कश्मीर में अलकायदा और आईएस के कदमों की आहट...

श्रीनगर। अब अलकायदा आतंकी संगठन द्वारा कश्मीर में मारे गए एक आतंकी को अपने गुट का बताने के बावजूद कश्मीर में तैनात सुरक्षाबल उन आतंकी गुटों के कदमों की आहट को नजरअंदाज करने की कोशिश में जुटे हैं, जो विश्व में कहर बरपाए हुए हैं। ये संगठन अलकायदा और आईएसआईएस हैं, जिनके प्रति अधिकारी मात्र इतना कहकर बात को टालने की कोशिश करते थे कि उनके लिए आतंकी, आतंकी होता है चाहे वह किसी भी संगठन से राबता रखता हो।


अनंतनाग जिले में गत सोमवार को मारे गए तीन आतंकवादियों में से एक हैदराबाद का निवासी था और ‘अंसार गत्वातुल हिंद (एजीएच)’ नामक आतंकी संगठन से जुड़ा हुआ था। स्थानीय मीडिया के मुताबिक, एजीएच ने अपने वेबसाइट अल नस्र पर दावा किया कि मारा गया तीसरा आतंकवादी आंध्र प्रदेश के हैदराबाद का निवासी था। उस आतंकी की अब तक आधिकारिक तौर पर पहचान नहीं की जा सकी है और उसे विदेशी आतंकवादी बताया जा रहा है।

वेबसाइट पर मारे गए तीसरे आतंकवादी का नाम मोहम्मद तौफीक उर्फ सुल्तान जबुल अल हिंदी उर्फ जर्र अल हिंदी के रूप में की गई है तथा वह 2017 में संगठन में शामिल हो गया था। गत 12 मार्च को अनंतनाग के हाकूरा में सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में मारे गए तीन आतंकियों में से दो की पहले ही पहचान की जा चुकी है। इनमें एक इसा फजिली श्रीनगर के सोउरा का निवासी था जबकि दूसरा उसी जिले के कोकरनाग का निवासी सैयद शफी था। एजीएच घाटी में 2017 में अस्तित्व में आया जब अगस्त में तीन स्थानीय आतंकवादियों को त्राल के गुलाब बाग में ढेर कर दिया गया था।

इनमें त्राल निवासी जाहिद अहमद भट और मोहम्मद इशाक भट तथा पुलवामा निवासी मुहम्मद अशरफ डार मारे गए। मारे गए आतंकवादी शुरू में हिजबुल मुजाहिदीन (एचएम) से जुड़े थे लेकिन फिर बाद में कुख्यात आतंकी नेता जाकिर मूसा के नेतृत्व वाले एजीएच में शामिल हो गए थे। इससे पहले आईएस ने कश्मीर में हुए दो आतंकी हमलों की जिम्मेदारी ली थी, पर कश्मीर पुलिस प्रमुख डीजीपी शेषपाल वैद आईएस के दावे को नकारते थे। हालांकि अलकायदा के दावे पर वे खामोशी अख्तियार किए हुए हैं।

उनका कहना था कि कश्मीर में आईएस और अलकायदा के समर्थक तो जरूर हैं, पर उनमें शामिल होने वालों के प्रति अभी तक कोई सबूत नहीं मिला है। सच्चाई यह कि कश्मीर में विश्व कुख्यात आतंकी संगठनों के कदमों की आहट सुनी जाने लगी है, पर सुरक्षाबल अभी भी उन्हें कमतर आंकने की गलती कर रहे हैं। एक रक्षा विशेषज्ञ के अनुसार, ऐसी ही गलती 1990 के दशक में विदेशी आतंकियों के कश्मीर में आने की खबरों के प्रति की गई थी और आज नतीजा यह है कि कश्मीर में एक समय विदेशी आतंकियों की संख्या का प्रतिशत 90 तक पहुंच गया था।

यह बात अलग है कि सर्वदलीय हुर्रियत कॉन्‍फ्रेंस के घटक दल अलकायदा और आईएसआईएस जैसे संगठनों से दूरी बनाने की कोशिश में जरूर जुटे हुए हैं। दरअसल, वे इस सच्चाई से रूबरू हैं कि अगर उन्होंने अपना नाम ऐसे आतंकी गुटों के साथ जोड़ा तो उनका तथाकथित आजादी का आंदोलन बदनाम हो जाएगा और वे विश्व समुदाय से मिलने वाले समर्थन को खो देंगे।

वेबदुनिया पर पढ़ें

सम्बंधित जानकारी