द्वारकापीठ और शारदापीठ के शंकराचार्य ने कहा, 'बिना पूर्व सूचना के वे क्यों नहीं उनके साथ भोजन करते हैं।' उन्होंने कहा, 'राजनैतिक फायदे के लिए दलितों के साथ उज्जैन में क्षिप्रा नदी में स्नान करने की एक नई परंपरा स्थापित की गई। नदियों, मंदिरों और धार्मिक स्थलों पर जाति, धर्म या वर्ण के आधार पर कोई भेदभाव नहीं है।'
वहीं, बिसहड़ा मामले में रिपोर्ट सामने आने के बाद की स्थिति पर स्वरूपानंद ने कहा कि बेशक, जिन लोगों ने कानून हाथ में लिया, उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था। उन्होंने बेहद तीखे शब्दों में कहा, 'जब कोई ब्राह्मण मरता है, तो सरकार को सहिष्णुता नहीं दिखाती। लेकिन जब कोई अल्पसंख्यक मरता है तो चिल्लाने लगते हैं।' उन्होंने कहा कि सवाल यह है कि सरकार अपनी जिम्मेदारी क्यों नहीं पूरी करती। जब गौहत्या पर प्रतिबंध है, तो फिर कोई ऐसा क्यों करता है।
उन्होंने आरोप लगाया, ‘अभी भी आए दिन उत्तर प्रदेश व हरियाणा के एक बड़े हिस्से से असम व बंगाल को निरंतर गायों की तस्करी की जा रही है। उनका खुलेआम वध किया जा रहा है। गौहत्या बंद होने के बावजूद अगर सरकार रोकथाम नहीं कर पाती तो निश्चित ही यह उसकी विफलता का सूचक है।’(भाषा)