मेरी सर्वश्रेष्ठ शिक्षक मां थीं : प्रणब मुखर्जी

शुक्रवार, 4 सितम्बर 2015 (12:01 IST)
नई दिल्ली। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने आज यहां डॉ. राजेंद्र प्रसाद सर्वोदय विद्यालय के छात्रों को अपने राजनीतिक जीवन से लेकर समकालीन राजनीति तक के राजनीतिक इतिहास के विषय पर विस्तार से संबोधित किया जो इन 60 विद्यार्थियों के लिए एक अनोखा अनुभव रहा। उन्होंने अपनी समस्त सफलता का श्रेय भी अपनी मां को देते हुए कहा कि वे मेरी सर्वश्रेष्ठ शिक्षक थीं।’

 
 
शिक्षक दिवस की पूर्वसंध्या पर बच्चों को पढ़ाने के लिए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के सामने विचार रखा था और इस 
विशिष्ट अवसर का लाभ उठाने को आतुर विद्यार्थियों के बीच उत्साह देखते ही बनता था, जो ‘मुखर्जी सर’ के चार दशक से अधिक समय के उनके 
राजनीतिक अनुभव के बारे में उनसे सुनना चाहते थे।

इतिहास के बारे में अपने ज्ञान के लिए लोकप्रिय 79 वर्षीय मुखर्जी आज जब ‘लेक्चर हॉल’ में पहुंचे तो वह 46 साल बाद शिक्षक के रूप में थे और उन्होंने सुनने को उत्साहित दिख रहे छात्रों के साथ संवाद कायम किया।
 
जब उन्होंने कक्षा में विद्यार्थियों को गंभीर होते देखा तो कहा, ‘अगर आप में से कोई भी थोड़ा भी बोझिल महसूस कर रहे हैं तो आप मुझसे यह कहने के लिए स्वतंत्र हैं कि मुखर्जी सर आप इसे रोक सकते हैं। मैं यहां राष्ट्रपति या मंत्री नहीं हूं। मैं केवल आपका मुखर्जी सर हूं। अगर आप मुझे मुखर्जी सर पुकारेंगे तो मुझे खुशी होगी।’ 
 
इन हल्के फुल्के विचारों के बीच राष्ट्रपति ने भारत के राजनीतिक इतिहास पर गंभीरता के साथ भी बातें रखीं और सामाजिक राय बनाने में सोशल मीडिया की बढ़ती भूमिका और मीडिया तथा एनजीओ समेत लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की भूमिका के बारे में बात की। उन्होंने कहा कि यह स्वस्थ लोकतंत्र का परिणाम है।
 
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राष्ट्रपति ने कहा, ‘भारतीय लोग प्रयोग कर रहे हैं। वे संतुष्ट नहीं हैं। वे पूछ रहे हैं कि क्या इतना ही? क्या हम बेहतर नहीं कर सकते हैं? क्या हम और अधिक हासिल कर सकते हैं? इस सोच के परिणाम के तौर पर विकसित हो रहे शक्तिशाली साधन ही सिविल सोसायटी और एनजीओ हैं।’ 
 
भूरे रंग का बंद गले का कोट पहने राष्ट्रपति ने एक वाकया याद किया, जब वह विदेश में थे और एक विदेशी पत्रकार ने उनसे अन्ना हजारे के आंदोलन के बारे में पूछा था जिसमें उनके द्वारा तैयार मसौदे वाले जन लोकपाल विधेयक को देश में लागू करने की मांग की जा रही थी। 
 
उन्होंने कहा, ‘अगर लोगों को लगता है कि सांसद अपना काम नहीं कर रहे, सरकारें अपना काम नहीं कर रहीं, तो वे बेकार नहीं बैठ सकते हैं और उनके पास अपने विचार व्यक्त करने का और कोई तरीका नहीं होता।’
 
मुखर्जी ने कहा, ‘‘मीडिया, ट्‍विटर और फेसबुक जैसे सोशल मीडिया के शक्तिशाली माध्यम सार्वजनिक राय बनाने, विचार रखने और व्यक्त करने के शक्तिशाली तंत्र के तौर पर काम करते हैं। ये सभी हमारे स्वस्थ लोकतांत्रिक विकास के अंग और परिणाम हैं और भारतीय लोकतांत्रिक प्रणाली का यही योगदान है।’
 
मुखर्जी ने कहा, ‘संविधान में अनेक संशोधन किए गए हैं। तीन महत्वपूर्ण अंग -न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका हैं। मैं जिस चौथे अंग के बारे में बात कर रहा हूं, उसमें मीडिया, एनजीओ और शक्तिशाली सार्वजनिक राय समेत सिविल सोसायटी हैं। इन तंत्रों को सुगमता से कैसे चलाया जाए।’
 
उन्होंने रॉबर्ट ब्राउनिंग की प्रसिद्ध कविता ‘द पैट्रियट’ को उद्धृत करते हुए कहा, ‘बदलाव स्थाई है। बदलाव आभासी लोकतंत्र है।’ मुखर्जी ने कहा, ‘यह लोकतंत्र का अनिवार्य हिस्सा है लेकिन हमें तंत्र को आगे बढ़ाते रहना होगा। अगर हम कर सकते हैं। अगर हम संतुलन बनाने के लिए कर सकते हैं।’ 
 
करीब घंटे भर की कक्षा में मुखर्जी ने राजनीतिक इतिहास के अनेक पहलुओं को छुआ, जिनमें पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंहराव और तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में अर्थव्यवस्था में हुए बदलाव, संप्रग सरकार द्वारा मनरेगा के माध्यम से रोजगार देने, खाद्य आयात करने वाले देश से लेकर खाद्यान्न निर्यातक तक भारत के विकास, इस्पात, सीमेंट और बिजली के उत्पादन में असाधारण विकास और संविधान रचना के इतिहास जैसे क्षेत्र शामिल रहे।
 
मुखर्जी ने कहा कि भारतीय संविधान एक ऐसा दस्तावेज है, जिसमें साल दर साल अनेक बदलाव किए गए। उन्होंने कहा कि संविधान की प्रस्तावना में 1975 में 44वें संशोधन के माध्यम से ‘पंथनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्द जोड़े गए। राष्ट्रपति ने छात्रों से उन पड़ोसी देशों के बारे में विचार करने को कहा जिन्हें भारत के साथ आजादी मिली और उनमें से कितने अब भी बहुदलीय लोकतंत्र वाले हैं।
 
उन्होंने कहा, ‘भारत जो खर्च करता है, उस प्रत्येक रुपए में 93 पैसा हमारी अपनी बचत से आता है, न कि उधार के साधनों से।’ मनरेगा के बारे में मुखर्जी ने कहा कि कानूनी गारंटी के साथ अधिकार और अधिकार के साथ सशक्तिकरण भारतीय लोकतंत्र का नया आयाम है।
 
उन्होंने कहा कि 1952 में देश में पहले चुनावों में 17.5 करोड़ भारतीयों ने मतदान किया था, वहीं उसकी तुलना में 2014 के चुनाव में 55 करोड़ से ज्यादा लोगों ने अपने वोट डाले। प्रतिदिन स्कूल जाने की अपनी कठिन यात्रा की झलक पेश करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि वह पिछड़े इलाके के औसत छात्र थे।
 
उन्होंने कहा, ‘मेरा स्कूल बहुत दूर था। यह पांच किलोमीटर से थोड़ा ज्यादा था। मैं धान के खेतों में से होता हुआ पैदल जाता था। मैं अपनी किताबों और दूसरे सामान को बचाने के लिए अपनी कमर और सिर पर एक-एक तौलिया बांधता था। मुझे हर रोज पांच किलोमीटर चलना पड़ता था, इसलिए मैं स्कूल नहीं जाना चाहता था।’ 
 
जब एक विद्यार्थी ने राष्ट्रपति से पूछा कि वह अपनी सफलता का श्रेय किसे देना चाहते हैं तो उन्होंने जवाब दिया कि वह ‘अलग तरह के शरारती बालक’ थे जो अपनी मां को परेशान किया करते थे। मैं अपनी मां के लिए एक परेशानी था... दिनभर की शरारत और अन्य चीजों के बाद उनसे मुझे अच्छी-खासी पिटाई खानी पड़ती थी। 
 
उन्होंने कहा उसके बाद वे आतीं और मुझे प्यार से दुलारतीं तथा पूछतीं कि मैंने सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक क्या काम किया है जिसे मैं क्रमिक ढंग से बताता। शिक्षक दिवस की पूर्व संध्या पर शिक्षक की भूमिका में नजर आए प्रणब ने कहा कि माताएं सर्वश्रेष्ठ शिक्षक होती हैं।
 
पश्चिम बंगाल में बीरभूम जिले के मिराती गांव में स्वतंत्रता सेनानी कामदा किंकर मुखर्जी और राजलक्ष्मी के घर जन्मे प्रणब ने कहा कि उनके पिता का जीवन जेल से पार्टी कार्यालय के इर्द-गिर्द गुजरा और उनकी देखभाल उनकी मां किया करती थीं।
 
राष्ट्रपति ने कहा कि वे अपने गांव के उन लड़कों के साथ रहते थे, जो गाय चराने जाते थे और जो खेलते थे। उन्होंने कहा क‍ि लेकिन जैसे ही सूरज छिपता, मैं तुरंत घर भागता था, क्योंकि गांव का लड़का होने के बावजूद मुझे अंधेरे से बहुत डर लगता था। (भाषा) 

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