छठे भारत-जापान संवाद सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने पारंपरिक बौद्ध साहित्य और शास्त्रों के लिए एक पुस्तकालय के निर्माण का प्रस्ताव भी रखा। उन्होंने कहा, अतीत में, साम्राज्यवाद से लेकर विश्वयुद्धों तक, हथियारों की दौड़ से लेकर अंतरिक्ष की दौड़ तक मानवता ने अक्सर टकराव का रास्ता अपनाया। वार्ताएं हुईं लेकिन उसका उद्देश्य दूसरों को पीछे खींचने का रहा। लेकिन अब साथ मिलकर आगे बढ़ने का समय है।
मानवता को नीतियों के केंद्र में रखने की जरूरत पर बल देते हुए मोदी ने प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व को अस्तित्व का मुख्य आधार बनाए जाने की वकालत की। उन्होंने कहा, वैश्विक विकास पर चर्चा सिर्फ कुछ देशों के बीच नहीं हो सकती। इसका दायरा बड़ा होना चाहिए। इसका एजेंडा व्यापक होना चाहिए। विकास का स्वरूप मानव-केंद्रित होना चाहिए। और आसपास के देशों की तारतम्यता के साथ होना चाहिए।
प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर पारंपरिक बौद्ध साहित्य और शास्त्रों के लिए एक पुस्तकालय के निर्माण का प्रस्ताव भी रखा। उन्होंने कहा, हमें भारत में ऐसी एक सुविधा का निर्माण करने में खुशी होगी और इसके लिए हम उपयुक्त संसाधन प्रदान करेंगे।(भाषा)