सरकार ने अपने जवाब में कहा कि समलैंगिक विवाह कुछ शहरी लोगों की सोच है, कोर्ट को इसमें नहीं पडना चाहिए, यह संसद का काम है। इतना ही नहीं, केंद्र सरकार ने हलफनामा में कहा है, विषम लैंगिक संघ से परे विवाह की अवधारणा का विस्तार एक नई सामाजिक संस्था बनाने के समान है। केवल संसद ही व्यापक विचारों और सभी ग्रामीण, अर्द्ध-ग्रामीण और शहरी आबादी की आवाज, धार्मिक संप्रदायों के विचारों और व्यक्तिगत कानूनों के साथ-साथ विवाह के क्षेत्र को नियंत्रित करने वाले रीति-रिवाजों को ध्यान में रखते हुए निर्णय ले सकती है। अदालत इस मामले में फैसला नहीं ले सकती