी ने गुस्से में चीखते हुए कहा कि ज्ञानेंद्र और भारत मिलकर नेपाल को गुलाम बनाना चाहते हैं!"
 
2005 की यादें ताजा : ज्ञानेंद्र का खौफनाक इतिहास : ज्ञानेंद्र का नाम नेपाल में विवादों से भरा रहा है। 2005 में उन्होंने सेना के बल पर लोकतंत्र को ध्वस्त कर सत्ता अपने हाथ में ले ली थी। उस वक्त उनकी तानाशाही का अंत जनआंदोलन ने किया और 2008 में नेपाल को गणतंत्र घोषित कर राजशाही खत्म कर दी गई। लेकिन अब उनके समर्थकों का दावा है कि वर्तमान व्यवस्था भ्रष्टाचार, अस्थिरता और आर्थिक संकट से जूझ रही है और राजशाही ही देश को बचा सकती है। नागरिकों का कहना है कि अगर ज्ञानेंद्र की यह चाल कामयाब हुई, तो नेपाल की अर्थव्यवस्था तबाह हो जाएगी और देश अराजकता की आग में जल उठेगा।
 
सड़कों पर गुस्सा, बिजली संकट और सरकार के खिलाफ प्रदर्शन : राजशाही की मांग के साथ-साथ, नेपाल में एक और आंदोलन ने जोर पकड़ा है। 25 मार्च 2025 को नेपाल विद्युत प्राधिकरण के लोकप्रिय प्रमुख कुलमन घीसिंग को निलंबित किए जाने के बाद काठमांडू की सड़कों पर जनता उतर आई। घीसिंग ने बिजली कटौती खत्म कर प्राधिकरण को मजबूत किया था और उनके निलंबन को जनता ने सरकार की नाकामी का सबूत माना। संसद भवन के पास प्रदर्शनकारियों ने पुलिस से झड़प की, सड़कें जाम कर दीं और उनकी बहाली की मांग की। एक प्रदर्शनकारी ने कहा कि सरकार न बिजली दे सकती है, न रोजगार अब राजा ही हमारा सहारा है।
 
भारत की भूमिका पर सवाल : भारत पर लगे आरोपों ने इस संकट को अंतरराष्ट्रीय मंच तक पहुंचा दिया है। कुछ नेताओं का कहना है कि भारत नेपाल को फिर से हिंदू राष्ट्र और राजशाही के रास्ते पर धकेलना चाहता है, ताकि क्षेत्रीय प्रभाव बढ़ाया जा सके। 2015 की आर्थिक नाकेबंदी का हवाला देते हुए एक नागरिक ने कहा कि भारत ने हमें पहले भुखमरी के कगार पर ला दिया था, अब हमारा लोकतंत्र छीनना चाहता है। हालांकि, भारत और RPP ने इन आरोपों को 'बेबुनियाद' और 'राजनीति से प्रेरित' बताकर खारिज किया है।
 
प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने इन प्रदर्शनों को 'लोकतंत्र के खिलाफ साजिश' करार दिया। संसद में बोलते हुए उन्होंने कहा कि नेपाल पीछे नहीं जाएगा। भारत की भूमिका को हम बेनकाब करेंगे। सरकार ने प्रदर्शनों को नियंत्रित करने के लिए भारी पुलिस बल तैनात किया है, लेकिन RPP ने एक महीने का देशव्यापी आंदोलन शुरू करने की घोषणा कर दी है। इसमें विरोध सभाएं, धरने और प्रदर्शन शामिल होंगे। अंतरराष्ट्रीय समुदाय, खासकर भारत और चीन, इस स्थिति पर नजर रखे हुए हैं, क्योंकि नेपाल की अस्थिरता पूरे क्षेत्र को प्रभावित कर सकती है।
 
क्यों भड़क रही है यह आग? : नेपाल में यह उफान अचानक नहीं आया। 2008 से अब तक 13 सरकारें बदल चुकी हैं, भ्रष्टाचार चरम पर है और युवा रोजगार के लिए विदेश पलायन कर रहे हैं। बढ़ती महंगाई और बिजली संकट ने जनता का सब्र तोड़ दिया है। इसके साथ ही, हिंदू राष्ट्र की मांग ने सांस्कृतिक भावनाओं को हवा दी है। प्रदर्शनकारियों का मानना है कि मौजूदा व्यवस्था नाकाम हो चुकी है और राजशाही ही एकमात्र रास्ता है।
 
नेपाल की सड़कों पर तनाव और अनिश्चितता का माहौल है। क्या ज्ञानेंद्र की साजिश सचमुच भारत के समर्थन से चल रही है? क्या यह आंदोलन लोकतंत्र को कुचल देगा, या सरकार इसे दबाने में कामयाब होगी? हर पल नए खुलासे सामने आ रहे हैं और दुनिया की नजर इस छोटे से हिमालयी देश पर टिकी है। यह जंग अभी शुरू हुई है और इसका अंत किसी को नहीं पता।

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