देश में रामनवमी से बिहार और पश्चिम बंगाल में शुरु हुआ हिंसा का दौर महाराष्ट्र तक पहुंचने के बाद अब भले ही थम गया हो लेकिन इस पर हो रही राजनीति ने सियासी तापमान को बढ़ा दिया है। हिंसा से सबसे अधिक प्रभावित देश के दो राज्य पश्चिम बंगाल औऱ बिहार की राजनीति में मुख्य विपक्षी दल भाजपा सत्तारूढ़ दल पर हावी है। भाजपा दोनों ही राज्यों पर तुष्टिकरण की राजनीति करने का आरोप लगा रही है और सरकार पर पूरी ताकत से हमलावर है। वहीं पश्चिम बंगाल और बिहार में सत्तारूढ़ दल भाजपा पर हिंसा के बहाने ध्रुवीकरण की सियासत करने का आरोप लगा रहे है। ऐसे में दोनों ही राज्यों में हुई हिंसा पर अब तुष्टिकरण और ध्रुवीकरण की राजनीति हावी होती दिख रही है।
रामनवमी पर हुई हिंसा को लेकर सियासी दल अपनी सियासी रोटियां क्यों सेंक रहे है इसको समझने के लिए इन राज्यों के चुनावी गणित को समझना होगा। चुनावी गणित को समझना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि हिंसा का सीधा कनेक्शन अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से जोड़ा जा रहा है।
हिंसा प्रभावित पश्चिम बंगाल से 42, बिहार से 40 औऱ महाराष्ट्र से 48 सांसद चुनकर लोकसभा पहुंचते है, ऐसे में अगर देखा जाए तो कुल 130 लोकसभा सीट इन तीन राज्यों में ही है। वहीं यह तीन राज्य ऐसे राज्य है जहां उत्तरप्रदेश के 80 सांसदों के बाद सबसे अधिक सांसद जीतकर आते है।
हिंसा से प्रभावित पश्चिम बंगाल में 2019 के लोकसभा चुनाव में कुल 42 सीटों में से टीएमसी को 24 और भाजपा को 18 सीटें मिली थी। वहीं बिहार में पिछले लोकसभा चुनाव में 40 सीटों में से भाजपा को 17, जेडीयू को 16 और एलजेपी को 6 सीटें मिली थी, यह तब था जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई वाले जेडीयू, भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। लेकिन पिछले साल अगस्त में नीतीश कुमार के जेडीयू से अलग होने के बाद राज्य में अब सियासी हालात अलग है और 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा का सीधा मुकाबला जेडीयू-आरजेडी और कांग्रेस के महागठबंधन से है।
ऐसे में 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा की चुनावी रणनीति तैयार करने में जुटे पार्टी के चुनावी चाणक्य अमित शाह के सामने बिहार और बंगाल में पार्टी को 2019 के ग्राफ से उपर ले जाना एक अग्निपरीक्षा है। यहीं कारण है कि बिहार और बंगाल में हिंसा के बाद अमित शाह एक्शन में है। एक ओर जहां गृहमंत्रालय ने बंगाल में हुई हिंसा पर राज्य सरकार से रिपोर्ट तलब कर ली है वहीं बिहार में हिंसा को लेकर खुद गृहमंत्री अमित शाह नीतीश सरकार पर हमलावर है।
सासाराम और नालंदा में हुई हिंसा के बाद गृहमंत्री ने नावदा में अपनी रैली में बिहार में अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में 40 सीटें जीतने का दावा किया। इतना ही नहीं अमित शाह ने अपने भाषणों में दंगों का जिक्र करते हुए कहा कि बिहार शरीफ में दंगा हो रहा है, 2025 में बिहार में बीजेपी की सरकार बनवा दीजिए, दंगा करने वालों को सीधा कर देंगे। भाजपा शासित राज्यों में दंगा नहीं होता है।
बिहार से सटे पश्चिम बंगाल में भी रामनवमी से शुरु हुई हिंसा का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा है। सोमवार रात हुबली में हुई हिंसा के बाद मंगलवार को राज्यपाल से लेकर केंद्र सरकार और ममता सरकार तक एक्शन में दिखाई दी।
पश्चिम बंगाल में हिंसा के बाद पूरी सियासत दो गुटों में बंटी हुई दिखाई दे रही है। भाजपा हिंसा के बाद हिंदू वोटरों के ध्रुवीकरण की कोशिश में लगी हुई है, वहीं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की निगाहें बंगाल के 30 फीसदी मुस्लिम वोटों पर टिकी है। बंगाल में हिंसा के बाद भाजपा के राष्ट्रीय दिलीप घोष कहते हैं कि बंगाल में मुस्लिमों का वोट भाजपा नहीं मिलता और भाजपा मुस्लिम बाहुल्य इलाकों जीतती भी नहीं है। अगर दिलीप घोष के बयान को सियासी तरीके से देखे तो वह साफ-साफ कह रहे है कि भाजपा को को मुस्लिम वोटों की जरूरत नहीं है।
बंगाल में हिंसा की सियासी कड़ियां सीधे राज्य में इस साल होने वाले पंचायत चुनाव और अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से जोड़ा जा रहा है। ममता बनर्जी की निगाहें अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के साथ इस साल होने वाले पंचायत चुनाव पर भी टिकी है। पंचायत चुनाव में टीएमसी का सीधा मुकाबला भाजपा से ही होगी। वहीं भाजपा पंचायत चुनाव में जीत हासिल कर बंगाल में अपनी ऐसी नींव तैयार करना चाह रही है जिस पर वह 2024 लोकसभा चुनाव की जीत की इमारत खड़ी कर सके।
राज्य में हावड़ा और हुबली में हिंसा के लिए भाजपा सीधे मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तुष्टिकरण की सियासत को जिम्मेदार ठहरा रही है और मौके की नजाकत को देखते हुए उसने हिंदुत्व का कार्ड चल दिया है। हिंदुत्व के कार्ड के सहारे भी बंगाल में भाजपा लगातार अपना विस्तार करती जा रही है। अगर 2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो राज्य में भाजपा ने टीएमसी को बड़ा झटका देते हुए राज्य में 42 सीटों में 18 सीटों पर जीत हासिल कर ली थी।