'कश्मीर : द वाजपेयी ईयर्स' नामक अपनी पुस्तक में दौलत ने लिखा कि 2001 में सलाहुद्दीन वापस लौटने को तैयार था और मैंने सैकड़ों बार इसकी वकालत की। संभवत: मेरे बाद के रॉ प्रमुख विक्रम सूद के अन्य हित थे और उनके लोगों ने सोचा कि चूंकि मैं सामान्य तौर पर कश्मीर का मामला प्रधानमंत्री कार्यालय से देखता था इसलिए उनका इस मामले में शामिल होना जरूरी नहीं है।
उन्होंने अपनी पुस्तक में लिखा कि ऐसे कथनों पर काम होना चाहिए लेकिन दुर्भाग्य से हमने कभी ऐसा नहीं किया। हम सलाहुद्दीन को वापस ला सकते थे, वह तैयार था, लेकिन बात यह थी कि उसे कब लाया जाए? समय महत्वपूर्ण मुद्दा था। शायद हमने काफी समय गंवा दिया। (भाषा)