आम धारणा है कि सिंहस्थ और कुंभ के दौरान पवित्र नदियों में स्नान से लोगों को पापों से मुक्ति मिल जाती है या फिर उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। मगर हकीकत इससे अलग है। पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन के महंत महेश्वरदास कहते हैं कि नदियों में डुबकी लगाने से हम मुक्त हो जाएंगे, यह संभव नहीं है। ...लेकिन, यह डुबकी हमें शुभ संकल्प का अवसर जरूर देती है, जिससे हमारे भावी कर्म निर्धारित होते हैं।
महेश्वरदास जी कहते हैं कि शाही स्नान के दौरान क्षिप्रा, गंगा आदि नदियों में स्नान से पाप नष्ट होना और पुण्य की प्राप्ति हमारे संकल्प पर निर्भर है। यदि हम विशेष अवसर पर प्रायश्चित करें और संकल्प लें और ईश्वर से क्षमा प्रार्थना करें कि मैं भविष्य में कोई गलत काम नहीं करूंगा, बुराई छोड़कर अच्छाई के मार्ग पर चलूंगा तो पापों से मुक्ति संभव है।
सिंहस्थ से संदेश : संत महेश्वरदास जी कहते हैं कि सिंहस्थ देश ही नहीं पूरी दुनिया को भेदभाव मुक्त समाज का संदेश देता है। यहां भाषा, जाति, संप्रदाय, प्रांत, रंग आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाता। सभी के लिए मंदिरों के द्वार खुले हैं। सभी लोग एक घाट पर स्नान करते हैं और एक पंक्ति में बैठकर भोजन करते हैं। यहां लोग आते ही इसलिए हैं कि यहां उन्हें आत्मीयता मिलती है और यही आत्मीयता उन्हें आकर्षित करती है। यहां वीआईपी कल्चर भी नहीं है। जब तक समाज से भेदभाव नहीं मिटेगा तब तक लोगों के बीच की दूरियां भी नहीं मिट सकतीं। ऐसे में हम ईश्वर और मानवता की ओर भी नहीं बढ़ सकते।